Image by Free Fun Art from Pixabay

हाँ इक बार की बात है शहर जब अनजान हुआ 
कुछ छूटा कुछ बिगड़ा आँखों के सामने सब कुछ
वीरान हुआ.
अपने ढूंढते रहे अपनों को ऐसा कुछ अंजाम हुआ हां इक
बार की बात है शहर जब अनजान हुआ.
चारो ओर मालबो का ढ़ेर यूँ,की कोई शहर वीरान हुआ 
कभी सिसकती कही छुपाते हुए खुद को अनजान निगाहो से
कई लाचार ज़िन्दगिया कभी कही ऐसी भी होती हैं कुछ हस्तिया.
हाँ एक बार की बात है शहर जब अनजान हुआ.
ना सोचा किसी ने ना समझा हर एक मुखौटा बदनाम हुआ.
चीथडो मै लिपटी कई जिन्दगिया इस तरह शायद वहां भी.
फिर क़त्लेआम हुआ.
हाँ इक बार की बात है शहर जब अनजान हुआ.
फिर से समेटते हुए खुद को वो शहर जिसका अस्तित्व अब समाप्त हुआ.
हर जुबां पर शिकायत दुःख पीड़ा कोई बेबस कोई लाचार कही धुंदला पड़ा सवेरा.
हाँ इक बार की बात है शहर जब अनजान हुआ.
किसी डर से धुंदलाती आंखे ओर खौफ से सलबटे ओर
बढ़ती जाती माथे पर. (तनाव )
की कही खो ना दे कोई अपनी हस्तियाँ (धन).
हाँ इक बार की बात है जब वक़्त कही बदनाम हुआ या फिर गुमनाम हुआ.
चाहे हर कोई अपना जीवन कुछ खास जिसके 
आस पास ना हो किसी धमाके की कोई आवाज़
हर इक के लिए सुकून होता है खास फिर चाहे जंग हो या फिर साधारण सा जीवन,पर हमेशा रहना चाहिए एक विराम!

.    .    .

Discus