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1945 मे गुलाम भारत में ब्रिटिश सरकार ने मानभूम जिला ( वर्तमान धनबाद जिला) के सिंदरी नामक स्थान पर रूस के साथ समझौता कर एशिया के सबसे बड़े खाद कारखाना (F.C.I LTD) का आधार शीला रखा, निर्माण प्रक्रिया के दौरान सिंदरी औद्योगिक परिक्षेत्र मे उच्च स्तरीय तकनीकी सहयोग व रुस तकनीकी विशेषज्ञों के आवागमन के लिए सिंदरी से 3 किलोमीटर दूर बलियापुर मे "अस्थाई हवाई पट्टी" भी बनाया! निर्माण काल के 2 वर्ष बाद 1947 मे भारत आजाद हुआ, लोकप्रिय तात्कालिक प्रधानमंत्री मान्यवर जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व मे नई सरकार देश को मिली और अगली निर्माण प्रक्रिया पुराने समझौते के तर्ज पर चलते रहे!
कारखाना के निर्माण के दौरान और निर्माण के बाद 1952-1954 तक देश के कोने कोने से पढ़े लिखे लोगों, अभियंताओं, प्रबंधकों की नियुक्तियाँ प्रारंभ हुई, लगभग 11800 कर्मचारी नियोजित किये गए, जिनकी अंग्रेजी अच्छी थी, सेकंडरी और हाईयर सेकंडरी स्कूल परीक्षा पास किये लोग का बहुतायत में चयन किया गया ! कारखाना कई प्रयास के बाद उत्पादन के लिए तैयार था, उत्पादन प्रारंभ हुआ, वर्ष भर चलाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने उद्घाटन कर इस सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग को राष्ट्र को समर्पित करते हुए कहा कि यह देश का आदर्श आधुनिक मन्दिर है! यह बात "आम सभा" के दौरान शहरपुरा (सिंदरी) नेहरू मैदान में नेहरू जी ने कहा यद्यपि उस वक्त वो सिर्फ खुला मैदान था, जिसे उनके जाने के बाद "नेहरू मैदान" कहा जाता रहा, जो अब भी है! धीरे धीरे मजदूर और अधिकारी सभी कार्य कुशल और अनुभवी होते रहे, कारखाना नये उपकरण और मशीनों के कारण उच्चतम उत्पादन के लक्ष्य हासिल किया, लेकिन उन दिनों औद्योगिक सुरक्षा का कोई मानक नहीं था , सुरक्षा पर दुनिया में बहुत कम जागृति थी, हर एक दो महीने में किसी मजदूर का हाथ कट जाता, कभी दुर्घटना से मृत्यु होने लगी, कभी लोग दबकर मर जाते, यह विकट त्रासदी से कम नहीं था,अतएव जान हथेली मे लेकर असुरक्षित वातावरण में कार्य स्थल मे तैनाती रहती थी, क्योंकि सभी 18-20 वर्ष के युवा मजदूर और श्रमिक के पद पर बहुतायत में थे और 15-16 वर्ष मे ही सभी की शादी हो जाया करती थी, बच्चे भी जल्दी हो जाते और वैसे श्रमिक की कारखाने में मृत्यु या अपंग होने की दशा मे परिवार आर्थिक रूप से टूट जाता था, हर वर्ष 8-10 लोग कारखाने में दुर्घटना में मरते जबकि वर्ष मे 1-2 लोग बीमारी से भी मरते थे , औद्योगिक सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार के पहल पर वर्ष 1971 -1972 मे " राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद " का गठन हुआ और तब देश भर में सभी उद्योगों में विशेष रूप से " सुरक्षा के प्रशिक्षण और जागरुकता " के लिए सुरक्षा विभाग बनाकर मजदूरों को प्रेरित किया जाने लगा!
तब तक कितने मजदूर या तो कार्य के दौरान दुर्घटना में मर चुके थे और कई अपाहिज हो चुके थे, ऐसे मे प्रबंधन से सीधी बात करना बड़ा असहज था, मजदूरों के आश्रित असहाय हो दर्द से कराह रहे थे, तब ट्रेड युनियन की आवश्यकता महसूस किया गया और उस काल खण्ड में सबसे पहला इंडियन नेशनल ट्रेड युनियन कांग्रेस (INTUC), इंटक की संबद्धता से नई युनियन (FFW UNION) का गठन हुआ जो शीघ्र रजिस्टर्ड भी हो गया!
