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आज हम बात करेंगे एक ऐसे पर्वत के बारे में जो हिमालय पर्वत से भी पुराना है । एक ऐसा पर्वत जिनमें बहोत सारे रहस्य छिपे हुए है और उनके साथ कई सारी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है । भगवान दत्तात्रेय का प्रमुख स्थान इसी पर्वत को माना जाता है । इस पर्वत के चारों ओर एक ऐसी दिव्य अलौकिक शक्तियां मोजूद है जिनका भेद निकालना असंभव है । इस पर्वत की गुफाओं में २०० - ३०० वर्षों से भी ज्यादा वर्षों के सिद्ध साधुओं और संन्यासियों रहते है और योग साधना करते है । तो चलिए बात करते है - गुजरात के सबसे रहस्यमय पर्वत गिरनार के बारे में । साथ ही जानेंगे उसके इतिहास और रोचक तथ्यों के बारे में ।

गिरनार ज्वालामुखी द्वारा बना हुआ पर्वत है । गिरनार पर्वत गुजरात राज्य के जूनागढ़ शहर से ५ किमी दूर पांच पर्वतो का समूह है । इस पर्वत के कुल मिलाकर ९९९९ पगथिये (steps) है । इस पर्वत के कुल पांच शिखर है जिसमें गोरख की ३६०० फूट, अंबाजी की ३३०० फूट, गौमुखी की ३१२० फूट, जैन मंदिर की ३३०० फूट और माली परब की १८०० फूट की ऊंचाई है । जहां पर ८४ सिद्ध साधुओं और ९ नाथ बिराजित है । पौराणिक ग्रंथों में गिरनार को रैवत, रैवंत, रैवतक, कुमुद, रैवताचल और जैन धर्म में उज्जयंत पर्वत के नाम से जाना जाता है । इस पर्वत समूहों पे कुल ८६६ मंदिर आए हुए है । भवनाथ का मंदिर गिरनार पर्वत का केंद्र स्थान है । भाविक भक्तो भवनाथ मंदिर में दर्शन करके यही से गिरनार पर्वत चढ़ने की शुरुआत करते है । यह पर्वत हिमालय पर्वत से भी पुराना है । पीछले २२ करोड़ सालों से यह पर्वत यही स्थित है । गिरनार को कई उपमाएं दी गई है । गिरनार की गोद में काफी सारे रहस्यों, अलौकिक शक्तियों, आध्यात्मिक और कुदरती सौंदर्य से भरपूर १८ भार औषधि और जड़ी बूटियों वाली वनस्पतियां है । यहां सिद्ध साधुओं, अघोरी, नागा साधुओं का स्थान है और वे लोग तपस्या करते है, इसी लिए इसे "साधुओं का मायका" भी कहते है । गिरनार पर्वत को भगवान दत्तात्रेय का मुख्य स्थान माना जाता है ।

  • अब हम गिरनार पर्वत के इतिहास के बारे में बात करेंगे । 

गिरनार के साथ कई सारी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं ।

जैसे पहले कहां की गिरनार पर्वत हिमालय पर्वत से भी पुराना है, इसी लिए उसे "हिमालय पर्वत का पितामह" भी कहां जाता है । यह पर्वत २२ करोड़ साल पुराना पर्वत है । पौराणिक साहित्य की एवं हमारे हिन्दू देवी देवताओं की कथाएं इस पर्वत के साथ जुड़ी हुई हैं । वैदिक ऋषियों मे से भृगु और च्यवन ऋषि की कथाएं, महाभारत की पांडव कथा, कृष्ण कथा और अश्वत्थामा कथा, रामायण की राम लक्ष्मण और हनुमान धारा की कथाएं तथा पुराणों में शैवकथा, शाक्तकथा, मृगीकथा, मुचकन्द कथा, रेवती कथा, भूतप्रेत से संबंधित काली महाकाली कथाएं, पांडव गुफा और कालिका, सती अनुसूया से संबंधित और कहीं सारी पौराणिक कथाएं गिरनार से जुड़ी हुए है ।

