चलो- चलें दशहरा हम सब आज मनाएँ,
झोंक आग दशानन को विजय पर्व मनाएँ,
ऐतिहासिक इस महापर्व का मानवीय भाव जगाएँ,
असत्य पर सत्य विजय का राम रूप
दर्शाएँ,
गहन चिंतन और विचारोत्तेजन से बड़ी बात हम पाएँ,
अपने-अपने अंदर बैठे कई रावण को
चलो आज जलाएँ,
ध्वंश रावण अग्नि प्रवाह में खुद के रावण दहन कराएँ,
हमने सब मे है रावण को पाया,
मेरा रावण कुम्भकर्ण सा सोया,
तेरा भी रावण दिल के अंदर रोया,
बहुतों ने अश्रु धार से रावण को धोया,
कई ने रावण रूप धर आदर्शवाद को खोया,
कई ने अध्यात्म-दर्शनवाद मे पाश्चात्य वाद का रावण बोया,
कई ने युवा जोश मे माँ- बहनो को
रावण बन दंश दर्द है घोला,
कई निर्दोषों पर अत्याचार, हत्या को
नक्सल-आतंकी रावण फोड़ रहे हैं गोला,
शांति प्रिय हिंदू सनातनी हम, हमने भी देश में पाले बहुत सपोला,
अब तो गीता, रामायण, वेद- पुराण का
चलो उठायेँ झोला,
कब तक सहकर चुप रहेंगे, मेरे अंदर बैठे बम- बम भोला ,
अपने अंदर का रावण फूंकने, आज धधकाएं शोला,
महाकाल का आशीष मिला है,माँ दुर्गा का ज्योति ज्वाला,
मर्यादा की रक्षा की खातिर पहनो राम सा राष्ट्रवाद का चोला,
पहला प्रहार खुद पर कर आज रावण का घोंटू गला,
वर्ना हर मिनट जन्म ले रहा यह रावण जलजला !!

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