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स्वयंवर कराना अब आसान न रहा,
बुजुर्गों का बात मानना आशां न रहा,
पुराना रिश्ता निभाना आसान न रहा,
किरदार मे नया रिश्ता आसान न रहा!
पहले स्वयंवर से कोई परेशां न रहा,
माँ-बाप के फैसले से निराश न रहा, काले दुल्हे-गोरी दुल्ही का आस न रहा,
गोरे दुल्हे-काली दुल्हन का रिवाज न रहा!!
वो भी अजीब दौर था, बड़ों का बात सिरमौर था,
लंबे-नाटे,गोरे-काले, मोटे-पतले रिश्ता का दौर था,
दादा-दादी के बातों में ही रिश्तों का जोड़ था,
सिर्फ बातों ही बातों मे बनता रिश्ता बेजोड़ था!!
सैकड़ों वर्षों तक ऐसे रिश्तों में खुशियों का गठजोड़ था,
दिखता नये रिश्तों में महीनों में ही भांडाफोड़ था,
नई पीढ़ी क्या जाने संयुक्त परिवार में कैसा मोड़ था,
झूठी मुहब्बत, प्रेमजाल, मायाजाल तब त्रिकोण था!
गूंगी कन्या संग भी बहरे पति का रिश्ता समकोण था,
अंधे पति संग भी खूबसूरत पत्नी का रिश्ता परिपूर्ण था,
समता- विषमता मे भी सारा रिश्ता भाव पूर्ण था,
इतने विकृतियों मे भी सब का आदर न
द्वेषपूर्ण था!
पुरानी सभ्यता और संस्कार हर रंग मे सम्पूर्ण था,
भले ही मानव ज्ञान-संज्ञान मे पूरी तरह अपूर्ण था,
लेकिन प्रेम, स्नेह,समर्पण,भावना जमाने में पूर्ण था,
क्या टिकेंगे रिश्ते उन कसौटी पर
जो ज्ञान ही त्रुटि-पूर्ण था?
अब नये रिश्तों मे माँ-बाप परेशान हैं,
बच्चों की मर्जी ही बच्चों की शान है,
अंग्रेजियत ने चढ़ाया उन्हे परवान है,
माँ-बाप के सपनों को तोड़ता हैवान है!
आज के बच्चों का अजीब अरमान है,
बीबी की नौकरी और बीबी मे जान है,
बच्चों की खातीर, नौकरानी महान है,
माता पिता से बच्चों मे संक्रमण का ध्यान है!
न मान,न मर्यादा अब तो सब कुछ हराम है,
बुजुर्गों और वृद्धों मे मचा जोर कोहराम है,
वृद्धा आश्रम का चला अब नया आयाम है,
जीते जी लाश बन, सुनो गाली खुलेआम है!
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