गिरनार पर्वत पर देवी पार्वती "माता अंबाजी" के रूप में विराजित है । पौराणिक कथा के अनुसार - जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के देह के ५२ टुकड़े किए तब यहां पर देवी सती का पेट (उदर) का भाग गिरा था, इसी लिए ये जगह "उदयन शक्तिपीठ" के नाम से जानी जाती है । गिरनार के सानिध्य में अंबाजी माता का अति प्राचीन और पश्चिमाभिमुख मंदिर आया हुआ है । जिसका निर्माण १३ वी सदी में वस्तुपाल द्वारा गुर्जर शैली में किया गया था । इस मंदिर के गर्भगृह में माता अंबा मुखारविंद रूप में विराजित है ।

दंतकथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि - भगवान शिव को गिरनार की भूमि हिमालय से भी अति प्रिय थी । एकबार शिवजी कैलाश पर्वत को त्याग कर यहां गिरनार की भूमि पर आए और तप साधना करने बैठ गई । वो अपनी साधना में इतने लीन हो गए की वो अपना कैलाश पर्वत और परिवार सब कुछ भूल गए । तब माता पार्वती ३३ कोटि देवताओं के साथ शिवजी को ढूंढने निकले और ढूंढ़ते ढूंढ़ते यहां गिरनार की भूमि पर पहुंचे । और उन्होंने देखा कि शिवजी यहां पर विराजित थे । माता पार्वती को भी यह भूमि बेहद अच्छी लगी । तब से भगवान शिव यहां भवनाथ महादेव के रूप में हमेशा के लिए बिराजमान हो गए । माता पार्वती गिरनार की गोद में माता अंबाजी के रूप में बिराजमान हो गए और ३३ कोटि देवताओं को भी यहां विराजित होने के लिए कहां ।

पौराणिक काल में भवनाथ मंदिर "भवेश्वर" के नाम से जाना जाता था । आदि अनादि काल से गिरनार पर्वत के सानिध्य में भगवान शिव का "भवनाथ महादेव" के रूप में निवास स्थान है । भवनाथ महादेव का उल्लेख स्कंधपुराण में भी किया गया है । भवनाथ मंदिर की बगल में पवित्र मृगीकुंड आया हुआ है जिसमें प्रत्येक शिवरात्रि पे महादेव अदृश्य रूप में इस कुंड में स्नान करने आते है ऐसा कहा जाता है । श्री भवनाथ महादेव के दर्शन मात्र से ही भवो भाव के दुख़ टल जाते है । गिरनार पर्वत के प्रवेशद्वार समान भवनाथ मंदिर के गर्भगृह में एक स्वयंभू भवनाथ महादेव का शिवलिंग है । और उसके बाजु में दूसरा एक शिवलिंग है जो चिरंजीवी अश्वत्थामा द्वारा स्थापित किया गया था । ऐसा कहा जाता है की आज भी अश्वत्थामा महा शिवरात्रि के दिन अदृश्य रूप में मृगी कुंड में स्नान करने आते है ।

