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फाइनल ईयर के एग्जाम शुरू होने में बस कुछ ही दिन शेष रह गए थे और त्रिशा का दिमाग आंटी, बुआ और उसके पड़ोसियों की तानें सुन- सुनकर प्रेशर कुकर में तब्दील हो चुका था। उसने इस प्रेशर को रिलीज करने के लिए अपने दोस्तों के साथ चांदनी रात में,खुले आसमान के नीचे,शहर के बाहर वाले टीले के पास बाइक रेसिंग की योजना बनाई। यह टीला सदियों पुराना था और लगभग सौ एकड़ में फैला हुआ था। इस टीले के बारे में अनेकों कहानियां और किंवदंतियां प्रचलित थी। त्रिशा ने अपनी दादी मां से सुन रखा था कि अगर कोई चांदनी रात में इस टीले का एक चक्कर लगा ले तो उसके जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
तय समय पर त्रिशा तैयार हो गई और अपनी मां से यह कहकर घर से निकली कि वह अपनी सहेली के यहां ग्रुप स्टडी करने जा रही है।... और कुछ ही देर बाद वह अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने में इतना खो गई कि उसे समय का कोई अंदाजा ही नहीं रहा। त्रिशा अपने दोस्तों के साथ काफी खुश थी किन्तु इस बीच उसके मां का तीन मिस्ड कॉल आ चुका था । वह अपने मां का फोन उठाकर मुड खराब नहीं करना चाहती थी तो उसने फोन को इग्नोर करने की रणनीति अपनाई।
अभी - अभी सूर्य अस्त हुआ ही था तो सबने मिलकर प्लान बनाया कि बाईक रेसिंग से पहले क्यों न हम लोग कुछ खा पी लें और साथ ही नये पार्क में भी घूमने का आनंद ले लें क्योंकि जब से नये पार्क का उद्घाटन हुआ है तब से मानो शहर के बांकी सारे आकर्षण के केन्द्र उसके सामने फ़ीके पड़ गये हों। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के कारण स्थानीय विधायक जी ने पार्क को लीक से हटकर आधुनिकतम सेवाओं से सुसज्जित करवा दिया था।
पार्क में थोड़ी देर घूमने के बाद सभी अपने- अपने पसंद की चीजें खा पी रहे थे और मौज मस्ती में डूबे हुए थे। अब तक त्रिशा भी अपने एग्जाम का दबाव भूलकर एक नई दुनिया में मशगूल हो चुकी थी।
गोलगप्पे का लुत्फ उठाने के बाद,रेसिंग के आनंद की कल्पना करते हुए त्रिशा बाइक की तरफ तेजी से आगे बढ़ ही रही थी कि तभी मां का एक और फोन देखकर वह अचानक से बिफर पड़ी, 'माॅम, आप क्यों मुझे बार-बार फोन करके डिस्टर्ब कर रहे हो? आपके पास कोई और काम नहीं है क्या? आप क्यों हमेशा मेरे पीछे पड़े रहते हो? मैंने आपको कितनी बार कहा है कि अब मैं बड़ी हो चुकी हूं, आखिरकार मेरी भी तो अपनी पर्सनल लाइफ है... फ्रीडम है!'
त्रिशा के उम्मीद के विपरीत उसकी मां बिल्कुल शांत और खामोश थीं। कुछ देर के इंतजार के बाद भी जब त्रिशा को एक शब्द भी सुनाई नहीं दिया तब वह बहुत अधीर हो उठी और जोड़ से चीखते हुए बोली,'माॅम, क्या आप मुझे सुन पा रहे हो? ये क्या तरीका है,एक तो आप बार -बार फोन करते हो और जब उठायी तो कुछ बोलते ही नहीं।'
थोड़ी देर की खामोशी के बाद एक मीठी और सुरीली आवाज उभरते हुए सुनाई दी, 'दीदू,आप कहां हो?कैसे हो?मैं आपका कब से वेट कर रहा हूं ताकि हम दोनों साथ में खेल सके,पर आप तो अपने पर्सनल लाइफ की बात कर रहे हो!'
