वो कौन हैं देवी? जो माँ सीता के शाप से अभिशप्त हैं,
कचरे गंदी नाली खंगालती, आशा से हमें निहारती,
बजारु अंधाधुन दुग्ध दोहन से जन जीवन को पुचकारती,
हम पाश्चात्य जीवन शैली मे उसके हिस्से भी डकार गए,
खुद भरपेट व्यंजन मे उसे आँखे दिखा दुत्कार गए,
वो कौन है देवी? जो माँ सीता के शाप से अभिशप्त है...........
है देव वंश की वंशज वो, आगे से जूठा खाती वो,
उत्सर्जन मल मूत्र दे, जीवन वरदान बनाती वो,
कहते उसको अपशिष्ट सभी,पर गोबर से सारी पूजा स्वीकारती,
है कसम तुम्हारे दूध की माँ, जिस को पीकर सब बड़े हुए,
सर्वस्व समर्पण उस माँ ने किए, इंसानों के जीवन के ही लिए,
मक्कार हैं हम, गद्दार सभी जो पीते खाते उस माँ का प्यार लिए,
दुर्भाग्य है उस माता का, रोटी रोटी के टुकड़े को मोहताज वो हर घर घर पर है,
पशुता की जीवन शैली से अतिभार सदैव वो हम पर है,
वो कौन है देवी?.... जो माँ सीता के शाप से अभिशप्त है..........
आँखो से दुनिया देख रही, चर रही घास भी हरी- भरी,
अनुभूति उनकी पैनी है, फिर भी दशा घिनौनी है,
मानव से भाषा बोल नहीं, बस राज ज्ञान की बौनी है,
दुनिया हो गई लखपति, करोड़पति, उसकी रोटी अब कहाँ निकलती है?
जब भटक एक रोटी खाती है, मन ही मन वो इठलाती है,
उम्मीद भरे उस भावों से कैसे मांगे फिर से रोटी, अंदर अंदर बिलखाती है,
उस माँ के अपेक्षा स्वयं से जोड़ो, चुप रहकर भी वो डरती है,
हम, डंडे, पत्थर ,हस्त प्रहार कर मार मार न थकते हैं,
चोरी, रिश्वत के बूते पर बूचड़ खानों तक भेजते हैं,
मानव तन मन लेकर भी माँ देवी को जूठन फेंक खिलाते हैं,
सोंचों फिर से चिंतन कर लो क्या उस माँ को उनके भी हक हम देते है?
वो कौन है देवी? जो माँ सीता के शाप से अभिशप्त हैं?
वो कट भी रही, काटी जा रही, लंगड़ी, बीमार, लाचार भी वो,
सब को देती है दूध शुद्ध, न पूछती जाति भेद, न करती मजहब मे विभेद,
कब लगेगा उस माँ के काटे जाने पर प्रतिबंध है खेद,
करती सब को तृप्त, करती सबका उद्धार है माँ,
नूतन घर का प्रवेश द्वार है माँ,
बैतरिणी बेड़ा पार है माँ,
वो कृष्ण मुरारी की माता, बस वही हमारी माता है,
हर पर्व, महापर्व में उनकी पवित्र दूध से सबका नाता है,
वो कौन है देवी ? कोई और नहीं, माँ से भी बढ़कर माँ है माँ... गौ माता है... गौ माता है!
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