मोक्षदायिनी गंगा गिरनार पर्वत पे "गौमुखी गंगा" के रूप में बहती है । इसी लिए यह स्थान अति पवित्र है । पौराणिक कथा के अनुसार - श्री सत्यधाम ऋषि ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए एक हजार साल तक तपस्या की, पर फिर भी भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न न हुए । तब आकाशवाणी हुई की - "तुमने बाल्यावस्था में पानी पीने जाती हुए प्यासी गाय को लाठी मारकर पानी नहीं पीने दिया था । इसी पाप के वजह से में तुम्हे दर्शन नहीं दे सकता ।" यह सुनकर जब ऋषि ने देहत्याग करने का विचार किया तब फिर एक बार आकाशवाणी हुई के - "तुम रेवत (गिरनार) पर जाकर तपस्या करो, तुम्हे पापो में से मुक्ति मिलेगी ।" आकाशवाणी सुनकर ऋषि ने रेवत पर्वत जाकर एक हजार साल तक तपस्या की । तपस्या से प्रसन्न होकर मा अंबा ने दर्शन दिए और इसके साथ ही ऋषि ने मा गंगा की स्तुति की तब मा गंगा गौमुखी में से प्रकट हुए । ऋषि ने इस गौमुखी गंगा के जल से स्नान किया और अपने सारे पापो में से मुक्ति पाकर उसने वैकुंठ में वास मिला । गिरनार स्थित बहती गौमुखी गंगा में स्नान करने से स्वर्ग के कल्पवृक्ष समान सुख और पुण्य मिलता है ।

गिरनार पर्वत भगवान दत्तात्रेय की साधना भूमि है । यहां के कण कण में गुरु दत्तात्रेय की अनुभती होती है । पूरे भारत देश में सिर्फ गिरनार ही एक मात्र स्थान है जहां गुरु दत्तात्रेय के चरणारविन्द आए हुए है । ऐसा कहा जाता है कि - ब्रह्मा विष्णु महेश के स्वरूप में प्रगट हुए गुरु दत्तात्रेय ने गिरनार में १२००० साल तपस्या की थी । गिरनार के शिखर पे आया हुआ गुरु दत्तात्रेय का षटकोण आकार का मंदिर त्रेतायुग के समय का है ।

मगध वंश का नाश करने के बाद जब सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने समग्र भारत पर विजय पताका लहराते लहराते, ईसा पूर्व - ३२२ के बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र भी जीत लिया था । उस समय सौराष्ट्र का पाटनगर जूनागढ़ था । चन्द्रगुप्त ने यहां पे पुष्यागुप्त नामक अपना एक सुबा रखा था, यहां की व्यवस्था संभालने के लिए । पुष्यगुप्त ने यहां सुवर्णसिक्ता नदी पर सुदर्शन नामक तालाब का निर्माण करवाया था । सम्राट अशोक के सुबा - तुसाच्य ने उसमें नहरे खुदवाकर सिंचाई का काम शुरू करवाया था । स्कंदगुप्त के पर्णदत्त नामक सुुबा ने अतिवृष्टि से टूटे हुए सुदर्शन तालाब को फिर से बनाया था । मौर्य वंश के राजाओं द्वारा लिखे हुए शिलालेख यहां गिरनार पर्वत पर है । ईसा पूर्व - ११५२ के आसपास राजा कुमारपाल ने यात्रियों के लिए गिरनार पर्वत में सीढ़ियां बनाई । बदलते समय के साथ यात्रिको की सरलता के लिए ओर सुविधाएं उपलब्ध कराई गई । आज गिरनार पर्वत तक पहुंचने के लिए गुजरात सरका द्वारा रोप वे - उड़नखटोले की व्यवस्था की गई है ।

गिरनार के साथ सती राणक देवी की कथा गुजरात में बहुत प्रचलित है । १० - ११ वी सदी के दौरान जब राजा सिद्धराज जयसिंह ने जूनागढ़ पर आक्रमण कर वहां के राजा रा'खेंगार को मारकर उसकी रानी राणक देवी को ले जा रहा था, तब सती राणक देवी ने अपने भाई गिरनार के पास मदद मांगी थी । सती राणक देवी ने गिरनार को कहां की -

"गोझारा गिरनार, वलामण वेरीने कियो ?
मरता रा'खेंगार, खडेडी खांगो न थियो ?"