कुछ दिनों के बाद उसमे एक नेता ट्रेड यूनियनिस्ट ( श्रम संघीय) महा सचिव चुनें गए, नाम था राम देव सिंह लोग उन्हे " आर. डी." भाई के छोटे नाम से पुकारते, श्रमिकों की समस्या पर ईमानदार, मुखर और आक्रामक रहते, बहुत कम उम्र में श्रम समस्या का अच्छा अनुभव था उन्हे, कारण उन दिनों दूर गाँव से ही अधिकतर लोग सिंदरी नगर में आये थे, ऐसे में एक दूसरे से चट्टानी घनिष्ठता परिवार के अंग कि आपस में थे ! पूरा नगर एक परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गया, इंटक के महासचिव को सभी अपना परिवार लगने लगा, अब ऐसे मे कारखाने में किसी श्रमिक की दुर्घटना हो तो उनके आश्रितों के स्थाई नियोजन ( नौकरी) के लिए " आर. डी." बाबू भावावेश मे महाप्रबंधक या कार्मिक प्रबंधक से जोर देकर ऊंची आवाज़ मे बातें कर नियोजित कराते, जब कभी प्रबंधन और यूनियन कि टकराहट कि स्थिति आती प्रबंधन " आर. डी." को गिरफ्तार कर जेल भेज देती, जेल से लौटने के बाद फिर से "आर. डी. " उस दुर्घटना में मारे गए श्रमिकों के अश्रितों से मिलते और नियोजन न दिये जाने पर कारखाना प्रबंधन को चेतावनी देते, अनशन और आमरण अनशन, जुलूस, प्रदर्शन कर दबाव बनाते और फिर नहीं मांगे मानी गई तो प्रबंधकों को हाथा पाई भी कर देते, फिर गिरफ्तारी होती , यह सिलसिला चलता रहा, उनकी ईमानदारी, त्याग और मजदूरों के प्रति बढ़ती सहानुभूति ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया, कुछ दिनों में प्रबंधन भी झुक गई और मान ली की " आर. डी." अपने लिए नहीं करता सारे श्रमिकों के समस्या के लिए एक जुझारू नेता हैं, धीरे धीरे श्रम संघों की संख्या बढ़ी लेकिन विभिन्न विचारधारा के लोग भी " आर. डी." के आंदोलन का नैतिक समर्थन कर प्रत्यक्ष साथ देते, जैसे सभी आपस के कट्टर दोस्त हों, उस काल की दोस्ती में भी गजब की बात थी!
"आर. डी. " बाबू जेल से छुटकर आते
शहरपुरा( सिंदरी) कल्पना टॉकीज के गोलचक्कर मे हजारो मजदूर उनके स्वागत मे और माला लिए घंटों खड़ा रहते जैसे कोई फरिश्ता हों, वहाँ समाजवादी नेता या युनियन हों या कम्युनिस्ट युनियन या नेता सभी फूल माला से लाद देते और नारा लगाते " आर. डी " तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं ! आर. डी. बाबू कुछ वर्षो बाद गांव से पत्नी को लाते हैं, और इंटक कार्यालय के महा सचिव आवासीय कक्ष में सपत्नीक निवास करने लगते हैं, अपना आवास आबंटन नहीं कराते बल्कि, उन्हें 2 पुत्री कुछ अंतराल में होती हैं, फिर कुछ अंतराल पर पुत्र और फिर तीसरी पुत्री होती हैं ! सभी स्थानीय राजेंद्र स्कूल मे पढ़ते हैं, बार बार जेल जाने से घर के आर्थिक हालात चिंतनीय थे, क्योंकि ईमानदारी और सत्य निष्ठा उनकी ताकत थी, कभी दलाली नहीं किया उन्होंने लोकप्रियता का मूल कारण भी यही था, ड्यूटी समय से 15 मिनट पहले गेट से घुसना, समाप्ति समय से 15 मिनट बाद गेट पर लौटना, अनुशासन के मिसाल थे, कार्य क्षेत्र मे कतई लापरवाही नहीं!
