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आज हम बात करने वाले है एक बहुत ही रोचक खेल के बारे मे जो हम सबने अपने बचपन मे खेला होगा । इस खेल की खास बात यह है की इसमे हमे बाहर मेदान मे नही जाना पडता, घर बेठे ही खेल सकते है । इस खेल के दो पहलु है सीढी चढना और साप उतरना । मैने भी यह खेल बचपन मे बहोत बार खेला है, जब हम सीढी चढते है तो हमे अच्छा लगता है पर जब हमे साप के जरिये नीचे उतरना पडता है तो बहोत मायुस हो जाते है क्योकी हम बडी महेनत से आगे बढी ही होते है की बीच मे साप आ जाता है और हमारी सारी महेनत पे पानी फेल जाता है । आप लोगोने सापसीढी के खेल के बारे मे तो सुना ही होगा, तो बस आज हम उसी के बारे मे बात करेंगे की यह खेल कहां से आया है ? किसने इनकी खोज की ? यह हमे जीवन की क्या सीख देता है और बहोत्त कुछ.

सापसीढी : जीवन के नैतिक मूल्यो का खेल । बचपन का खेल

सबसे पहले हम सापसीढी के खेल के बारे में सामान्य जानकारी ले लेंगे । सापसीढी घर के अन्दर खेलने वाला खेल है जीसमे मेदान की जरूरत नही पडती मतलब की इनडोर गेम है । इस खेल मे एक चौकोर आकार का कार्डपेपर और प्लास्टिक का बोर्ड होता है जीसमे 1 से 100 अंक के चोकोर बक्से होते है, उनमे से कीसी मे सीढी होती है तो कीसी मे साप होते है । इस खेल मे 4 लोग खेल के लिए शामेल हो सक्ते है । इस खेल मे प्रत्येक व्यक्ति को चार बार खेलने का अवसर मिलता है । यहां खेल मे आगे बढने के लिए यह 4 लोग अपनी बारी के लिए कोइ प्यादा या टोकन या कुकरी का उपयोग करते है जीसके जरिए ये लोग खेल मे आये हुए अंक के अनुसार आगे बढते है । यहां दांव पे अंक लाने के लिए पांसा या फीर स्पिनर का उपयोग कीया जाता है, अमेरिका की सापसीढी गेम मे स्पिनर का उपयोग होता है । बारी बारी सब पांसा फेंकते है जो अंक आता है उतने कदम आगे बढना पडता है । अगर छः आया तो दुसरी बार पांसा फेंकने का अवसर दीया जाता है । इस खेल मे जीस खाने मे सीढी आये तो सीढी चढनी पडती है और फिर सीढी चढनी की वजह से पांसा फेंकने का एक और अवसर प्राप्त होता है । जीस खाने मे सापआया हो तो हमे सापके जरिए नीचे आना पडता है । अगर हम सफलतापूर्वक 100 अंक पार कर गये तो हम हमारी दूसरी कूकरी या प्यादे के जरिए खेल को फिर से खेल सक्ते है ।

  • अब हम सापसीढी के इतिहास के बारे में बात करेंगे ।

सापसीढी हमारे प्राचीन भारत के खेलो में से एक है । प्राचीन भारत में हमारे राजा – महाराजाओ एवम भगवान के द्वारा शतरंज, चोपाट, सापसीढी जैसे खेल खेले जाते थे । हांलाकी सापसीढी की खोज भारत मे ही हुइ है पर उसकी खोज किसने की उसका कोइ ठोस सबुत नही मिलता पर दूसरी शताब्दी के आसपास खेला जाता था एसा सुनने मे आ रहा है । सापसीढी को अन्य कइ नामो से जाना जाता है जैसा की – मोक्षपट अथवा मोक्षपटम, ज्ञानचोपाट, परमपद ।

सापसीढी के खेल का इतिहास 1000 साल पुराना है । एसा कहा जाता है की दसवीं शताब्दी मे जैन साधुओने यह खेल संसारिक भौतिक – अभौतिक बन्धनो से मुक्ति पाने हेतुसर इस खेल की खोज की थी । एसा कहा जाता है कि यह खेल मनुष्य की जीवनयात्रा का प्रतीक है, जो हमारे जीवन के उतार चढाव को दर्शाता है साथ ही यह भी दर्शाता है की अच्छे कर्म करोंगे तो सीढी चढोंगे ~ आगे बढोंगे और बुरे कर्म करोंगे ते सापउतरोगे मतलब की हम नीचे आ जायेंगे । इस खेल की रूपरेखा हुबहु प्राचीन जैन मंडळ के साथ मीलती जुलती है, जिसके हर एक चोरस खाने हमारे कर्म और मुक्ति की कल्पनाओ को दर्शाता है । जैन मुनि यह खेल विहार करते वक्त अपने साथ ले जाते थे और जहां भी जाते वहा इस खेल के जरिए लोगो को अच्छे – बुरे कर्म का ज्ञान एवम मुक्ति के बारे मे उपदेश देते थे । यह खेल भारत के कइ प्रदेशो से होकर गुजरा है, तो इसी लिए इस खेल के प्रादेशिक तौर पर् अपने अलग नाम से जाने लगा जैसे की – उत्तर भारत मे ज्ञानचोपाट, महाराष्ट्र मे मोक्षपट, लीला परमपद, सोपानपट वगेरे. सुफी फिलोसोफी मे भी इस खेल का जिक्र हुआ है ।

