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शहर की धड़कन में मैं राम का स्पर्श पाती हूँ,
वह वनवास की राह पर नहीं, मेरे दिल की गहराइयों में चलता है।
जहाँ हर निर्णय का भार मुझे झुकाता है,
जहाँ त्याग की आवाज़ अक्सर मौन होती है।
उन्होंने प्रेम के लिए अपना घर छोड़ा,
और क्या मैंने भी नहीं छोड़े अपने हिस्से,
अपनी खुशियाँ, अपने सपने,
उनके लिए जिन्हें चाहकर भी थाम नहीं पाई?
शिवजी नृत्य करते हैं, अराजकता की छाँव में,
दुनिया उनके कदमों तले बिखर जाती है—
फिर भी, राख से जीवन फिर जन्म लेता है।
उनका तांडव हर अंत को नया आरंभ बनाता है,
हर उस क्षण में जब सब कुछ खोया हुआ लगता है,
फिर भी मैं, किसी अदृश्य शक्ति से, फिर उठ खड़ी होती हूँ।
इस चक्र में, विनाश और सृजन के खेल में,
मैं उन्हें अपने जीवन के हर तूफान में पाती हूँ।
वे मुझे सिखाते हैं कि परिवर्तन कभी अंत नहीं होता,
बल्कि वही अग्नि है, जिसमें मैं खुद को फिर से ढालती हूँ।
कृष्ण—जो बांसुरी की तान में मन मोहते हैं,
जैसे किस्मत से खेलना उनका स्वभाव हो।
उन्होंने चुपके से प्रेम किया चाँदनी की आड़ में,
क्या मैंने भी अपने दिल को छुपाकर नहीं रखा,
इस डर से कि कोई मेरी सच्चाई न देख ले?
उनकी लड़ाई अब मेरी है—
ना कुरुक्षेत्र में, बल्कि उन शांत पलों में,
जहाँ सत्य और प्रेम के लिए संघर्ष होता है।
वे सिखाते हैं कि खुशी क्षणभंगुर होती है,
लेकिन उन्हीं पलों में जीवन का सार छिपा होता है।
और दुर्गा—
जो अंधेरी रातों में सवार होती हैं,
उनकी कई भुजाएँ दुनिया का बोझ उठाए हुए।
मैं उन्हें हर उस स्त्री में देखती हूँ,
जो गर्व से खड़ी है, चुपचाप लड़ाई लड़ती है,
जो हजारों घावों के निशान सहती है,
फिर भी कभी टूटती नहीं।
उनकी शक्ति में, मुझे अपनी शक्ति का एहसास होता है,
उनके धैर्य से मैं सीखती हूँ,
कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं,
हमें हार नहीं माननी चाहिए।
ये देवता, ये कहानियाँ—
ये हमसे दूर नहीं हैं, ना ही भूली हुई हैं।
वे मेरे भीतर बसते हैं,
हर उस फैसले में जो मैं लेती हूँ,
हर संघर्ष में जो मैं झेलती हूँ,
हर उस पल में जब मैं खुद को फिर से पाती हूँ।
उनकी कथाएँ मेरी ज़िंदगी में गुँथी हैं,
उनके सबक उन रास्तों पर हैं, जिन पर मैं चलती हूँ।
राम अब भी मेरे साथ हैं,
शिवजी का तांडव अब भी दुनिया को बदलता है,
कृष्ण की बांसुरी अब भी प्रेम का संदेश देती है,
और दुर्गा की शक्ति मुझे आगे बढ़ने की ताकत देती है।


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