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सभी कुछ धरा पर धरा ही रहेगा,
मानवता व ममता है जिन्दा यहाँ,
वही अंत तक बस जिन्दा रहेगा,
दिया हर सम्मान ही, आप का अभिमान हो
इसी मे आपका शान व गुणगान हो,
यही दुनिया में आपका अंतिम पहचान हो,
होगी स्नेह निज हर्षा से, सौहार्द की वर्षा,
जैसे गर्मी और सूखे मे बारिस की बरसा,
जिन्दगी यही, जो न सूखे, न सौहार्द को तरसा,
स्वर्ग यहीं है, नरक भी यहीं मिलेगा,
करनी का सुफल यहीं सब मिलेगा,
भक्ति और शक्ति का सुयश खिलेगा,
ये सोना, ये चाँदी ये बंगला, ये गाड़ी,
रखा यूँ रहेगा, बंद होगी मेरी और तेरी ये नाड़ी,
जिन्दगी के सभी राज दफन होकर भी भारी,
बहकती अदाएँ, उफन्ती घमंडे, लड़ और लडाई,
इन क़ाली कमाई से, झूठी बड़ाई,
हो कर रहेगा, धरा पर धराशाई,
यूँ ईश्वर की मन्नत मानते मनाते,
न तुम कुछ हो पाते न हम ही अघाते,
उन्ही का दिया सब, उन्हीं को चढ़ाते,
सभी कुछ धरा पर धरा ही रहेगा,
करम का लिखा जो, हो के रहेगा,
धरम-करम सारा अच्छा बचा ये रहेगा,
मिटाओ ये जकड़न, कलेजे का धड़कन,
गरीबों पर अकड़न, दौलत की सिकुड़न,
तभी ये उजाला, सवेरा रहेगा!
न तू छोटा दिखता, न मैं बड़ा रहूँगा,
मुहब्बत और मिल्लत से दोनों रहूँगा,
फरियाद किसकी मैं किससे कहूँगा?
झुकें थोड़ा हम- तुँ, तभी ये वतन भी रहेगा,
शिक्षित बनेंगे सभी, तभी ज्ञान का अन्तर मिटेगा,
तभी ये अँधेरा और कुहरा छंटेगा,
उठा लो कलम, भर लो स्याह लहू का,
हिन्दी का मशाल, भाल भारत का,
हृदय हो विशाल पहाड़ों का, दहाड़ शेरों का,
शांति का दर्पण हटाये जहाँ, अकड़ता ये भारत गरजने लगेगा,
सभी कुछ धरा पर धरा ही रहेगा, घमंड धराशाई होकर रहेगा,
न हम ही रहेंगे, न तुम ही रहोगे बस यादें ही दुनिया मे जिंदा रहेगा! 

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