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आओ फिर से दीप जलाएं
घी से रुई की बाती बनाएं,
दीपक मे फिर उसे लगाएं,
सिंदूर- रोली, चंदन
की थाल सजायें !!

दीपावली की बात बताएं,
क्यों कैसे सबको समझाएं
लंका दहन कर राम हैं आयें
रामायण- दोहे, चौपाई गायें !!

दीप जलाएं, रौशनी फैलाएं,
इस उत्सव पर हर्ष दिखाएँ,
फल-मिठाई का भोग लगाएँ
धन्वंतरि जी को खूब मनाएं !!

मूर्ति लक्ष्मी- गणेश के लायें,
अपने घर- गाँव का लेप करायें,
सभी दीवारों में रंग पुतवायें,
कई रंगों से खूब सजायें !

फुलझड़ी और पटाखे लायें,
पटाखा छोड़ें, फुलझड़ी जलाएं,
रंग बिरंगी रौशनी फैलाएं ,
हर घर में हम दीप जलाएं !!

सिया राम अब लौट हैं आये,
नाचें गायें- खुशी मनाएं,
उत्सव मे हम सब बंध जाएं,
अंधकार में दीप जलाएँ !!

अन्यायी को सबक सिखाएं,
न्याय की खातिर शीश कटाएँ,
समूल बुराइयाँ नष्ट कराएं ,
अच्छाई का बिगुल बजाएँ !

मर्यादा का पाठ पढ़ें-पढायें,
पुरुषोत्तम खुद हम बन जाएं,
कुछ हम सीखें और सिखाएं,
राम नाम का जाप कराएं,
लक्ष्मण- भरत हम स्वयं बने बनाएं,
हनुमान से तेवर -जोश दिखलायें,
सीना चीर के खुद दिखलायें,
सनातन की परचम लहराएं !

14 बरस वनवास बिताएँ
सिया राम घर वापस आयें,
सबने पुड़ी खीर बनायें
सब संतो को भोग लगाएँ !!

चलो अवध हम सब भी जाएं,
मन्दिर राम की देखें दिखाएँ,
इस अवसर पर उत्सव पाएं,
राम लला को गर्भ गृह मे पाएँ !!

चलो अवध को खूब सजाएँ,
रघुनंदन से मिलकर आएं,
उत्सव को हम दिव्य मनाएं,
थाल पीटकर, दीप जलाएं !!

आओ फिर से दीप जलाएं,
सब रूठे को चलो मनाएं,
अंधकार मे ज्योति जलाएं,
दुनिया जगमग दीप जलाएँ !!

राम वनवास के सारे दुर्लभ भाव बताएँ
राम जन्म भूमि जाकर अपना शीश नवाएं
अवध का वो रौनक लौटाएँ
घी के सौ - सौ दीप जलाएं !!

आओ फिर से दीप जलाएं,
अभी पुण्य का लाभ कमाएं,
दशहरा-दीपावली दोनों अबकी वहीं मनाएं,
राम लला स्वयं देखें हमको क्या खोये क्या पाएं?

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