"अब ना मैं वो हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे"
भारत के मशहूर शायर राहत इंदौरी की मंगलवार 11 अगस्त को दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। जब वह जिंदा थे तो महफिल लूटा करते थे आज जब नहीं है तो हर गली में उनके नाम की ही महफिल है। हिंदुस्तान के साहित्य समाज ने आज एक ऐसा सितारा खोया है जिसकी जगह कभी कोई नहीं ले सकता।
रविवार को उनकी तबीयत खराब होने पर उन्हें औरोबिंदो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां वह कोरोना संक्रमित पाए गए थे। उनका इलाज चल ही रहा था कि उन्हें मंगलवार को दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। दोपहर में उन्हें पहला झटका आया था। डॉक्टरों ने सीपीआर दे स्थिति संभाल ली थी। दो घंटे बाद उन्हें दूसरा झटका आया इस बार उन्हें बचाया न जा सका और उनकी मृत्यु हो गई।
इंदौरी साहब की मृत्यु से देशभर में लोग सदमे में हैं। हर व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपना दुख प्रकट कर रहा है।आम आदमी ही नहीं सेलिब्रिटी भी ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। लोग उनकी शायरियों के जरिए उन्हें याद कर रहे हैं।
कौन थे राहत इंदौरी?
राहत इंदौरी भारतीय उर्दू शायर और फिल्मों के गीतकार थे। उनका जन्म 1 जनवरी 1950 में इंदौर में हुआ था। पिता का नाम था रफ्तुल्लाह कुरैशी और माता थी मकबूल उन निशा बेगम। इंदौरी साहब का असल नाम था राहत कुरैशी जो बाद में बदल कर राहत इंदौरी हो गया। उस वक्त किसे पता था कि एक दिन यह हिंदुस्तान के मुशायरे का ऐसा सूरज बनेंगे जो हमेशा के लिए अमर हो जाएगा।
कहां प्राप्त की शिक्षा?
इंदौरी साहब ने अपनी शुरुआती शिक्षा इंदौर के नूतन विद्यालय में पाई थी। फिर 1973 में इंदौर से इस्लामिया कारीमिया कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 1975 में भोपाल यूनिवर्सिटी से उर्दू साहित्य में एमए किया। उन्हें 1985 में मध्य प्रदेश के भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि से नवाजा गया था।
प्रारंभिक जीवन
शुरुआत में परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी। 10 साल की उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। कला में रुचि होने के कारण साइन चित्रकार के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। बचपन से ही बड़े गुणवान थे। कुछ ही समय में बहुत नाम अर्जित कर लिया था। असाधारण डिजाइन कौशल, शानदार कलाकारी और कल्पना इन खूबियों के चलते काफी प्रसिद्ध हो गए थे। एक दौर ऐसा भी था जब ग्राहक चित्रित बोर्ड पाने के लिए महीनों इंतजार भी करते। यहां तक कि आज भी इंदौर में उनके बनाए साइनबोर्डस मौजूद है। उस वक्त लोगों को ना पता था कि आज जिसके चित्र बोर्ड के लिए इंतजार करना पड़ रहा है कल मुशायरों में उसके शेर सुनने के लिए लाइन में लगना पड़ेगा।
यह एक ऐसे शायर थे जिनके पास हर भावना हर अवसर पर शायरियां थी दोहे थे। जब भी मंच पर जाते थे समा यूं ही बन जाती थी। उन्हें भीड़ में भी हर इंसान के दिल को छूने की कला आती थी। लोकप्रियता इतनी थी कि लोग मुशायरे में सुबह 3-3 बजे तक उन्हें सुनने के लिए इंतजार में बैठे रहते थे। राहत साहब कहते थे कि "अगर महफिलों में मैं 5 शायरियां सुनाता हूं, तो आप भले ही उन सब को पसंद ना करें, लेकिन उनमें से प्रत्येक को एक दर्शक मिल ही जाता है।
उनकी प्रतिभा सिर्फ शायरियों तक सीमित नहीं थी। सिनेमा जगत में भी उन्होंने कई प्रसिद्ध गाने दिए थे जिसमें घातक, बेगम जान, इश्क, मिशन कश्मीर और मुन्ना भाई एमबीबीएस जैसी कई फिल्मों में उनके मशहूर गीत शामिल थे। उनके कुछ मशहूर गीत जो आप और हम आज भी गुनगुनाते हैं वह है
तुमसा कोई प्यारा, खुद्दार
बुमरो बुमरो, मिशन कश्मीर
कोई जाए तो ले आए, घातक
हालांकि बॉलीवुड उन्हें उतना रास नहीं आया और उन्होंने बॉलीवुड से नाता तोड़ शेरो शायरी में ही जीवन गुजारा।
जनवरी 2020 में उनकी एक शायरी बुलाती है मगर जाने का नहीं काफी चर्चित हुई थी। इसे यूट्यूब पर खूब देखा गया था। इस शेर पर सोशल डिस्टेंसिंग के लिए लोगों को जागरूक करने वाले कई मीम्स बने। । यह शेर कुछ इस प्रकार था
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर ज़ालिम से डर जाने का नहीं
इंदौरी साहब एक निडर और बेबाक किस्म के शायर थे। वे समाज और सरकार को आईना दिखाने में कभी ना डरे। देश में जब सीएए और एनआरसी पर विरोध प्रदर्शन चल रहे थे। उस वक्त देश में चल रहे धार्मिक आक्रोश पर उन्होंने लिखा था कि "सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है"। जिसका पोस्टर और बैनर बना प्रदर्शनकारियों ने खूब इस्तेमाल किया था।
आज इंदौरी साहब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी शायरियां हमेशा हमारे बीच अमर है। आखिर कौन सा शेर याद रखें और कौन सा भूल जाए इस मशहूर शायर का। पिटारा इतना भरा हुआ है कि उन्हें सदा के लिए अमर कर गया। कहते हैं कलाकार की आत्मा उसके कला में बसती है। मरने से पहले जो उन्होंने आखिरी शेर लिखा था उसे उनके बेटे सतलज ने मीडिया से साझा किया है। शेर कुछ इस प्रकार है
नए सफ़र का जो ऐलान भी नहीं होता,
तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता।