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कैसे कैसे दिखते हैं लोग,
अब अजनबी हो गए लोग,
डरे- सहमे से हो गए लोग,
अमर्यादित हो गए लोग !
घरों में कैद हो गए लोग,
पत्नी के मुरीद हुए लोग,
अपने वश मे नहीं लोग,
कश्मकश में अब हैं लोग !
बच्चों से भय खाते हैं लोग,
पत्नी से कतराते हैं लोग,
छिप कर रिश्ता निभाते हैं लोग,
रिश्तों से भी शरमाते हैं लोग !
खुद को अपना बताते हैं लोग,
झूठे सपने दिखाते हैं लोग,
कभी न अब मुस्काते हैं लोग,
जिन्दगी को बीमार बताते हैं लोग !
स्वयं को फरिश्ता बताते हैं लोग,
दूसरों मे कई खामियां गिनाते हैं लोग
ओस की बूँद मे दाग दिखाते हैं लोग,
दागदार हो,पहनावे चमकाते हैं लोग !
कई चेहरे बनाते हैं लोग,
झूठी हँसी दिखाते हैं लोग,
दुख दर्द मे कहाँ रिश्ता निभाते हैं लोग,
आने जाने मे भी बीमार बताते हैं लोग 

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