"अ..आ..काश! आकाश तुम? तुम कब आये!", 'त्रिशा आश्चर्यचकित होते हुए बोली।'
"मैं तो शाम के 6 बजे से ही आपका वेट कर रहा हूं,दीदू! पर आप अब तक आये नहीं और दस बजने वाले हैं ", 'थोड़ी सी उदासी और मासुमियत भरे स्वर में आकाश बोला।'
'नहीं....वो…. एग्जाम नजदीक है ना, इसलिए मैं अपनी फ्रेंड स्नेहा के यहां ग्रुप स्टडी कर रही थी, इसलिए ....', इससे पहले कि त्रिशा अपनी बात पुरी कर पाती,आकाश बीच में ही टोकते हुए बोला आप जल्दी घर आ जाओ कुछ सरप्राइज है।
"हां ... हां,आ रही हूं....!", 'त्रिशा हल्के स्वर में बोली।'
आकाश त्रिशा का इकलौता भाई है जो एक साल बाद घर आया था। आकाश त्रिशा का भाई ही नहीं बल्कि उसका सबसे अच्छा दोस्त भी था। दोनों साथ में बहुत मस्ती करते थे। आकाश के घर पर होने मात्र की सुचना ने ही त्रिशा के सारे टेंशन को रफूचक्कर कर दिया था। वह अब काफी तरोताजा महसूस कर रही थी।
इधर चांदनी रात में टीले के आसपास का क्षेत्र दूर से ही काफी मनमोहक लग रहा था,सभी बाइक स्टार्ट कर रेसिंग के लिए जाने को उतावले हो रहे थे। और,त्रिशा का रेसिंग को लेकर जोश काफी ठंडा पड़ चुका था। वह थोड़ी असमंजस में थी कि उसके कहने पर ही सभी अपनी पढ़ाई छोड़कर मौज-मस्ती करने को राजी हुए थे और अब वह कैसे इन सब को छोड़कर घर लौट जाए ।
सभी उसे बाइक पर बैठने को बोल रहे थे और वह खामोश खड़ी किसी गहरी सोच में खोई हुई थी।
इतने में त्रिशा की दोस्त मेघना आगे बढ़ी और त्रिशा को चलने को कहा।
" 'साॅरी यार', मैं नहीं जा पाऊंगी। तुम लोग जाओ।", 'त्रिशा ने मेघना से कहा।'
"क्यों, क्या हो गया? आंटी जी ने आज फिर कोई नई लेक्चर सुना दीं क्या?", 'मेघना व्यंग्यात्मक लहजे में बोली।'
"नहीं यार, घर पर कोई शाम से ही मेरा इंतजार कर रहा है; मुझे जाना होगा। तुम सभी रेसिंग के मजे लो, मैं फिर कभी बाद में....।", 'मेघना के अनुमान के विपरित त्रिशा खुशमिजाज लहजे में बोली।'
"कौन है वो? ... मिस्टर... लक्की... हैंडसम! जिसके आने मात्र की सुचना ने ही तुम्हारे चेहरे का रंग रूप बदल डाला", 'नजरें तिरछी करते हुए मेघना बोली।'
"आकाश!"
"ये आकाश कौन है?"
"मेरा बेस्टी...मेरा छोटा भाई! वह देल्ही में रहकर पांचवीं कक्षा में पढ़ाई करता है। और पता है चूंकि कल मेरा जन्मदिन है इसलिए मुझे विश करने के लिए आज घर आया है। पिछले साल जब वह देल्ही जा रहा था तो उसने मुझसे वादा किया था कि 'दीदू, मैं चाहे कहीं भी क्यों ना रहूं पर आपके हरेक जन्मदिन पर आपके साथ ही रहूंगा' ", 'इतना कहते-कहते त्रिशा की गला रुंध गई और मेघना की पलकें भी आशुओं को रोकने में असमर्थता व्यक्त कर रही थी।'