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प्रोजेक्ट लायन एक गुजराती नवलकथा की किताब है, जो डॉ. आई. के. विजलीवाला द्वारा लिखीं हुई है, यह नवलकथा गीर के जंगल के शेरों पर आधारित है । भारत में सबसे ज्यादा एशियाटिक लायन गुजरात राज्य के जूनागढ़ के पास सासन गीर नामक जंगल विस्तार में पाए जाते है । गीर के शेर गीर और गुजरात की शान है । यहां शेर को सावज कहते है । बड़ा सिर होने के कारण उसे "डालामथ्था" सावज कहते है । गीर जंगल के आसपास के गांव वाले भी जंगल के शेर से डरते नहीं, बल्कि वो लोग तो ऐसा मानते है की ये हमारे रक्षक है । और जो हमारी रक्षा करता है, उससे क्यां डरना !! इस किताब में गीर जंगल के शेरों के व्यवहार में अचानक से आए हुए बदलाव, गांव वालो और फॉरेस्ट अधिकारियों की चिंता का विषय बन गया था, उसके बारे में लिखा गया है । और गीर की गरीमा के समान इन शेरों को बचाने के लिए ऑफिसर्स अपनी नौकरी तक दांव पर लगा देते है । शेरों के प्रति जो एक अलग सा लगाव, चिंता है, वो इसमें देखने को मिलता है । तो किस तरह से इन गीर के शेरों को एक बड़े खतरे से इन फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारियों द्वारा बचाया गया, उनके बारे में इस किताब में नवलकथा के रूप में लिखा गया है । तो चलिए, गीर के शेरों की शानदार कहानी जानते है ।

वैसे तो गीर के शेर बहोत ही मासूम और समझदार होते है, बिना वजह किसी इंसान का शिकार भी नहीं करते थे । वो गीर के आसपास के गांव, खेतों में टहेलने आते थे और तालाबों में पानी पीने आते थे और शांति से वहां से चले जाते थे । पर पीछले कुछ दिनों से न जाने इन शेरों को क्या हो गया की गांवों में आकर इंसान और पशुओं को सिर्फ घायल करने लगे थे । सिर्फ घायल करते थे, शिकार नहीं, उनकी हत्या भी नहीं करते थे । अगर शिकार करना हो तो वह अपने शिकार को मारकर, उसे घसीट कर दूर ले जाके खाते थे । गांव में आकर पशुओं के तबेले में पशुओं को बड़ी बेरहमी से पैरो पर अपने धारदार नाखूनों से घांव पहोंचाते थे । उनका बदलाव कुछ इन्सानों के भांति हो गया था, मानो वो इन्सानों की भावना समझने लग गए थे की, ये इंसान हमारा शिकार नहीं है । वो लोगो को घरों में इन्सानों की तरह दबे पांव तबेले में घुंसकर, इन्सानों के भांति तबेले के दरवाजा का हुक खोलते थे और पशुओं को घायल करते थे । पीछले पंद्रह दिनों से गीर के नजदीकी गांवों में यह अजीबो गरीब घटनाए हो रही थी, इससे गांव वाले भी ताज़्जुब थे । पहले शेरों गांव की किसी घरों में घुंस जाते थे, तो गांव वाले उसे डांग (छोटी लकड़ी) दिखाकर अथवा तो उसे डांटकर भगा देते थे । पर अब ये शेरों मानो जिद्दी हो गए हो, उसी तरह गांव में घुस जाते तो वहां से हिलने का नाम नहीं लेते थे । लोग सामने अग्नि का ताप करते थे, फिर भी वहां से नहीं हिलते थे, यहां तक की बंदूकों की गोलियों का भी उन पर कोई असर नहीं होता था । ऐसा लगता था मानो ये शेरों गांव वालो को ये एरिया खाली करने के लिए बोल रहे हो । गीर का आसपास का पूरा एरिया जंगल ही था, ये सब गांव जंगल विस्तार में आते थे । पहले तो शेरों कभी कभी ही गांवो में आते थे, पर अब तो ये उन लोगो को रोज़ का हो गया था । ये शेरों ८ या १० की टोली में आते थे और गांवो में डेरा जमाके बैठ जाते थे ।

