काशी (वाराणसी) मे जन्मी एक सुबाला,
मणिकर्णिका नाम बचपन के, प्यार से "मनु" ही सभी पुकारा,
पिता मोरोपंत ताम्बे- माँ भागीरथी बाई ने पुचकारा,
मनु बड़ी हो हुई छबीली, शास्त्र- शस्त्र शिक्षा का मिला सहारा,
बाल्य काल में सीख चुकी थीं, निशाने बाजी, घुड़सवारी, तलवार गुर से अपने अड़कर,
मराठा परिवार की बेटी ने युद्धाभ्यास किया था डटकर,
सन् 1850 ईस्वी मे शादी, विदा हुई झाँसी महाराज गंगाधर राव संग, लक्ष्मीबाई दुल्हन बनकर,
1851 ईस्वी में पुत्र रत्न हुआ, नाम दिया दामोदर,
बड़ी दुखद थी घटना वो जब चार माह में मृत्यु शैया पर पड़े पुत्र दामोदर,
गोद ले लीं राजा गंगाधर के भाई का पुत्र, दुलारतीं अपने पुत्र से बढ़कर,
तभी अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी पहुंचा अपना दल- बल लेकर,
प्रस्ताव भेजा 60000/- वार्षिक पेंशन ले लो, जाओ झाँसी किला छोड़कर,
सारे राजा नत्मस्तक हो गये, अंग्रेजों से डरकर,
कहने को बड़े मर्द थे, लेकिन बिन लड़े ही भागे छिपकर,
झाँसी की मर्दानी खड़ी हुई तब अपनी ताकत पर डटकर,
नाको तले चने चबवाया, अंग्रेजों के शिविर में घुसकर,
10 मई 1857 को मेरठ में झाँसी की मर्दानी ने ललकारी,
अंग्रेजों ने महल लूट ली, "रानी" आत्म समर्पण कर दो,
बम से उड़ाने की धमकी दे डाली,
रानी लक्ष्मीबाई बाई बन चुकी थीं तब
"झाँसी की मर्दानी,
आत्म समर्पण नहीं करूँगी, नहीं झुकूँगी, मरते दम तक युद्ध करूँगी"
आज़ादी का प्रण कर डाली,
सूरज उदय हुआ, मातृ शक्ति के साथ खड़ा था पूरा झाँसी, नेतृत्व करती
"झाँसी की मर्दानी"
खूब लड़ी मर्दानी, झाँसी की एक रानी होकर,
बड़े बड़े राजा आदेश पाल हो गए, अंग्रेजों के सामने झुककर,
तब झाँसी की मर्दानी खड़ी हुईं थी पहली महिला विद्रोही बनकर,
इनकी ताकत पर एक जुट होते गए राजा और रियासत मिलकर,
फिर भी कुछ राजा ने गद्दारी कर दी, उनकी मनोबल तोड़कर,
1857 की क्रांति का ज्वार चढ़ने लगा जन जन मे बढ़कर,
झाँसी की रानी के तीन घोड़े प्यारे "सारंगी" "पावन" "बादल तीनो एक से बढ़ कर,
लक्ष्मीबाई बाई जब सवार हों युद्ध कौशल मे चढ़कर,
झाँसी की रानी ने न सोचा था, लोग हमसे करेंगें मक्कारी,
ग्वालियर राज घराने ने कर दी बड़ी गद्दारी,
वहीं ब्रिटिश की सेना हो गई झाँसी की रानी पर भारी,
रानी को हर ओर से अंग्रेजों ने घेरा, उनके सैनिक पर जमकर की बमबारी,
5000 सैनिक शहीद हुए, खून से धरती लाल हुई थी सारी,
1857 के उस जंग में कहाँ छिपे थे बड़े वीर- सुरवीर ,
मर्दांगी पर शक होता है, कहाँ भागे थे युद्ध वीर - रणवीर ,
झाँसी की रानी ने अपना दुर्गा रूप दिखाया, कृपाण्- कटार - तलवार की मार से कितनों को दी चीर,
अंग्रेज देख भौचक्के सारे जंग में कौन है ऐसा वीर,
भारत माँ की बेटी लक्ष्मीबाई बनी माँ भवानी की तीर,
वीर शिवा जी आदर्श थे उनके, मार- काट कर घाव करें वो बेहद ही गंभीर,
झाँसी की मर्दानी थी वो, झाँसी की ही रानी, लक्ष्मीबाई, मणिकर्णिका, मनु, छबीली
"बुँदेलों" की गौरव गाथा मे वही थीं शक्तिवीर,
हम सब लेते "परमवीर चक्र" झाँसी की रानी को देनी होगी "दुर्गा चक्र"
"सुदर्शन चक्र" जो थीं आजादी के वीरों से वीर !! 

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