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तुम्हारी प्यारी आंखें,
तुम्हारे मन के छुपे भावों को,
कुछ वैसे ही अभिव्यक्त करती है जैसे,
चुपचाप सूरज अपनी किरणें बिखेरता है।

तुम्हारी प्यारी मुस्कान,
मुझे कुछ वैसे ही मुक्त करती है जैसे,
गंगा की पावन धारा,
पापियों को पाप से।

तुम्हारे साथ होने से,
मेरा हौसला कुछ वैसे ही बढ़ता है जैसे,
बीच भंवर में फंसे व्यक्ति को,
एक तिनके का सहारा मिलने से।

तुम्हारी बेइंतहा मोहब्बत,
मुझे कुछ वैसे ही नायाब बना देती है जैसे,
एक जौहरी सामान्य से कंकड़-पत्थर को,
अमूल्य आभूषण में परिवर्तित कर देता है।

तुम्हारा होने से पहले,
मेरी अहमियत कुछ उतनी ही है जैसे,
प्राण प्रतिष्ठा से पहले,
रास्ते में मिले एक पत्थर की।

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