आओ याद उन्हें भी कर लें
उनकी भी कुछ बातें कर लें,
भारत मूल के प्रथम अभियंता की,
अपने अंदर झाँकी भर लें,
मैसूर (कर्नाटक) मे जन्म लिए, बालक
मोक्षगुंडम प्रतिभाशाली शुभ शुभ था वो मुहूर्त ,
संस्कृत विद्वान श्री निवास शास्त्री के परम प्रतापी पुत्र,
माता वेंकाचम्पा के प्यार ने गढ़े थे अद्भुत सुपुत्र,
जन्मस्थान चिकबल्लापुर मे पढ़े वे हाई स्कूल,
केंद्रीय कॉलेज बंगलौर से शिक्षा को दिये उसूल,
छात्रवृत्ति का मौका पाकर सपनों में जड़े थे फूल,
पुणे मे इंजीनियरिंग पढ़ कर बॉम्बे विश्वविद्यालय में सर्व श्रेष्ठ अंको से टॉप कर भारत के बने प्रथम अभियंता मूल,
उस काल के पहले मूल बने तब बॉम्बे
विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की डिग्री व ज्ञान दिया बहुमुल्य,
विलक्षण प्रतिभा के धनी मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के, राष्ट्र समर्पित थे जीवन मूल्य,
भारत को उनके दर्शन, चिंतन से मिला बहुत है, नया विकास अतुल्य,
अंग्रेज शासक किंग जॉर्ज-5 ने भी लोहा माना उपाधि दी थी "सर"
स्वतंत्र भारत सरकार ने 1955 मे उन्हें "भारत रत्न" स्वीकारा,
मैसूर की जनता ने उन्हें था मैसूर का पिता पुकारा,
हैदराबाद को सिटी बनाकर दिखाये हमें ध्रुवतारा,
लेट लतीफी पसंद नहीं थे, ईमानदारी, अनुशासन जिनका था प्रबल सहारा,
92 वर्षों की आयु मे भी स्वस्थ रहे उन्हें काम सदैव था प्यारा,
रेल की चर्चा करनी होगी, जब रेल मे किये थे खबरदार,
अंग्रेज उन्हें तब पागल माने, जब जंजीर खीचें वो बारंबार,
सारे मिलकर घेर लिए कहें गलती है तेरी अपार,
सौम्य भाव से विश्वेश्वरैया बोले झगड़ो न हमसे यार,
नीचे चल कर साथ देख लो रेल ट्रैक कहीं टूटे खुले हैं दुर्घटना होगी जोरदार,
बातें इनकी सच निकली मिले आगे टूटे रेल ट्रैक जहाँ खुले, ढीले पड़े थे बोल्ट- नट जो जर्जर थे बेकार,
ऐसे उनके अनुभव थे कंपन्न पर इतने सूक्ष्म प्रयोग- बोध से अभियंता ने सिद्ध किया, बचाया सबका जान,
सारे अंग्रेज नतमस्तक होकर पूछे आपका नाम,
मृदु भाव से स्वयं कहे थे डॉ एम. विश्वेश्वरैया मेरा नाम,
देश को उन पर सदा रहेगा जन्म जन्म अभिमान,
भारत के तेज विकास का जिसने सपना किया साकार,
ऐसे तपे अभियंता को था भारत से गहरा प्यार,
आओ नमन उन्हें हम कर लें, जिनके राष्ट्र प्रेम से मिला भारत के विकास को रफ्तार,
शत शत नमन !! जय अभियंता ! जय अभियंत्रण !! 

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