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इंसानों से कोई तो खता हुईं होगी, वरना यूंही नहीं कुदरत ने ये सज़ा लिखी होगी। क्या दोष रहा होगा बच्चो का,जो कैद कर दिया घरों में, क्या गलती की पंछियों ने जिनको उड़ने से रोक दिया गया। ये 4G,5G क्या है? क्या पहले जिंदा नहीं थी जिंदगी? किस को कहूं किस की गलती पहले रही होगी।

किसकी बदौलत सहम गया भय से ये संसार, किस की वजह से मर 2 के जिए लोग, मौत भी बेहतर लगी जिंदगी से। रखी रह गई दौलत, दुआओं और कर्मों का था असर जो वापिस लौट आए कुछ लोग अपने घर मौत के मुंह से। वरना इस महामारी ने तो दुश्मनी ही ना जाने किस जन्म की कर ली थी। एक सांस ही तो है, जो जिंदा होने का अहसास दिलाती रही,वरना देह तो कब की ठंडी पड़ गई थी इस महंगाई और लाचारी से। इस सांस को भी कैद कर दिया गया कपड़ो से बने मास्क के टुकड़ों से। और नीलाम कर दिया गया सांसों को भर कर लोहे के सिलेण्डर में। खूब करी अति मानव ने, काट हरियाली और प्राकृतिक को, बाद में देश को विदेश बनाने में दूषित किया पर्यावरण को। ना नौकरी छोड़ी ना पढ़ाई की बची ललक छात्रों में, हो गए बच्चे घर बैठे पास, अव्वल आ गए विद्यार्थी बिना परिक्षा के।

स्कूल हो गए बंद, और खुले रहे ठेके शराब के, एक बैड भी खाली ना था अस्पताल में।

बिचारा गरीब मर गया खड़ा राशन की दुकान की लगी कतार में। ना युवाओं के हौसले की कद्र, ना बूढ़ों के सम्मान की खबर, ना बच्चों की किलकारियों की लहर, सब हो गया शांत बस बजती रही छतों पर थालियां।

जो सोच रहे थे,अगले वर्ष ये करेंगे,वो करेंगे,वही सोच में पड़ गए, कि अरे छोड़ो सब,जान बचाओ रही जान तो जिंदगी में फिर सब कुछ करेंगे।

- रजनी सिंह

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