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नृत्य हमारे जीवन में बहुत ही अहम भूमिका निभाता है। हमारे देश में बहुत सारे प्रख्यात नृत्य है जैसे की - कथक, कथकली, भरतनाट्यम, गरबा, घुम्मर आदि। नृत्य का उद्देश्य किसी कहानी और घटना को अभिनय के माध्यम से दर्शाना होता है। अपनी भावनाएं और विचारो को नृत्य के तौर पे दर्शाता है। हमारे यहां दो तरह के नृत्य देखने को मिलते है - क्लासिकल और लोक नृत्य । आज हम जानेंगे की नृत्य की शुरुआत किसने की थी? नृत्य के प्रेरणास्त्रोत कौन है? और संसार में सबसे पहला नृत्य किसने किया था। हम सबने नटराज और भगवान शिव के तांडव नृत्य के बारे में तो सुना ही होगा। हम सबने देखा होगा कि कोई क्लासिकल डांसर अपने नृत्य की शुरुआत नटराज की मूर्ति को प्रणाम करके करता है। सभी डांस एकेडमी और स्कूल में भगवान नटराज की मूर्ति पाई जाती हैं। नटराज की मूर्ति सामान्य रूप से कांस्य से बनी हुई होती है या तो फिर पत्थरों से बनी हुई हैं। नटराज की मूर्ति भगवान शिव के आनंद तांडव का स्वरूप है। ऐसा कहां जाता है की सभी प्रकार के नृत्य का उद्भव भगवान शिव के तांडव की मुद्राओं से ही हुआ है। भगवान शिव के इस नटराज स्वरूप को नृत्य के स्वामी भी कहां जाता है। आज तक हमें सिर्फ यहीं पता था की भगवान शिव सिर्फ क्रोध में ही तांडव करते है, पर ऐसा नहीं है भगवान शिव का ऐसा तांडव नृत्य भी है जिसमें वो खुशी से आनंद - उल्लास के साथ तांडव नृत्य करते है । भगवान शिव क्रोध में रौद्र तांडव करते है, सृष्टि का विनाश करने के लिए और आनंद तांडव करते है जब वो खुश होते है। भगवान का ये आनंद तांडव सृष्टि के निर्माण के लिए भी है । भगवान के इस नृत्य को कॉस्मिक डांस भी कहां जाता है जिसका अर्थ होता है - ब्रह्मांडीय ऊर्जा का नृत्य। भगवान का नटराज स्वरूप वाला यह नृत्य काफ़ी रहस्यमय है। उसकी हरेक मुद्राएं कुछ न कुछ संदेश देती है ।

पहले हम यह जानेंगे की भगवान शिव किस तरह से नटराज कहलाएं ? उसने क्यों ऐसा रूप धारण किया था ?

स्कंध पुराण के अनुसार - अपस्मार नामक एक बौना राक्षस था, उसे अज्ञानता, भ्रम, अभिमान का स्वामी कहा जाता है। मिर्गी के रोग का जनक भी अपस्मार ही है। वो अपनी शक्तियों से लोगो की चेतनाओं को हर लेता था और लोगो की मती को भ्रमित कर देता था। उसे अमर होने का वरदान प्राप्त था। अपने इसी वरदान की वजह से वो सभी लोगो को परेशान करता था। धीरे धीरे उसे अपने अमरत्व का घमंड आ गया था। एक दिन कुछ ऋषिगण अपनी पत्नियों के साथ यज्ञ कर रहे थे। ऋषियों को भी ऐसा अभिमान आ गया था की उन लोगों की सिद्धियों की वजह से ही पृथ्वी टिकी हुई है। उन लोगो का अभिमान तोड़ने के लिए भगवान शिव और पार्वती, दोनों एक सामान्य भिक्षुक के रूप में वहां आई। इन दोनों को देखकर ऋषि पत्नियों यज्ञ में से उठकर उनको प्रणाम करने आए, किन्तु ऋषियों नहीं आए। उल्टा वो लोग तो यज्ञ में विघ्न डालने के बदले भिक्षुक दंपतियों पर सांप छोड़ देते है, पर वो तो महादेव थे इसी लिए सांप उसके पास आकर भस्म हो गए। ऋषिगण दानव अपस्मार को बुलाते है। अपस्मार अपनी शक्तियों की मदाद से माता पार्वती की चेतना को हर लेता है और माता बेहोश हो जाती है। ये सब देख भगवान शिव क्रोधित होकर उस बौने राक्षस अपस्मार को अपने दाहिने पैर के तले दबाकर, उस पर तांडव करने लगते है। इस तांडव से अपस्मार का सारा अभिमान, अज्ञान चूर चूर हो जाता है। क्रोधित हुए शिवजी को शांत करने के स्तुति करने लगते है और अपस्मार को निष्क्रिय करने की विनंती करते है, क्योंकि अपस्मार का जिंदा रहना भी जरूरी है। अगर अपस्मार नहीं होगा तो कोई विद्या अर्जित करने के लिए नहीं आएगा। सबको सब कुछ याद रहेगा तो कोई गुरु के पास शिक्षा लेने के लिए नहीं आएगा। इसीलिए भगवान शिवने उसे अपने पैरो तले दबाकर रखा है।