शेरों की इस हरकतों की वजह से गांव वालोने गीर के फॉरेस्ट अधिकारियों को इस बारे में शिकायत की । अधिकारियों ने भी वहां पहोंचके पूरी तरह से लोगो से पूछताछ की और छानबीन की । ये अधिकारी लोग भी बड़े चिंता में थे, क्योंकि गीर के शेरों के बारे में रोज़ बहुत सारी फरियादे आने लगी थी । अनूप सिंह गीर क्षेत्र के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में ACFO थे । जैसे ही गांव वाले शेरों के बारे में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में शिकायत करते थे, तब तुरंत ही अनूप सिन्हा की टीम वहां पहुंच जाती थीं । और घायल हुए पशुओं और लोगो को अस्पताल पहुंचाते थे । शेरों के बर्ताव को रूबरू देखने के लिए अनूप सिन्हा और उनकी टीम शाम को गांव पहुंच जाती है । वहां का दृश्य देख के अनूप जी समेत सारे लोग चौंक गए, उसने देखा की इस बार तो शेर एक आदमी के ऊपर ही बैठ गया था । और दूसरे शेर लोगो को डराने और पशुओं को घायल करने में लगे थे । हर बार शेर अकेले आने के बजाए, ग्रुप में आते थे । ताकि उन पर कोई हमला कर सके । इन शेरों पर किसी भी तरह के हमले की कोई असर नहीं हो रही थी । यहां तक की उन पर डार्ट (नींद में लाने वाला इंजेक्शन) भी दूर से फेंका गया, तो उनका भी असर नहीं हो रहा था । यह मामला अब गांधीनगर तक पहुंच गया था । वहां के Principal Chief Conservator Forests के डिपार्टमेंट यह शिकायत पहुंचाते है । उन लोगो ने तो शेरो को दूसरे राज्य में भेजने का निर्णय ले लिया था, परन्तु अनूप सिन्हा ये नहीं चाहते थे की गीर की शान के ये शेर दूसरे राज्य में जाए । उन्होंने शेरो के बदले हुए बर्ताव के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए १० दिनों की महोलत मांगी । इसी लिए उन्होंने अपनी फ्रेंड अंजलि की मदद ली, जो Zoology की प्रोफेसर थी, और वो "प्राणी के बदले हुए बर्ताव" के विषय पर Ph.D कर रही थी । अब प्रोफेसर अंजलि भी इस टीम में जुड़ गई थी । अब गांव वालो के फोन करने के तुरंत बाद ही ये टीम उस जगह पर पहुंच जाती थी । इस बार तो शेरों के ब्लड के सैंपल लेने थे, शेरों के बदलते बर्ताव की जांच के लिए । इसे बड़ौदा स्थित एक लेबोरेटरी पर भेजने को था, और उसका रिपोर्ट गांधीनगर Principal Chief Conservator Forests - डिपार्टमेंट में भेजना था । इसी लिए इस बार अनूप सिन्हा की टीम गांव में पहुंच गई और आए गांव में हुए शेरों पर दूर से टेलीस्कोप गन की मदद से डार्ट फेंका गया, करीब दो - तीन डार्ट फेंके गए । इस की वजह से शेरों को नींद आ गई और सो गए । अंजली जी इन सोये हुए सारे शेरों के सैंपल ले लिए और उन शेरों की आंखो के फोटोग्राफ्स भी । अंजली मैडम भी शेरों की आंखो को देखकर चौंक गई की - नींद के इंजेक्शन से शेरों की आंखो चौड़ी होने की बजाए, सिकुड़ गई थी । उनको साफ साफ पता चल गया था की - शेरों के साथ कुछ तो अजीब हुआ है । शेरों की मानसिकता में काफी बदलाव आ गया था । उनका IQ काफी हद तक बढ़ गया था, वो इन्सानों जैसा सोचने लग गए थे । जिससे वो समझने लगे थे की किसका शिकार करना है और किसका नहीं । उन लोगो में मानो इन्सानों जैसी विचारधारा आ गई थी । वो लोग समझने लगे थे की इंसान उनका शिकार नहीं है । अंजली जी ने इन सारे शेरों के ब्लड सैंपल, उनकी आंखो के फोटोग्राफ्स और उन्होंने जो शेरों की चौंका