कइ इतिहासकारो का एसा मानना है की सापसीढी की खोज संत ज्ञानदेव ने तेरहवी सदी मे की थी । तेरहवी सदी के बाद यह खेल ज्यादा मशहूर हुआ था । संत ज्ञानदेवने यह खेल बच्चो को जीवन के नैतिक मूल्यो को सिखाने के लिए बनाया था । जिस जगह पर सीढी हो वह अच्छे गुणो के लिए होता है और जिसमे सापका मुख हो वह दुर्गुणो के लिए होता है । 19 वी सदी में सापसीढी के यह खेल को कोइ अंग्रेज ओफिसर इंग्लेन्ड ले गये और वहा जाकर इस खेल मे थोडे बहुत बदलाव किए जैसे की – सापसीढी के खेल मे सापऔर सीढीयो की संख्या बराबर की रखी, खेल का बेकग्राउन्ड चित्र बदला यहां तक की नाम भी बदल डाला । सन् 1943 मे, मिल्टन ब्रेडलीने यह खेल अमेरिका मे बिलकुल नये अवतार में “चट्स एन्ड् लेडर्स” के नाम से लोगो के सामने व्यापारी तौर पर प्रस्तुत किया । और अब ये खेल “स्नेक एन्ड लेडर्स” के नाम से पुरी दुनियाभर मे मशहूर है । विदेशोमे यह खेल काफी हद तक सरल है, यहां नैतिक मूल्यो से ज्यादा मनोरंजन के तौर पर यह खेल ज्यादा खेला जाता है ।

  • अब हम बात करेंगे की सापसीढी के इस खेल मे हमे क्या सिखाता है ।

सापसीढी के खेल मे जो सीढीया होती है वह विश्वास, उदारता, नम्रता और तपस्विता जैसे अच्छे गुणो को दर्शाता है और साप हमे क्रोध, चोरी, इर्ष्या, वासना, लोभ आदि जैसे बुरे गुणो को दर्शाता है । खेल मे 1 से 100 तक की गिनती के चोरस होते है जो हमारे जीवन के अलग अलग पहलु को दर्शाता है । आखिर का 100 वां चोरस होता है उसे स्वर्ग और भगवान का घर कहते है यानि की मोक्ष दर्शाता है । इस दोरान हम साप और सीढी के रूप मे हमारे जीवन के कंइ उतार चढाव देखते है और उन सबको पार करते हुए हमे स्वर्ग – मोक्ष की प्राप्ति होती है । सापसीढी का खेल हमे यह सन्देश देता है की अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो हमे स्वर्ग की प्राप्ति होगी और अगर हम बुरे कर्म करेंगे तो हमे फीर से पुनर्जन्म के चक्र मे आना जिसमे हमे न जाने किन किन पशु, पक्षी, जानवर, कीडे – मकोडे आदि जैसे का अवतार लेना पडता है । इस खेल मे सीढी की तुलना मे सांपो की संख्या ज्यादा होती है जो हमे दर्शाता है की पाप के मार्ग पर चलने से ज्यादा कठीन पुण्य (अच्छाइ) के मार्ग पर चलना होता है । यह खेल खेलने वाले को आत्मनिरीक्षण की तरफ ले जाता है ।

प्राचीन समय के सापसीढी के खेल मे जो सद्गुणो के ख्याल दर्शाये गये है वो कुछ इस तरह है – 12 वा चोरस – विश्वास को दर्शाता है, 51 वा चोरस विश्वसनीयता को, 57 वा उदारता को, 76 वा ज्ञान को, 78 वा तपस्वीता जैसे सद्गुणो को दर्शाता है । दुर्गुणो को दर्शाते हुए चोरस कुछ इस तरह है – 41 वा चोरस अनादर को दर्शाता है. 44 वा मिथ्याभिमान को, 49 वा अश्लीलता को, 52 वा चोरी को, 58 वा जूठ बोलनेवाले को, 62 वा नशा (मदीरापान जैसे व्यसन), 69 वा कर्ज, 73 वा हत्या को, 84 वा क्रोध को, 95 वा बडाइ मारने वाले को, 99 वा वासना को दर्शाता है ।