अब हम बात करेंगे के - नटराज की मूर्ति के बारे में, उनकी मुद्राओं के बारे में।

चार भुजाओं वाले भगवान नटराज भ्रम के ब्रह्मांड में नृत्य करते है, जो इस ब्रह्मांड के अंदर चलाती सारी क्रिया - प्रतिक्रियाओं को दर्शाता है। नटराज के इस तांडव नृत्य को ' कॉस्मिक डांस ' भी कहां जाता है, जिसका अर्थ होता है ब्रह्मांडीय ऊर्जा। इस तांडव नृत्य का हेतु मनुष्य को 'स्व' और भौतिक विश्व के विचारो में से मुक्ति दिलाने को होता है । ऐसा कहां जाता है कि - भगवान शिव ने अपना ये कॉस्मिक डांस दक्षिण भारत के चिदंबरम में किया था , इसी लिए उसे ब्रह्मांड का केंद्र भी कहते है।

चार भुजाओं वाले नटराज के आसपास गोलाकार अग्नि होती है, जिसे 'प्रभा मंडल ' के नाम से जाना जाता है। ये ज्वलंत वलय ब्रह्मांड की तमाम पीड़ा, भ्रम, वेदनाओको दर्शाता है। ये अग्नि शिवजी के पैर से शुरू और ख़तम भी वही होती है, जो दर्शाता है की संसार की सारी चीजे भगवान शिव के आधीन है। आदि और अंत शिव से शुरू और शिव से ख़तम है।

नृत्य के दौरान भगवान नटराज के बिखरे हुए बाल समाज के अस्वीकार का प्रतीक है। जो उसे सन्यासी दर्शाते है, जो संसार की सारी मोह माया से परे है। वो पत्नी और परिवार के साथ गृहस्थ की भूमिका के विरोधाभासी है।

शिवजी के मस्तिष्क पर खोपड़ी है, जो उनकी मृत्यु पे जीत का प्रतीक है। इसके अलावा शिवजी की जटा में देवी गंगा विराजित है, जो अपने घातक प्रवाह के कारण पृथ्वी पर अवतरण होने से डर रहे थे। स्वर्ग में बहती हुई नदी गंगा को जब पृथ्वी पर अवतरित होना था, तब वह अपने घातक और रफ्तार भरे जल स्त्रोत की वजह से पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए तैयार नहीं थे। तब भगवान शिवजी ने उसे कहा था की वो उसके प्रवाह को अपनी जटाओं में जकड़ लेंगे जिसकी वजह से गंगा नदी धीरे धीरे पृथ्वी पर अवतरित होगी। और देवी गंगा शिवजी की जटाओं में से पृथ्वी पर पहले हिमालय और उसके बाद उत्तर भारत में बहने लगी थी।

शिवजी के मस्तिष्क पर विराजित अर्ध चन्द्र काम जो रात्रि के प्रेम के देव है उसे जीवंत रखता है। चंद्रस्त से वह विविध ऋतुओं का सर्जन व जीवन को पुनर्जीवित करते है।

शिवजी के ऊपर के हाथ और गले में लपेटा हुआ सांप देखने को मिलता है, जो संसार के घातक जीवो पर अपना प्रतिनिधित्व दर्शाता है। हिन्दू धर्म में सांप यानी की नाग देवता को पूजा जाता है। सांप की खाल उतरने की प्रक्रिया मनुष्य की आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में जाती है, उनको दर्शाता है।

यहां पे शिवजी के चार हाथ है। जिसमें ऊपर के दाहिने हाथ में उसने डमरु पकड़ा है जो सृष्टि सर्जन का प्रतीक है। डमरु के लयबद्ध ताल से वह सृष्टि के निर्माण को दर्शाता है और सृष्टि सर्जन का नृत्य करते है। डमरु बजाकर वह ब्रह्मांड का पुनः सर्जन करते है।

शिवजी के उपर के बाये हाथ में अग्नि है जो सृष्टि के विनाश का प्रतीक है। भगवान शिव एक हाथ से सृष्टि का सर्जन करते है तो दूसरे हाथ से विनाश। अग्नि की ज्वाला विनाशक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है।

शिवजी के निचे वाला दाहिना हाथ "अभय मुद्रा" में है, जो "डरो नहीं" का संदेश अपनी मुद्राओं से देता है।

शिवजी का निचे वाला बाया हाथ जो नीचे की ओर जूका हुआ है और बाया पैर की ओर है , वो आशीर्वाद और कृपा के लिए है। उठा हुआ बाया पैर शिवजी के शरण एवं मोक्ष का संकेत देता है। जिसका अर्थ होता है की को शिवजी के चरणों में समर्पित होगा उस पर सदैव शिवजी की कृपा बरसती रहेगी।