इसका अर्थ ये है कि - अपने राजा को मरते हुए देखकर भी अभी भी तुम खड़े हो ?? यह सुनकर गिरनार पर्वत लड़खड़ाने लगा । उसके पत्थर नीचे गिरने लगे । धीरे धीरे वो पर्वत पूरे तरीके से गिरने वाला था । अगर ये पर्वत के पत्थर लगातार गिरने लगा गए तो पूरा जूनागढ़ शहर और उनके लोगो का नाश हो जाएगा । ऐसा सोचकर रानी राणक देवी ने अपने दोनो हाथ ऊपर करके अपने भाई गिरनार पर्वत को "पड़मा पड़मा मारा आधार " कहकर शांत रहने को और ना गिरने को कहा । और गिरनार पर्वत की गिरती हुई शिलाएं वहां स्थिर हो गई , कुछ शिलाएं तो लटकी हुए है मानो वो अभी गिरेगी । आज भी ऐसे लटके हुए पत्थर है, और उनपे सती राणक देवी के हाथ के निशान है । इस प्रकार की शिलाएं ऊपरकोट और निचलोकोट किल्ले में देखने को मिलती है ।

सुवर्णरेखा नामक नदी गिरनार की सबसे पौराणिक नदी है । पृथ्वी को पावन करने के लिए नागराजा की आज्ञा से पाताल में से यहां गिरनार क्षेत्र में अवतरित हुई थी ।

भगवान कृष्ण के भाई बलराम की शादी रेवती से हुई थी । देवी रेवती भी इस गिरनार पर्वत से जुड़ी हुई है ।

  • अब हम गिरनार के पर्यटन स्थल के बारे में बात करेंगे । 

 गिरनार पर्वत पांच पर्वतो का समूह है । इस पर्वतमाला में पौराणिक गुफाएं, कुएं, वाव (स्टेप वेल), मंदिर, कुंड आए हुए है ।

गिरनार का प्रथम शिखर पर जैन देरासर आया हुआ है । वह भगवान नेमीनाथ के चरणारविन्द से पावन हुआ एक दिक्षाकल्याणक, ज्ञानकल्याणक और मोक्षकल्याणक तीर्थ स्थान है । परम शांति की अनुभूति कराता और मोक्ष का द्वार माने जाते इस देरासर में चौदह जिनालय आए हुए है, जो अति प्राचीन, कलात्मक है । इस देरासरो का निर्माण वस्तुपाल तेजपाल द्वारा किया गया है । जिसमें भगवान नेमीनाथ का जिनालय प्रमुख स्थान पर है । श्री नेमीनाथ भगवान के मंदिर के प्रांगण में अधिष्ठात्री देवी माता अंबाजी की मूर्ति है । दक्षिण द्वार में प्रवेश करते ही इस जिनालय में अत्यंत आकर्षक रंग मंडप आता है, जो ४१.६ फूट चौड़ा है और ४४.६ फूट लंबा है । मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री नेमीनाथ की श्यामवर्ण प्रतिमा है । जिसके दर्शन मात्र से ही भक्तो की सारी थकान दूर हो जाती है और केवल परम शांति की अनुभूति होती है । भगवान नेमीनाथ की प्रतिमा दुनिया की सबसे प्राचीन प्रतिमाओं में से एक है ।

गिरनार पर्वत की सबसे ऊंची टूंक (शिखर) गुरु गोरखनाथ की है । जहां पे गुरु दत्तात्रेय के पावन चरणारविन्द है । पौराणिक कथा के अनुसार - कलयुग की आरंभ के समय भगवान विष्णु ने कलयुग जी यातनाओं और पृथ्वी पर होनेवाली आपत्तियों के निराकरण के लिए योगियों में श्रेष्ठ ऐसे नव नारायणों को आमंत्रित किया । यह नव नारायणों "नव नाथो" के रूप में भगवान विष्णु के ही अवतार है । नाथ संप्रदाय के नव नाथ में से एक गुरु गोरखनाथ (गुरु दत्तात्रेय) यहीं पर विराजित है । यहां उनका दिव्य एवं अखंड धुनों (यज्ञ) और उनके पावन चरणारविन्द मोजूद है, जो युगों युगों से भक्तो को पावन करते आए है । यहां पर भगवान दत्तात्रेय का षटकोण ( छः कोनेवाला) आकार का प्राचीन मंदिर भी आया है । इस पवित्र तीर्थ स्थान पे २६ फूट ऊंचा और १५१ किलो के वजन का एक धर्म ध्वजा स्तंभ स्थापित है । यहां ध्वजा स्तंभ गिरनार की पवित्रता में दिव्यता अर्पण करता है ।

