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तुम्हे अंधेरे से डर लगता हैं
या डरते हो न देख पाने से सच्चाई
शायद धमकाती है रौशनी की एकक्षत्र सत्ता
या भरोसा नहीं अपनी मौकापरस्त दाहिनी बाजू पर
जिसको देखा है तुमने दिन के उजाले में रंगे हाथों
एहसास होता होगा तुम्हे किसी संभावित खतरे का
शायद सुनी नहीं होगी, दीनदहरे किसी के उजड़ते आबरू की कहानी
चीखते सन्नाटे तुम्हे डरते होंगे,
एक खामोश खड़ी भीड़ की दहशत का अंदाजा क्या होगा
किस्से भूत प्रेत के और शुष्क शिरोधरा
इंसानी करतूतों से सने अखबार नहीं देखें होंगे
तुम भयभीत हो क्योंकि
रोशनी के भक्तों ने कहा है डरो
तुम्हें सुनाई गई हैं चीखे, दिखाई गई हैं मौत
बनाया गया है तुम्हें वयस्नी, रौशनी का
और सिखलाया गया है डरना
जैसे वे सिखलाते है स्त्रियों को, पुरुषों के बिना रहना (डरकर)
जैसे बच्चो को, सपने पूरे करना (डरकर)
जैसे अपना हक मांगना (डरकर)
जैसे विविधता में एक हो कर रहना (डरकर)
और जैसे मुकाधिराज के समक्ष बोलना (डरकर)
तुम्हें अंधेरे से डर लगता है क्योंकि
उजालों के रखवालों ने रखा है तुम्हे अंधेरे में
बताया नही गया है तुम्हे अंधेरे की सच्चाई
अंधेरे में है सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे होने का अहसास
जहां सारा संसार है गौण और भौतिक मौन
जहां है तो बस चेतना खुद के होने की
अंधेरे में है लीन नियति काल चक्र की
गर्भ के अंधेरे से कब्र के अंधेरे तक।

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