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पीछे से पेड़ के, बिखराती जूल्फों में वो यूं देखती है।
काली घटाओं ने जैसे मौसम सुहाना बना दिया।।

आंखों में समझ जाती है, सारी जो बातें।
छेड़कर यूं तार दिल के, तराना बना दिया।।

मौसम रंगीन है, अभी आकर मिलो भी हमसे।
यूं महोब्बत के समंदर को अफसाना बना दिया।।

बारिशों में इत्मिनान से, यूं दुबक कर बैठा हूं आशना।
जो बितेगा ना इंतजार में, वो जमाना बना दिया।।

सने धूल से उनकी महोब्बत में, सफा थे हम।
जहां दिल में तुम रहे, उसे मयखाना बना दिया।।

तेरे समंदर-ए-ईश्क ने, हमें आदी जो बनाया।
भटकते तेरे शहर में #सुशील ने, ठिकाना बना दिया।।

-सुशील हरियाणवी

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