देने वाली घटनाएं देखी उन सबका एक अहवाल बनाकर, इमरजेंसी में बड़ौदा लेबोरेट्री में भेज दिया । रिपोर्ट तुरंत ही दो दिनों में आ गया था । और रिपोर्ट में बड़ी ही चौंका देने वाली बातें सामने आईं । ब्लड सैंपल के रिपोर्ट से यह पता चला की - "शेरों के खून में ऑर्गेनोफॉस्फेट नामका ज़हरीला तत्व घुल गया था, जिनका सीधा असर उनके चेताकोषो पे हो गया था । इस जहरीले तत्व की वजह से ही शेरों अजीब तरह से बर्ताव करने लग गए थे । और यह ज़हरीला केमिकल इन शेरों में पीने के पानी से आया था । शेरों जब पानी पीने के लिए तालाब में जाते थे, तो वहां का पानी पीने से ही वो केमिकल उनमें आ गया था । खेती में पेस्टीसाइड्स युक्त दवाई का उपयोग होने के वजह से वहां की जमीनें और तालाब का पानी भी केमिकल वाला दूषित हो गया था । और ये केमिकलयुक्त पानी पीने की वजह से ही वो ज़हरीला तत्व उन लोगो में आया ।" इन सब बातो की जानकारी स्टेट फॉरेस्ट ऑफिसर और Principal Chief Conservator Forests - डिपार्टमेंट को दी गई । और शेरों को दूसरे राज्य में भेजने के बजाए उन शेरों की सारवार करने के लिए "सेव लायन" नामका प्रोजेक्ट शुरू किया । इस प्रोजेक्ट का मिशन गीर के शेरों का इलाज़ करके उन्हें पहले की तरह नॉर्मल करने को था । शेरों को नॉर्मल कंडीशन में लाने के लिए उनको एट्रोपीन और ओबीडोक्षाइम के डोज दिए गए । लगभग छः महीने तक ये इलाज़ चला । और छः महीने बाद हमारे गीर के शेरों पहले की तरह मासूम और समझदार हो गए थे । गीर के जंगल की रौनक पहले की तरह हो गई थी । गांव वाले भी सुखी थे , शेरों भी मस्त से जी रहे थे । और फॉरेस्ट अधिकारियों ने अब जाके राहत की सांस ली थी । सेव लायन प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक सम्पन्न होने पर Principal Chief Conservator Forests - डिपार्टमेंट - गांधीनगर में एक छोटी सी पार्टी और सम्मान समारोह रखा गया । वहां अनूप सिन्हा, उनकी टीम और अंजली मैडम का सम्मान किया गया । पार्टी के दौरान अनूप सिन्हा का ध्यान भारतीय फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के Logo पर गया, उस पर संस्कृति में वाक्य लिखा था - "अरण्य: ते पृथ्वी स्योनमस्तू ।" जिनका अर्थ होता है - जंगल पृथ्वी का आनंद है । ये वाक्य देखकर अनूप सिन्हा को एक अलग ही राहत हुए, क्योंकि गीर के शेर अब सुरक्षित थे और वो वहीं रहने वाले थे । और गीर का जंगल अब पहले की तरह शेरों की गूंज से गाजेगा ।

तो यह बात थी - गुजरात की शान ऐसे गीर के शेरों की । गांव वाले गीर के शेरों को अपना मानते थे । शेर जब घुस जाते थे तब, अपने बच्चे के भाती उन्हें डांटते थे और शेर भी आज्ञाकारी बच्चे की तरह चले जाते थे । यह लोग शेरों को अपना रक्षक मानते थे । हमें देखने को मिला की शेरों को बचाने के लिए फॉरेस्ट अधिकारी अपनी नौकरी तक दांव पर लगा देते है । शेरों को बचाने के लिए दिन रात एक कर देते है । ये भी देखा की - प्रकृति के नियम या उनके तत्वों (प्राणियों) में ज़रा सा भी बदलाव आ जाए तो, इंसान कैसे बेचैन और बावले हो जाते है । जंगल और प्राणियों ये सब हमारी प्राकृतिक धरोहर है, और उसको संभालना और उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है, जिम्मेदारी है ।

जंगल पृथ्वी का आनंद है ।

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