गिरनार पर्वत चढ़ने से पहले भवनाथ मंदिर के पास ही मृगी कुंड आया है, जहां प्रति वर्ष महा शिवरात्रि पर नागा साधुओं और संन्यासीयों स्नान करते है । ये साधुओं सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही इस कुंड में स्नान करने के लिए डुबकी लगाते है । मृगी कुंड में अति प्राचीन नदी सुवर्ण रेखा का जल बहता है और इसका जल अमृत समान है । महा शिवरात्रि के दिन मृगी कुंड में सिद्ध साधुओं, अघोरी बावाओ का शाही स्नान गिरनार की तलेटी में आध्यात्मिकता का अनुभव कराता है । इस कुंड में पवित्र नदी सुवर्ण रेखा का जल बहता है, इसी लिए इस अमृत समान जल के स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है । नवनाथ और चौरासी सिद्धों के स्थानक ऐसे गिरनार पे भर्तुहरी, गोपीचंद, अश्वत्थामा का वास है । और ऐसा कहा जाता है की - शिवरात्रि के दिन मृगी कुंड में होने वाले शाही स्नान में यह चिरंजीवियों और खुद महादेव भी साधु रूप में स्नान करने के लिए आते है । इस शाही स्नान में जितने भी साधुओं ने डुबकी लगाई होती है, उसमे से एक साधु बाहर नहीं निकलता, क्योंकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो चुकी होती है ।

गिरनार पर्वत पर रहस्यमय कुंड आए हुए है जैसे की - भीम कुंड, गजपद कुंड, कमंडल कुंड और दामोदर कुंड । भीम कुंड का जल गर्मी के मौसम में भी शीतल रहता है । यह कुंड जैन देरासर के पास आया हुआ है । गजपद कुंड में चौदह हजार नदियों का जल बहता है । इस कुंड के पानी में स्नान करने और उसका पानी पीने से हम रोगमुक्त हो जाता है । इस कुंड का पानी स्वास्थ्य के लिए गुणकारी है । कमंडल कुंड का निर्माण भगवान दत्तात्रेय के यहां पर कमंडल फेंकने से हुआ था । इस कुंड में अखुट जल है । दामोदर कुंड की बात करे तो आदि कवि नरसिंह महेता प्रातःकाल अपने प्रभातिया गाते गाते यहां स्नान करने आते थे । ब्रह्माजी द्वारा निर्मित दामोदर कुंड में - गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी, क्षिप्रा, चर्मण्यावती, गोदावरी आदि पवित्र नदियों का जल बहता है । इस कुंड में मनुष्य के अस्थियां विसर्जित करने से वो जल्द ही पिगल जाती है और उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है । इसी लिए लोग इस कुंड में अस्थियां विसर्जित करने आते है । यह जल काफी शुभ माना जाता है ।

गिरनार में कश्मीर की अनुभूति करता स्थल - पत्थर चट्टी की जगह है । यह गिरनार की बेहद खूबसूरत जगह है, और रहस्यमय भी । ऐसा कहा जाता हैं की - रामानुज संप्रदाय के श्री नरहर स्वामी २०० साल पहले गिरनार पे तपस्या करने के लिए आये थे । यहां पे उसने नुकीले पत्थरों के बीच कड़ी तपस्या की थी । इस जगह पे अपनी भक्ति साधना की दिव्यता अर्पित करके १२५ वर्ष की आयु में श्री नरहरी स्वामी देव हो गये थे । और गिरनार के पर्वतों में ही वो समा गये थे ।

