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सिखाने के हर विधा के माहिर,
कला, विशिष्टता उनमें हो जाहिर,
शिष्ट - प्रतिभा जगाने मे गुर माहिर,
फिर पढ़ लिख हम बनते शातिर,

स्लेट पेंसिल हाथ सजाते,
वर्ण- शब्द के बोल बताते,
मुर्द्धा-तालु गिनती सारे हमे रटाते,
हर्स्व- दीर्घ का बोध कराते,

भाव अर्थ,शब्द वाक्य का सृजन कराते,
मार- पीट कर सभी पहाड़ा हमे रटाते,
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण सबके सारे भेद बताते,
शब्द भेद और वाक्य बनाना वही सिखाते,

सब बच्चों पर मेहनत करते, सबको साथ साथ समझाते,
जोड़- घटाव, संख्या बोध अंक गणित से बीज गणित तक सब फार्मूले बड़ी रटाते,
न कभी धर्म-जाति का बोध कराते, बड़े प्यार से हमे पढ़ाते,
कई विषय वो साथ पढ़ाते, कभी रुलाते, कभी हँसाते, शब्द बाण से टीस दिलाते,

सच्चे अच्छे, ठोक ठाक कर प्रतिभा मे वो चाँद लगाते,
नाटक, गायन, व्यायाम, खेल, भाषण, कविता, लेख निबंध मे कई दिनों तक
प्रतियोगी का भाव जागते,
वर्ष मे एक दिन सिर्फ शिक्षक दिवस पर खुशी प्यार से खुब ईठलाते,
हम सारे बच्चे अपने घर घर से बड़े बड़े उपहार थे लाते,

हर बच्चों के हर उपहार पर मेरे शिक्षक को बड़ी खुशी के आँसू आते,
काश वो भाव उसी वक्त हम ,थोड़ा थोड़ा समझ तो पाते,
मेरी उम्र अब छठे दशक पर, काश वो शिक्षक फिर मिल जाते,
बड़ी मनाते ,बड़ी खिलाते अब तो आँखें साथ मिलाते,
उनके शैक्षणिक तपस्या का हम अश्रु धार से चरण नहाते,

शिक्षक शिष्य के परम विधा का हम भी कुछ तो भान कराते,
5 सितंबर जब जब आते, हर एक शिक्षक बहुत याद हमे हैं आते,
चलो चलें हम ढूंढ लें उनको फिर से अपना फर्ज़ निभाते,
शिक्षक के उस त्याग से मिला हमे है ज्ञान,
दिवस बताता आज उनसे है अभिमान, चरण स्पर्श -प्रणाम कर 
खुदगर्जी का बोझ हटाते !!

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