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भारत की आज़ादी उन स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का वरदान है जिन्होंने इसे अपने लहू से सीचा है। भारत के इतिहास में लाखों-करोड़ों वीर ऐसे जन्में जिन्होंने स्वराज का केवल सपना ही नहीं देखा बल्कि उस सपने को हकीकत में बदल दिया।

इसी मिट्टी में जन्में स्वराज का सपना देखने वाले ऐसे ही एक वीर थे जतिंद्रनाथ मुखर्जी। उनकी वीरता और निडरता के किस्सों ने आज भी इन्हें करोड़ों हिंदुस्तानियों के दिलों में अमर रखा है।

उनके बारे में कहा जाता है कि जब वह 26 वर्ष के थे तब उनका सामना एक बाघ से हुआ था। उन्होंने केवल एक हंसिए से ही उस बाघ को मार गिराया था। जिसके बाद वह बाघा जतिन के नाम से विख्यात हो गए। बाघा जतिन यानी बाग पर विजय पाने वाला।

जतिंद्रनाथ का जन्म 7 दिसंबर सन् 1879 में बंगाल के जैसोर ज़िले में हुआ था जो मौजूदा समय में बांग्लादेश में है। बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां ने उनका लालन-पालन किया। घर के हालात को देखते हुए उन्होंने 18 वर्ष की आयु में ही स्टेनोग्राफी सीख कोलकाता विश्वविद्यालय में काम करना शुरू कर दिया था।

लेकिन उनका जीवन एक नई मोड़ लेने वाला था उन्हें कहां पता था। उसी रोज़ एक राहत शिविर में उनकी मुलाकात स्वामी विवेकानंद से हुई थी। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें अपने जैसे और भी बहादुर और लौह पुरुष व्यक्तियों की सेना तैयार कर देश की सेवा करने के लिए कहा था।


उसके बाद सर औरोबिंदो से उनकी मुलाकात ने उनमें स्वराज और क्रांति की ऐसी आग भड़काई जिसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। बंगाल विभाजन ने उनकी इस आक्रोश को एक नई दिशा दे दी। वह बंगाल में क्रांतिकारियों द्वारा गठित पार्टी युगांतर के मुख्य नेता गए थे।

सन 1910 में उन्हें पहली बार जेल हुई जब क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त हावड़ा षड्यंत्र केस में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

जतिंद्रनाथ की सोच उनके समय से काफी आगे की थी। स्वराज के लिए लड़ते वक्त उन्होंने अपने एक लेख में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए लिखा था कि पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है। देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवनयापन का अवसर देना हमारी मांग है।

उस वक्त क्रांतिकारियों के पास आंदोलन के लिए धन इकट्ठा करने का केवल एक मार्ग डकैती ही थी। जितेंद्रनाथ ने अपनी बुद्धिमता से अंग्रेजों के कई काफिलों को लूटा था। उसमें बलिया घाट और गार्डन रीच की डकैती सबसे बड़ी और मशहूर थी।


इसके बाद ब्रिटिश सरकार जतिंद्रनाथ के अस्तित्व से घबराने लगी थी। उनकी तलाश में जुटी अंग्रेजी पुलिस को 9 सितंबर को उनके गुप्त अड्डे काली पोक्ष का पता चल गया। राज महंती नामक अफ़सर ने गांव वालों की सहायता से उन्हें पकड़ना चाहा लेकिन जतिंद्रनाथ की गोली से वह मारा गया।

उस मुठभेड़ में जतिंद्रनाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो गया था और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और 10 सितंबर को अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम सांसे ली।

जतिंद्रनाथ एक बहादुर और निडर व्यक्तित्व के इंसान थे। चार्ल्स अगस्तस उनके बारे में कहते हैं कि "बाघा जतिन एक क्रांतिकारी और निस्वार्थ नेता थे। वह इतने काबिल थे कि यदि उपयुक्त हथियार और सेना उनके पास होती तो अंग्रेजों को हराकर खदेड़ देते"।

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