इसके अलावा गिरनार पर्वत के विस्तार में ऊपरकोट किल्ला, नीचलाकोट किल्ला, धक्का बारी, बौद्ध गुफाएं, राणक देवी के थापा (पंजे की निशानियां), अडी कड़ी वाव, नवघण कुवा, अनाज कोठा, नरसिंह मेहता का चौराहा (चौक), अशोक शिलालेख, आदि जैसे पौराणिक स्थानों आए हुए है ।

गिरनार पर्वत की दो महत्वपूर्ण बाबत बहुत प्रख्यात है : महा शिवरात्रि का मेला और लीली परिक्रमा ।

गिरनार की गोद में भवनाथ की तलेटी में यहां प्रतिवर्ष महा शिवरात्रि बड़े धूमधाम से मनाई जाती है । यहां गिरनार के अघोरी, सिद्ध संतो - साधुओं, नागा साधुओं, संन्यासी का मेला लगता है, और यही साधु संतो को देखने के लिए देश के कोने कोने से लोग यहां यह मेला देखने आते है । क्योंकि यही एक ऐसा दिन है जब ये सारे अघोरी, सिद्ध संतो, साधुओं अपनी गुफा में से निकलकर बाहर आते है । महा शिवरात्रि पर आयोजित होने वाले इस मेले को "भवनाथ का मेला" कहां जाता है । यह मेला प्रति वर्ष महा वद नवमी तिथि से शुरू होकर महा वद अमावस्या यानी की शिवरात्रि के दिन खत्म होता है । इस मेले के साधु, संस्कृति और समाज का पवित्र त्रिवेणी संगम देखने को मिलता है, और चारों ओर जय गिरनारी, महादेव... महादेव की गूंज सुनाई देती है । मेले की शुरुआत भवनाथ मंदिर पर ध्वजा चढ़ाकर होती है और पूर्णाहुति मृगी कुंड में शाही स्नान से खत्म होती है । मेले में ये इन साधुओं की रवेडी (शोभायात्रा - procession) निकलती है, जिसमें ये सब साधुओं लाठी, तलवार, भाला, पट्टे बाजी से कर्तब दिखाते है । अंग पर भभूत लगाई हुए ये जटाधारी साधुओं इस मेले का मुख्य आकर्षण होते है । अंत में ये सब साधुओं मृगी कुंड में शाही स्नान कर डुबकी लगाकर इस शिवरात्रि का समापन करते है । इस कुंड में सब नागा साधुओं स्नान करते है और इनमें से एक को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है ।

अब बात करते है गिरनार पर्वत की लीली परिक्रमा की । जो लोग ये पर्वत चढ़ नहीं सकते वे लोग गिरनार पर्वत की चारों ओर प्रदक्षिणा करते है जिसे लीली परिक्रमा कहां जाता है । इसकी शुरुआत कारतक सुद एकादशी तिथि से शुरू होकर पूनम यानी कि देव दिवाली तक चलती है । इस परिक्रमा में गिरनार के पांचों पर्वतों की प्रदक्षिणा करते हुए ३६ किमी तक का रास्ता बीच जंगल में से काटना पड़ता है । यह परिक्रमा कुल ५ दिनों की होती है । यात्रियों अपने साथ रसोई का सामान अपने साथ में ले जाते है । पूरे दिन जंगल में से रास्ता काटते है और रात्रि को जहां पहुंचे हो वहा ठहर जाते है । पहले के समय में सबको खाना बनाने का सामान साथ के जाना पड़ता था । पर अब तो परिक्रमा के पूरे रास्ते में संस्थाओं द्वारा भोजन - शरबत के केंप, अन्नक्षेत्र हर जगह पर पाए जाते है, जिससे यात्रियों को खाने के मामले में ज्यादा दिक्कत नहीं होती । परिक्रमा के दौरान जंगल में बहुत सी प्राचीन जगहें देखने को मिलती है और इनका एक अलग ही अनुभव होता है । इस परिक्रमा का इतिहास २४००० साल पुराना है । पहले ऋषि मुनियों ये परिक्रमा करते थे और अब मनुष्यो द्वारा यह परिक्रमा की जाती है ।

