भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सन् 1965 में एक नारा दिया था "जय जवान जय किसान"। उन्होंने यह नारा दिया क्योंकि एक देश के दो सबसे बड़े स्तंभ होते हैं जवान और किसान। पहला किसान जो देश को अन्न देता है और दूसरा जवान जो देश की रक्षा करता है।
भारत का इतिहास बताता है कि यह देश किसानों का देश है। आधुनिक युग की बात करें तो एक देश की तरक्की उसके जीडीपी आंकी जाती है। तो भारत के जीडीपी में कृषि क्षेत्र का सदैव ही योगदान रहा है।
एक आंकड़े के मुताबिक सन् 1950 में देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 51.9% था। लेकिन अब 2019 में यह मात्र 15.96% रह गया है।
इसी के साथ देश में किसानों की दशा भी बिगड़ती गई है। देश में आज किसान की हालत गंभीर है। एक समय देश की तरक्की में इतना योगदान देने वाला किसान आज खुद बेबस और लाचार है। हर साल देश में न जाने कितने ही किसान आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर लेते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के एक आंकड़े के मुताबिक 2016 में कुल 11379 किसानों ने आत्महत्या की थी। तो 2017 में 10655 और 2018 में 10349 किसानों ने आत्महत्या की थी। इन सब में हर साल सबसे अधिक आत्महत्या महाराष्ट्र में ही दर्ज होती हैं। 2019 में ही जनवरी से नवंबर तक महाराष्ट्र में 2532 आत्महत्या के मामले सामने आए थे।
आखिर इतने उत्पादन और उपभोग के बाद भी भारत में यह आंकड़े इतने अधिक क्यों हैं। इस पर विशेषज्ञों का मानना है कि कर्ज, फसल की बर्बादी और पारिवारिक तकलीफ और समस्याओं की वजह से सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं किसान।
किसान अगर कर्ज लेते हैं तो उसे चुका क्यों नहीं पाते इस पर किसानों का कहना है कि बाज़ारों में अनाजों के उपयुक्त दाम नहीं मिलते। बिचौलियों उचित दाम नहीं देते तो मजबूरी में घाटे में बेचना पड़ता है। सरकार तो दाम तय करती है लेकिन हमें उतना दाम मिलता नहीं।
इस सब के बीच साल 2020 इन किसानों और मजदूरों के लिए और मुसीबत ही लाया है। महामारी और लॉकडाउन के बीच इन के लिए जीवन यापन और कठिन हो गया है। ऐसे में लॉकडाउन में इनकी परिस्थिति पर किए गए एक सर्वे में पता चला है कि उन जगहों पर जहां कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है वहां लगभग हर चौथे व्यक्ति ने किसी न किसी से कर्ज लिया है।
इसी सर्वे में यह भी पता चला है कि इन कर्जो में मात्र 5% कर्ज बैंकों से लिया गया है जबकि 57% मित्रों से या पड़ोसियों से और 21% कर्ज साहूकारों से लिया गया है। लगभग 80% कर्ज साहूकारों आदि से लिया गया है। यानी इनका ब्याज दर भी सरकार द्वारा निर्धारित दर से अधिक होगा। ऐसे में किसान को कर्ज न चुका पाने पर या तो अपनी जमीन बेचनी पड़ेगी या आत्महत्या की कोशिश।
इन समस्याओं से लड़ने के लिए और किसानों की मदद के लिए सरकार ने कई योजनाएं भी लागू की है। जैसे 2015 में प्रधानमंत्री कृषि विकास योजना जो देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए और किसानों की आर्थिक मदद करने के लिए लागू किया गया है। 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना इसके तहत फसलों का बीमा किया जाता है ताकि आपदा में फसल नष्ट होने पर उन्हें कर्ज का मूलधन चुकाने में आसानी हो। इस योजना का बजट 17600 करोड़ था।
इसी तरह जून से शुरू हो रहे ख़रीफ़ की बुआई के लिए केंद्र सरकार ने इस साल 20500 करोड़ का बजट किसानों को राष्ट्रीय ग्रामीण एवं कृषि विकास बैंक द्वारा कर्ज मुहैया करवाने के निर्धारित किया है। इसमें किसानों को खाद बीज और बुआई के उपकरण के लिए तीन प्रकार के ग्रामीण बैंकों द्वारा कर्ज उपलब्ध करवाया जाएगा। जिसमें 33 राज्यों द्वारा संचालित सहकारी बैंक, 352 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक और 43 ग्रामीण क्षेत्र के बैंक शामिल है।
इस मौसम में किसान चावल, दाल, मक्का, मूंगफली, जवार जैसे कई अनाज उगाते हैं जो भारत के वार्षिक अनाज उत्पादन का आधा हिस्सा होता है।
ऐसे ही प्रधानमंत्री किसान मदान योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसे बहुत सी योजनाएं हैं लेकिन इससे आंकड़ों में कुछ खास बदलाव नहीं आए हैं।
सरकार की नाकामी ही है कि इतनी योजनाओं और सुविधाओं के बावजूद आज भी किसान बेबस और लाचार है। भविष्य में इन योजनाओं का क्या परिणाम होगा यह तो भविष्य में आने वाले आंकड़ों से ही पता चलेगा।