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साल 2014 में आमिर खान स्टारर फ़िल्म बनी 'पीके' इस फ़िल्म में धर्म के ठप्पे की बात कही गयी। इस फ़िल्म का सबसे खूबसूरत दृश्य मेरी नजरों में था, जब आमिर खान अलग-अलग धर्मों के लोगों को उनके धर्म के विपरीत वेशभूषा पहना सभा में मौजूद बाबा जी से उन्हें पहचानने को कहते है। बाबाजी पहनावा के आधार पर हिन्दू को मुस्लिम और सिख को ईसाई बता देते है। तब अमीर खान कहते है भगवान ऊपर से इंसान बनाकर भेजते है ये धर्म का चोला हम नीचे आकर ओढ़ते है। फ़िल्म ने खूब कमाई की तो जाहिर सी बात है बहुत लोगों ने देखी होगी, पर सीखा कितने लोगों ने? फ़िल्म जो सन्देश देना चाह रही थी कितने लोगों ने उसे अपने जीवन में उतारा?

कभी आपने सुना एक बुक स्टोर में रखी गीता और कुरान की आपस में लड़ाई हो गयी, या फिर अल्लाह या भगवान में कभी लड़ाई हुई हो। क्या आसमान में भी कोई फैक्ट्री है जहां धर्म के आधार पर इंसान बनाये जाते है? अगर है तो फिर उस इंसान का धर्म कैसे तय किया जाता होगा? ये मेरा सवाल मज़हबी ठेकेदारों से है जो आये दिन धर्म को बचाने के लिए मासूमों की जान लेते है, घर जलाते है, हिंसा और दंगे के कारण पूरी कौम को बदनाम करते है।

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कोई भी धार्मिक दंगा हो नेताजी के नाम कहीं न कहीं ज़रूर जुड़ा होता है। हाल ही में हुए बेंगलुरु दंगे को ले लीजिए कांग्रेस विधायक के भतीजे ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के ऊपर फेसबुक पर कोई आपत्तिजनक पोस्ट लिखा। पोस्ट को लेकर धर्म बचाने की ड्यूटी करने वालों की भावना आहत हो गयी। उन्होंने भीड़ को इकट्ठा किया और शहर जलाना शुरू किया। कांग्रेस विधायक का घर जलाया गया, गरीबों की बस्तियां जलायीं गयी, पुलिस पर हमला किया गया 3 लोगों की जान गई सैकड़ों घायल हुए। मामले की जांच में पता चला कि SDPI ये दंगा भड़काने के लिए ज़िम्मेदार है। उसने भीड़ इकट्ठी की, पार्टी के नेता पाशा को गिरफ्तार किया गया, अब तक इस मामले में 140 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

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हालांकि, स्थानीय निवासियों ने बताया कि उस तथाकथित पोस्ट को समुदाय और सोशल मीडिया पर शेयर किया गया जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुई। लोगों ने पुलिस में इसकी शिकायत भी की पर जब कोई कार्यवाही नहीं हुई इसलिए लोग सड़क पर उतरे। हर दंगे के बाद बहुत सवाल खड़े होते है कुछ बाहर आते है तो कुछ छुपा लिए जाते हैं। कुछ सवाल इस दंगे को भी लेकर है क्या एक पोस्ट से कोई धर्म खतरे में आ सकता है? जब देश में ऐसा साम्प्रदायिक तनाव है जो कांग्रेस विधायक के भतीजे को ऐसा आपत्तिजनक पोस्ट करने की क्या ज़रूरत थी? पुलिस में जब इस मामले की शिकायत की गई तो उन्होंने तत्काल कार्यवाही क्यों नहीं कि दंगो का इंतज़ार क्यों किया? और भी बहुत सवाल है।

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बेंगलुरु में इन दंगों के बीच एक खूबसूरत तस्वीर भी सामने आई जब मुस्लिम युवकों ने एक ह्यूमन चैन बना एक मंदिर को घेर लिया ताकि हिंसा करने वाली भीड़ मंदिर को कोई नुकसान ना पहुंचा सके। ये तस्वीर उन धर्म के ठेकेदारों के मुंह पर तमाचा है जो अपनी दुकान चलाने के लिए लोगों को मज़हब के नाम पर भड़काते है।

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आप किसी भी दंगे का विश्लेषण कर लीजिए कोई भी दंगा एक तरफा नहीं होता जैसे एक हाथ से ताली नहीं बजती। कोई दंगा ऐसा नहीं होता जिसमे नेताओं का हाथ ना हो। दिल्ली के दंगों को ही ले लीजिए चुनाव से पहले नेताओं के भाषणों ने कैसे दिल्ली का माहौल बिगाड़ा नतीजा दंगो के रूप में सामने आया। दिल्ली का दंगा आज के हिंदुस्तान को समझने का एक बेहतरीन उदाहरण है। बाकी आपका नज़रिया है आप इस दंगे को किस नज़रिए से देखते हैं।

समाज में ज़हर कैसे घोला जाता है?

अधूरा ज्ञान और तीखा पकवान खतरनाक ही होता है। आप इस बात को खुद पर प्रयोग करके वही सीख ले सकते है। हमारे समाज में नेताजी और मीडिया के बाद कोई ज़हर घोंलने के काम कर रहा है तो वह है व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी और सोशल मीडिया। तमाम ग्रुप्स धर्म के नाम पर दूसरे समुदाय के प्रति ज़हर घोंलने वाले मीम या लंबा चौड़ा ज्ञान आपको फेसबुक या आपके व्हाट्सअप पर ज़रूर दिखता होगा। जिसे हम सच्चा हिन्दू या मुसलमान समझ बिना उसके तथ्य जांचे फ़ॉरवर्ड फारवर्ड खेलकर सोचते है कि हमने अपने धर्म को बचा लिया है। नेताजी हमारे घरों में आग लगाकर अपने सरकारी बंगलों में सुरक्षा के बीच आराम से सोते है, घर हमारे अपनों के जलते है।

क्या आपने कभी सुना या देखा की आपको धर्म का रक्षक बनाने वाले, धर्म योद्धा बनाने वाले, आपको आपकी धर्म की पहचान कराने वाले नेताजी या उनके बच्चों ने कभी आपकी इस दंगा भड़काने की मुहिम में सबसे आगे रह आपका साथ दिया हो। समाज में आग लगाने वाले नेता टीवी पर हल्ला मचाते है बाद में ठहाके लगाते हुए चाय पीते है। उस नफ़रत का शिकार कभी बचपन के दोस्त रहे राम और अली हो जाते है।

धार्मिक कट्टरपंथी क्यों खतरनाक है?

धार्मिक कट्टरपंथ कितना खतरनाक है उसे हम कुछ देशों के उदाहरण से समझ सकते है। पाकिस्तान को ले लीजिए इस्लामिक देश है धर्म के नाम पर कोई लड़ाई नहीं तो विकास में इतना पीछा क्यों है? ईरान, इराक, सीरिया जैसे तमाम अरब देश इस्लामिक है तो वहां किस बात की लड़ाई है? क्यों हिंसा होती है? जवाब है नेताजी की राजनीति इस्लामिक देशों में राजनीति शिया और सुन्नी में बांटकर की जाती है है। ठीक वैसे ही भारत में बांटने की अगली लड़ाई हिन्दू धर्म में ही होगी जहां वोट और सत्ता की दुकान चलाने वाले आपको अगड़ा, पिछड़ा, अनुसूचित और आदिवासियों में बांट अपनी राजनीतिक रोटियां सकेंगे।

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