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आदि मानव अज्ञान मे जन्मा था प्रति हिंसा,
ज्ञान कुछ बढ़ा तभी, अनुभूति से मिटा हिंसा,
उनके भूख तृप्ति भोजन में तब रहे थे हिंसा,
भावों मे चढ़ा प्रेम तो परिणाम हुई अहिंसा,
इतिहास कह रहा यहाँ लाखों कटे
फिर मर मिटे तब भी न थमी हिंसा,
मिट्टी का रंग लाल कर, न रुक सकी थी हिंसा,
तब धर्म युद्ध चल रहा, सब कर्म अपना कर रहा,न थम रही थी हिंसा,
वो दौर महाभारत का रक्तपात और हिंसा,
कुरुक्षेत्र रक्त रंजीत था, न रुक सकी ये हिंसा,
स्वयम् कृष्ण बने सारथी, ईश्वर ही युद्ध महारथी,
लेकिन सभी धर्मार्थ मे हिंसा थी न्याय स्वार्थी,
सदियों के बाद फिर हुई ये मार काट हिंसा,
सम्राट तब अशोक थे, हिंसा पर हुई हिंसा,
साम्राज्य के विस्तार में लाखों कटे और कट मरे " कलिंगा " मे बड़ा हिंसा,
हो लाल वो मिट्टी हुई, चलती रही थी हिंसा,
विक्षुब्ध स्वयं अशोक हो, अपनाये फिर अहिंसा,
भगवान राम के इस देश मे सत्य के बुनियाद पर तब भी खड़ी थी हिंसा,
राक्षस वो रावण लंका पति घमंड मे थी हिंसा,
उस क्रूर रावण से क्या राम करें अहिंसा?
असहज मूल आचरण,धर्म -
संस्कृति के मूल मे अहिंसा,
है गौ हमारी माता , कूत्ता है मेरे भैरव यह प्रेम स्नेह की छवि का सार है अहिंसा,
यह धरा, वसुंधरा, प्रकृति स्वरूप हरा भरा ,जल- नीर है अहिंसा,
बस प्रेम, स्नेह जग उठे , स्वयम ही मिटेगी हिंसा,
माँ भारती का भूमि ये, जहाँ राम, कृष्ण, बुद्ध, गाँधी का मूल मंत्र है अहिंसा,
चिंतन हो शुद्ध, बुद्ध तो अंगुलीमाल मे अहिंसा,
चींटी को मारना पाप हो, जीव हत्त्या भी अभिशाप हो ,भारत का मंत्र अहिंसा,
प्राणी मे भाव सद्भाव हो, विश्व का कल्याण हो , विचारों में हो अहिंसा,
यह विश्व धर्म चक्र का बुद्ध उपदेश है अहिंसा,
स्वछंदता, स्वतंत्रता हर जीव मे विनम्रता, पनपे वहाँ अहिंसा,
सोने की चिडिया विश्व की लुटा मुगलिया हिंसा,
खुद को ही मार काट के करते रहे थे हिंसा,
ब्रिटिश बंदूक- बारूद से भी खूब हुई थी हिंसा,
बुद्ध के उपदेश का गाँधी मे असर अहिंसा,
हिंसा के बाद शांति खोज,
हम देख रहे यह रोज रोज,
अहम् वहम घमंड मे विनाशकारी हिंसा,
विध्वंश- दंश विश्व में ताकत बड़ी अहिंसा,
विस्तार के बुनियाद पर यूँ जला रही है हिंसा,
खुद जिओ और जीने दो हृदय बसे अहिंसा,
जीव- जंतु हत्त्या पाप है, यह सोच है अहिंसा,
बुद्ध के इस विश्व मे न युद्ध हो न हिंसा,
समावेश सत्य, शांति हो, उपदेश बुद्ध अहिंसा,
हर काल खण्ड, युग में परम धर्म है अहिंसा!
"बुद्धम् शरणम् गच्छामि " से मिट पायेगा ये हिंसा,
विश्व शांति का मूल मंत्र है, भगवान बुद्ध का अहिंसा !! बुद्ध का अहिंसा!

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