  • अब हम गिरनार पर्वत के बारे में कुछ रोचक बातें करेंगे ।
    • हिमालय से भी पुराने इस गिरनार पर्वत में काफी सारे गेबी यानी की गुप्त रहस्यों, अलौकिक शक्तियां, दिव्यता, आध्यात्मिकता और कुदरती सौंदर्य से भरपूर १८ भार वनस्पतियों और जड़ी बूटियों का ख़ज़ाना है ।
    • गिरनार को "वस्त्रापथ क्षेत्र" भी कहां जाता है क्योंकि यहां सिद्ध साधुओं ने अपने वस्त्रों त्याग कर तप साधना की थी ।
    • गिरनार के सानिध्य में सदैव "आदेश" का नाद गूंजता है । आदेश - नाथ संप्रदाय का अति पावनकारी मंत्र है । आदेश का मतलब महादेव ।
    • गिरनार की गुफाओं में बसते नाथ संप्रदाय के सिद्ध साधुओं, संन्यासीओ "अलख निरंजन" बोलते है । अलख का मतलब शिव होता है और निरंजन का मतलब परमात्मा । इसी लिए अलख निरंजन का अर्थ है - निर्गुण निराकार परमात्मा । शिव निर्गुण है, निराकार है, इसी लिए नाथ पंथ के साधुओं अलख निरंजन बोलते है ।
    • गिरनार पर्वत में १८ भार वनस्पतियां मौजूद है । एक भार का मतलब है : २०,२१,७६००० जितनी संख्या, और यहां गिरनार में तो अढार भार जितनी अधिक संख्या में कुदरती वनस्पतियां है, जिसमें औषधियां, जड़ी बूटियां शामिल है, जिससे काफी सारी बीमारियों का इलाज हो सकता है । इन १८ भार वनस्पतियों में ४ भार फल वाले वृक्ष, ४ भार बिना फल के वृक्ष, ४ भार कांटे वाले वृक्ष और ६ भार लत्ताओ जैसी झाड़ियों का समावेश होता है ।
    • ऐसा कहा जाता है की - इस गिरनार पर्वत की जगह पहले समुद्र था, और समय जाने के बाद वह समुद्र द्वारका की ओर चला गया था । इसी लिए आज भी गिरनार में समुद्री वनस्पतियां पाई जाती है ।
    • गिरनार के पांचों पर्वतों में कुल मिलाकर ८६६ मंदिर है । सभी पर्वत के दादर (steps) एक पर्वत के शिखर से दूसरे की ओर ले जाता है । अब सरकार द्वारा रोप वे की सुविधा भी है, जिससे अंबाजी पर्वत तक पहुंच सकते है ।
    • गिरनार और दातार डुंगर के बीच नवनाथ आया हुआ है जिसे ८४ सिद्ध की टेकरी कहते है । और अब ये "टगटगीया डुंगर" के नाम से जाना जाता है ।
    • गिरनार में ऐसी वनस्पतियां है, जिसकी जड़ों को पकाके (खिचड़ी) खाने से ६ महीनों तक भूख नहीं लगती ।
    • गिरनार की पहाड़ियों में अनेकों गुफाएं और गुप्त स्थानों है । जहां पर अनेकों साधु, संत, महंत, सिद्ध, योगी, अघोरी, महात्माओं ने बसकर अपनी तप साधनाओं को सिद्ध किया है ।
    • आज भी गिरनार की गुफाओं में २०० - ३०० सालों से भी ज्यादा समय से आत्मध्यान में लीन विभूतियां (साधुओं) पाए जाते है। जैन ग्रंथों तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार - यक्ष आदि अनेक आत्माएं भी यहां गिरनार में बसती है ।
