Photo by Anirudh on Unsplash
बचपन मे भी बड़े मजे, जब आइ दीवाली रे,
सात दिनों की छुट्टी होती, बंद पढ़ाई रे,
बस स्कूलों के गृह कार्य मे बची कड़ाई रे,
मिट्टी के खुद घरौंदा बनाते, करें खूब सनाई रे,
उस घरौंदे मे थे एक सपने, रंग से खूब सजाई रे,
खुशी लिए हम सब कुछ करते लेप लेपाइ रे,
झुमो नाचो, गाओ खुशी मनाओ आई दीवाली रे,
लाओ फुलझड़ी, शुभ है ये घड़ी, पटाखों की लड़ि रे,
बच्चों मे होती उत्सुकता ,वर्षों से इसकी प्रतिक्षा लाई दीवाली रे,
नये नये सब पहने कपड़े, घर- घर
दीप जलाई रे,
माँ करती " लक्ष्मी- गणेश- कुबेर" की पूजा भोग में खूब मिठाई रे,
बच्चे बाहर मस्ती करते, देख दीपों की जगमगाइयाँ रे,
जहाँ पटाखों की लड़ियाँ, ढेर फुलझड़ियाँ भीड़ जुटाई रे,
बच्चे सब तब दौड़ पहुँचते बँटी मिठाई रे,
लौटते फिरअपने घरौंदों मे वहाँ खूब दीप जलाई रे,
रॉकेट, सीटी, घिरनी, डबल साउंड चाकलेटी बम छुड़वाई रे,
माता- पिता फिर बाहर आकर दूर हटाई रे,
सभी चलो अब अपने घर को आई दीवाली रे,
पुआ, पुड़ी, खीर , मलाई, लड्डू ,पेड़े, रसमलाई रे,
बाहर के जगमग के आगे लगे फीकी मिठाई रे,
बचपन का वो बेगानापन, बड़ा हर्ष बड़ाई रे,
दीवाली पर थी वो मस्ती नहीं कोई कड़ाई रे,
दीपावली क्यों ज्ञान नहीं, श्री राम का ध्यान नहीं बस दीप जलाई रे,
बहुत वर्ष के बाद है जाना, बचपन मे क्यों नहीं पढ़ाई रे,
आज समझ पचपन मे आई, आई दीवाली रे,
शिक्षा मे तब बड़ा झोल था, गोल मे सब इतिहास भूगोल बड़ी खटाई रे,
राम की मन्दिर भी बनपाई, थी हिंदू अंगड़ाई रे,
सर्वोच्च न्यायालय ने मुहर लगा, कर दी
भरपाई रे,
राम लला के दर्शन को अब जागे तरुणाई रे,
दीपावली का भाव समझ कर, खुशी मनाई रे,
राम राज्य में राम हैं आये,अवध ने दीप जलाई रे,
अब तो पूरी दुनिया जानी दीवाली है आई रे...........!