लगभग 36 वर्ष के उम्र पर उनकी तबियत बिगड़ती है, डॉक्टर बताते हैं कि आपकी किडनी खराब हो गई है यह सब बार बार अनशन और आमरण अनशन का ही नतीजा था, उन्हें दिल्ली के ऐम्स ( AIIMS, HOSPITAL ) रेफर किया गया , वहाँ जांच के बाद डॉक्टर की टीम उनकी पत्नी और भाइयों से पूछती है परिवार की पूरी आर्थिक स्थिति का अध्ययन कर बताती है कि इनका बचना मुश्किल है और उन दिनों डाइलेसिस काफी मंहगा हुआ करता था, जिसके कारण उन्हें बचाया जाना संभव नहीं हो सका ! " आर. डी." को आभास हो चुका था अब वो अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहेंगे , 12 दिनों के बाद अपने छोटे भाई भरत को कहते हैं मेरे मृत्यु के बाद मेरी अंतिम इच्छा है गाँधी जी के राजघाट के पास नदी मे मेरा अंतिम संस्कार कराना, सभी भाई वहीं अंतिम संस्कार कर, वापस सिंदरी लौटते हैं, मृत्यु के समाचार से पूरा सिंदरी शोक की लहर मे डूबा था, एक तो ऐसा व्यक्तित्व, दूसरा इतना कम उम्र का युवा श्रमिक नेता " आर. डी." का निधन, उनके छोटे बच्चे, उनकी पत्नी जिसने उनकी कितनी जेल यात्राएँ देखी थी, शव यात्रा को कैसे देखीं होंगी ! पूरा सिंदरी सदमे में था ! कई दिनों तक सिंदरी, झरिया, धनबाद , माराफ़ारी ( बोकारो ) सभी जगहों पर शोक की लहर और शोक सभाएं हुईं ! "आर. डी." कम उम्र मे हर क्षेत्र मे इंटक युनियन बनाने में सक्रिय रहे, इसकारण लोकप्रियता बहुत थी, लेकिन एक ट्रेड युनियनिस्ट ( श्रम संघ वादी) का दुःखद अंत था!
धीरे धीरे "आर. डी. " की पत्नी सामान्य हो रही थी," आर. डी." के परम मित्र उन्हें भलाई समझ कर समझाते की भाभी जी बच्चों को लेकर गाँव चले जाइये, परिजन भी ऐसा ही समझाते लेकिन " आर. डी." की पत्नी माधुरी सब जानती थी कि छोटे बच्चों को गाँव में कैसे पालुङ्गी ? कैसे पढ़ाऊँगी उनकी पढाई नहीं हो सकेगी ? यह सब सोच कर माधुरी ने फैसला किया चाहे , जैसे भी हो हम यह इंटक के महासचिव का आवास नहीं छोड़ूंगी, बच्चों को यहीं से उच्च शिक्षित करूँगी!
जिस " आर. डी." ने कितनो मृत श्रमिकों के आश्रितों को नौकरी दिलाई थी, उनके लिए कहने वाले कोई नहीं रहे, उन दिनों " पेंशन " का प्रावधान भी नहीं था, इंटक के किसी नेताओं ने " आर. डी." की पत्नी को आवास खाली करने को नहीं कहा, यह बड़ी मेहरबानी थी, लेकिन प्रबंधन को नोटिस हर तीन महीने में आता कि आवास खाली करें अन्यथा बल प्रयोग कर खाली कराया जायेगा, नोटिस को माधुरी पढ़तीं और चपरासी के सामने फाड़ कर फेंक देती, बोलती आने दो फोर्स मैं नहीं खाली करूँगी, यह सिलसिला वर्षों चलता रहा, कभी कभी फोर्स को आता देख ताला मारकर भागना भी पड़ता, फिर अभियान खतम होते वापस आवास में घुस आतीं, इतनी हिम्मत और जज्बा तो महिला होकर सब मे संभव नहीं था, बच्चे आगे की पढाई करते गए, एक अहसान एफ. सी. आई. प्रबंधन का था कि क्लास-4 से लेकर कालेज की पढाई तक सभी बच्चे को कभी स्कूल फीस नहीं लगी, फ्री शिप मे पढाई पूरा कर सभी स्नातक और स्नातकोतर तक की प्रथम श्रेणी (टॉपर) शिक्षा ग्रहण किये ! सिंदरी कॉलेज मे एक बच्ची व्याख्याता भी रही, एक बच्ची बी. एड. कर वहाँ के एक स्कूल मे शिक्षिका भी रही, लड़के की नियुक्ति उत्तर प्रदेश मे हिंडाल्को बड़ी कंपनी मे हुई, सब की शादी विवाह भी उसी आवास से हुई, जहाँ सिंदरी के हजारों लोगों के स्नेह, आशीष और आशीर्वाद से माधुरी जी ने अनुशासन मे बच्चों को रखकर पारंपरिक रीति रिवाज से सबकी शादी कर माता पिता दोनों का स्नेह देकर कठिन तपस्या से बच्चों को शिक्षित कर एक उदाहरण पेश किया है ! सभी कार्यो से विमुक्त हो माधुरी ने इंटक का आवास खाली कर कारखाना प्रबंधन को सुपुर्द कर, अपने बेटे के साथ उत्तर प्रदेश चली गई और 12 वर्षों के बाद बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई, उनके बेटे ने वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अपनी माता (माधुरी) का अंतिम संस्कार कर उस महान मातृ शक्ति को तृप्त किया ! ऐसे होते थे ट्रेड युनियनिस्ट और उनके परिवार ! आज तो घर घर मे हो रहे दलाल ! इस कारण ही श्रमिकों का हो रहा बुरा हाल!
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