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आज भी नज़र बंद है स्त्री,
पुरुष जाल मे बंधी है स्त्री,
प्यार के झूठे मलाल मे है स्त्री,
विवशता की जंजाल मे है स्त्री!
धन दौलत,सोहरते धमाल मे है स्त्री,
अंततः पुरुष के मायाजाल मे है स्त्री,
प्रेम और यौवन के भ्रमजाल मे है स्त्री,
खुशियाँ लुटाकर भी बवाल मे है स्त्री!
प्रेम विवाह से भी फटेहाल मे है स्त्री,
जिन्दगी की वाकिफ खस्ताहाल है स्त्री,
शिक्षा की ऊँचाई पर , बदहाल है स्त्री,
गाढ़ी कमाई पर भी बुरे हाल है स्त्री!
युग बोध का दस्तक,आज न खुशहाल है स्त्री,
ऐतिहासिक अज्ञानता के युग मे मिसाल थी स्त्री,
अधिकार,सुरक्षा,युद्ध कौशल मे बेमिसाल थी स्त्री ,
उस युग में वास्तविक प्रेम की भँवर जाल थी स्त्री!
अनपढ़,कुरूप,फूहड़ , गँवार भी झँकार थी स्त्री,
परस्पर आस्था- विश्वास से सदाबहार थी स्त्री,
कैद होकर भी खुशियोँ मे मालामाल थी स्त्री,
नारी मर्यादा, रिश्तों के ख्याल मे कमाल थी स्त्री!
बदला जमाना अब, युग भी बदल गया,
घूँघट हटा,पर्दा-बेपर्दा का हलचल गया,
चेहरे पे चेहरा दिखा, दिल मचल गया,
यौवन है हर शख्स पर दिल फिसल गया !!
प्यार- मुहब्बत, इश्क, वफा, दगा पूरा बदल गया,
आरजू दिल का अब तो,आँसुओं मे बह गया,
पैसे मे पुरुष से स्त्री कम नहीं,हाँ ख्वाब ढह गया,
हर रोज तलाक़ से स्त्री का मुकद्दर समुंदर में बह गया!!
कहाँ दर्द ? शौहर अलग बेगम अलग ,बच्चा यतीम हो गया,
शौहर का नई आशिक से फिर शादी कबूल हो गया,
कई बेगमों से तलाक़ शौहरों का उसूल हो गया,
क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या हिंदू, क्या ईसाई, क्या मुस्लिम
सब इस घिनौनी पाश्चात्य मे मशगुल हो गया?