शिवजी के दाहिने पैर के नीचे एक राक्षस दबा हुआ है। यह अपस्मार नामक एक बौना राक्षस है जो भ्रम, अज्ञानता और विस्मृती का प्रतीक है। वो अपनी शक्तियों से सबको भ्रमित कर देता था, इसी लिए शिवजी ने अज्ञानता के इस अभिमानी असुर को अपने पैरो तले दबाके रखा है। यह हमें ये संदेशा देता है की - भ्रम, अज्ञानता, अभिमान - इन सबका भगवान शिव का कुछ नहीं चलता और भगवान इनका सर्वनाश करते है।

भगवान शिवजी का इस नटराज रूपी आनंद तांडव को कॉस्मिक डांस भी कहां जाता है और Dance of Bliss भी कहां जाता है। भगवान का यह नृत्य सर्जन - विसर्जन का वैश्विक चक्र और जन्म - मरण के दैनिक लय का प्रतीक है।

भगवान नटराज का यह आनंद तांडव नृत्य शाश्वत ऊर्जा की पांच मुख्य अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करते है - सर्जन, विसर्जन (विनाश) , संरक्षण, मुक्ति और भ्रम।

अब हम नटराज की मूर्ति के बारे में कुछ विशेष बाते करेंगे।

नटराज का यह रूप कला, धर्म और विज्ञान का प्रतीक है । मतलब की कला, धर्म और विज्ञान का प्रतीकात्मक रूप है।

शिवजी के रौद्र और आनंद तांडव के अलावा अन्य तांडव भी है जैसे की - संध्या, उमा, गौरी, कालिका, त्रिपुरा । इन नतांडव नृत्यों के जरिए वो अपने मन के भावों को प्रदर्शित करते है।

नटराज का यह आनंद तांडव नृत्य सृष्टि के सर्जन का है। भगवान शिव हरेक युगों में नई सृष्टि की रचना के लिए नृत्य करते है । जीसका अर्थ है - No Dance No Creation, नृत्य नहीं तो सर्जन नहीं।

नटराज की नृत्य मुद्राओं में से ही सारे शास्त्रीय नृत्यों का जन्म हुआ था । इसी लिए उसे नृत्य का स्वामी कहां जाता है।

नटराज के आनंद तांडव नृत्य के दौरान उन्होंने १४ बार डमरु का नाद किया था। इसी के आधार पर संस्कृत व्याकरण के रचयिता महर्षि पाणिनी ने चौदह सूत्र वाले "रुद्राष्टाध्याई माहेश्वर सूत्र" की रचना की थी।

मिर्गी के दौरे को अपस्मार भी कहते है, क्योंकि अपस्मार सबको भ्रमित कर उसकी चेतना हर लेता था। अपस्मार को मिर्गी के रोग का जनक कहा जाता है।

नटराज अन्य नामों से भी जाने जाते है जैसे की - सबेसान, नर्तेश्चरा, नृत्येश्वरा।

नटराज की पत्थर से बनी मूर्तियों और शिल्पो इलोरा और बदामी गुफाओं में से मिली है, जो छठवीं सदी के दौरान पहली बार देखने को मिली थी। दसवीं सदी के समय की चौला वंश की नटराज की कांस्य से बनी हुई मूर्ति भी मिली थी।

नटराज की बाई बाजु भौतिक शक्तियों को दर्शाते है और दाहिनी बाजु आध्यात्मिक शक्तियों को दर्शाता है।

नटराज की चारों ओर अग्नि की ज्वालाएं है जो उनके पैरो से शुरू होकर उन्हीं के पैरो पर ख़तम होती है। जो दर्शाता है की संसार की सारी चीजे शिव के आधीन है।

साल - २००४ में स्विट्जलैंड के जिनीवा शहर के पास CERN नामकी एक वैज्ञानिक संस्था के आंगन में भारत सरकार की परमिशन से २ मीटर ऊंची नटराज की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इस संस्था में विश्व के सबसे प्रतिभावान ऐसे १२०० वैज्ञानिकों यहां पे नटराज से प्रेरणा लेकर ब्रह्मांड के आदि और अंत और बिग बैंग के बारे में रीसर्च कर रहे है। भगवान नटराज का कॉस्मिक डांस ब्रह्मांडीय ऊर्जा को दर्शाता है। इसी वजह से वैज्ञानिकों अपने भौतिक शास्त्र के संशोधनों के कार्य में नटराज के कॉस्मिक डांस पर भी रीसर्च कर रहे है।

वास्तु शास्त्र के हिसाब से घर में नटराज की मूर्ति नहीं रखनी चाहिए।

तो यह बात थी भगवान नटराज की और उसके रहस्यमय नृत्य की। नो डांस - नो क्रिएशन के जरिए हमें सिखाता है की सर्जन के लिए भी नृत्य करना पड़ता है। जो दर्शाता है की संसार की सारी चीजे भगवान शिव के आधीन ही है। शिव ही शुरुआत है और शिव ही अंत है।  

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