    • गिरनार में बसते सिद्धो - महंतो, जटाधारी साधुओं के चमत्कारों की काफी सारी बातें वहां के लोगों से और यात्रियों से सुनने को मिलती है ।
    • एक चमत्कारिक किस्सा सुनते है - एकबार कुछ यात्रीगण गिरनार में रास्ता भूल गए थे, तब वो लोग किसी साधु की गुफा के पास पहुंच गए थे । उस योगी महात्मा ने उन लोगो को सहानुभूति देकर शांति से बिठाया। और खाने के लिए वृक्ष के कुछ पत्ते दिए, वो पत्ते उन लोगो को स्वाद में पापड़ की तरह लगे और उससे उन लोगो की भूख भी मीट गई । बाद में उस योगी महात्मा ने उन लोगो के जख्मों की सारवार करके उन लोगो को किसी रास्ते तक छोड़ने गए और वे लोग उनकी असली जगह पर आ गए थे । दूसरे ही दिन वे लोग यह गुफा के स्थान पर आए तो, वहां न कोई गुफा थी और न कोई योगी ।
    • गिरनार की शिलाओ में करोड़ों साल पुरानी वनस्पतियों के अवशेष मिलते है।
    • गिरनार की गुफाओं में बसते नागा साधुओं सिर्फ महा शिवरात्रि के दिन ही बाहर निकलते है । वे लोग भवनाथ के मेले में अपने अजीबो गरीब अकल्पनीय करतबों से सबको मंत्रमुग्ध कर देते है । और बाद में मृगी कुंड में शाही स्नान कर वापिस गुफा में चले जाते है ।
    • गिरनार में साक्षात गुरु दत्तात्रेय की अनुभूति होती है । गिरनार की कथानिधी में वह सबसे प्रमुख स्थान पर है । योगमार्ग में जिसकी सर्वोच्च देव के रूप में पूजा होती है, वो दत्तात्रेय योगियों और नाथ संप्रदाय के गुरु है उसी तरह भूत प्रेत आदि के निवारण कर्ता एवं मोक्षदाता भी है ।
    • गिरनार को कथानिधि कहां गया है । कथा का मतलब कहानी और निधि का मतलब ख़ज़ाना । गिरनार के साथ काफी सारी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है, जिसका मुख्य माध्यम गिरनार पर्वत है । हमारे हिन्दू धर्म के ३३ कोटि देवी देवताओं से लेकर उज्जैन का राजा विक्रमादित्य और उसके बड़े भाई राजा भरथरी भी गिरनार के साथ जुड़े हुए है । राजा भरथरी उज्जैन में अपना सारा राजपाट छोड़कर यहां गिरनार में तप साधना करने आए थे । आज भी यहां उनके नाम की गुफा - भरथरी गुफा और स्थान - भरथरी स्थान मौजूद है ।

तो यह बात थी - हमारे गेबी गिरनार पर्वत की । जो काफी रहस्यमय कथाओं और अलौकिक शक्तियों से भरपूर है और करोड़ों सालों से यहां अपने रहस्यों के साथ बैठा हुआ है । गिरनार के बारे में लिखने जाए तो पन्नों भी कम पड़ेंगे, क्योंकि उनके बारे में लिखना और उनका इतिहास भी उसी की तरह गहरा और बड़ा है । एक ऐसा पर्वत जो सदियों से संतो, महंतो, जोगियों, अघोरियों, साधुओं का निवास स्थान रहा है और खुद महादेव का भी यह प्रिय स्थान है । कभी गुजरात जाओ तो जूनागढ़ के गिरनार पर्वत की मुलाकात जरूर लीजिएगा । 

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