हर एक खेल मे कोइ ना कोइ नियम होते ही है, पर इस खेल मे एसा कोइ नियम नही होता । इस खेल की खास बात यह है की वह पुरी तरह से नसीब और उनकी कल्पना के विचारो पर ज्यादा भार देता है । यहा जो होता है वह हमारे सामने ही होता है और उसका परिणाम भी हमारे सामने ही आता है । इस खेल मे जैसे ही हम सीढी चढते है तो वहा आसपास ही साप होता है और जब हम सापसे नीचे उतरते है तो हमे दोबारा मोका देना के लिए आसपास सीढी होती है । यह खेल हमे यह भी सीख देता है की हम कितने ही उपर क्यों न हो , अगर हमारे कर्म अच्छे नही होते है तो हम बडी बडी उंचाइयो से भी एक्दम से नीचे आ जाते है और अगर हमारे कर्म अच्छे है तो कोइ बुराइ हमारा बाल भी बांका नही कर सक्ती और अंत तक हम हमारी मंजिल तक पहोंच जाते है । इस खेल मे हर एक चाल (पांसा फेंक के चलते है वो) के दो पहलु होते है या तो हम सीढी चढेंगे य फीर साप उतरना पडेंगा । यह खेल हमे सफलता – निष्फलता, उतार – चढाव, अच्छा के सामने बुरा और बुरा के सामने अच्छा आदि सिखाता है । यह खेल खेलने मे बहोत ही सरल है इसमे हमे शतरंज की तरह ज्यादा दिमाग नही चलाना नही पडता । हमे बस पांसा फेंकने पर जो अंक आता है उतने कदम आगे बढना पडता है ।

अब हम बात करेंगे इस खेल के रुपरेखा के बारे मे । प्राचीन काल मे यह खेल किसी कोटन के रंगीन कापड और कागज पर चित्र के रूप मे बनाया जाता है । बदलते जमाने के साथ यह खेल प्लास्टीक और कार्डपेपर पर डिजाइन किया हुआ मिलने लगा । इस खेल मे 1 से 100 तक की गिनती के चोरस होते है जिनमे कुछ कुछ जगह सीढीया और साप होते है । 18 वी सदी के आसपस, सापसीढी के खेल मे उपर वाले भाग मे दैवीय तत्वो और स्वर्ग को दर्शाया जाता था, जब की नीचले भाग मे हमारी पृथ्वी की तरह मनुष्यो, प्राणी, फुलो आदि को चित्र के माध्यम से दर्शाया जाता था । यह खेल मे पहले से ही 100 चोरस नहीं होते थे । उस समय इसके लिए कोइ निश्चित मापदंड नही था । जैन धर्म की सापासीढी के खेल मे 84 चोरस थे, हिन्दु-वैष्णव धर्म की सापसीढी के खेल मे 72 चोरस, सुफी मे 100 चोरस और पहाडी विस्तार की सापसीढी के खेल मे उसकी विविधता के आधार पर 360 चोरस थे । अब सापसीढी के खेल मे 100 चोरस है । सापसीढी के खेल का बोर्ड आम तोर पर 8 8, 10 10 ओर 12 12 के माप का होता है । इस खेल मे सापऔर सीढीयां अलग अलग जगह पे शुरू होकर दुसरी जगह पर समाप्त होती है । सापऔर सीढी की उंचाइ वो जिस जगह पर है उस पर निर्भर करता है । इस खेल मे कम से कम 4 लोग खेल सक्ते है । इस खेल मे चाल चलने के लिए कोइ प्यादा या टोकन या कुकरी का उपयोग होता है जिसके जरिए हम पांसे मे आइ संख्या के हिसाब से आगे बढते है । हर एक व्यक्ति को 4 बार यह खेल खेलने का अवसर मिलता है । इस खेल मे पांसे या फिर स्पिनिंग का उपयोग होता है, अंक लाने के लिए । विदेशोमें पांसे की जगह स्पिनर का उपयोग होता है । कुछ जगह दो पासे का भी उपयोग होता है चोपाट की तरह । इस खेल की शरूआत 1 नंबर के चोरस से होती है ओर 100 तक खतम । खेल मे बारी बारी पांसा फेंकने से जो अंक प्राप्त होते है उसके मुताबिक आगे बढना पडता है उदाहरण के तोर पे – 5 आया तो 5 कदम (चोरस) आगे बढो । पांसा फेंकने पर अगर किसी व्यक्ति को 6 अंक प्राप्त हुआ तो हम उसे दुसरी बार पांसा फेंकने का मोका दे सक्ते है यानि की व्यक्ति को दो बार आगे बढने का मोका मिलता है । खेल मे आगे बढने के दोरान किसी चोरस मे सीढी हो तो हमे सीढी चढकर उस खाने पर खडा रहना पडता है और फीर सीढी चढने की वजह से उस व्यक्ति को दूसरी बार पांसा फेंकने का मोका मिलता है । और अगर खेल के दोरान किसी जगह सापआया तो हमे सापके जरिए नीचे आना पडता है, जहां उसकी पून्छ हो उस जगह । यह खेल जब तक हम 100 तक नहीं पहोंच्ते तब तक खेलना पडता है, 100 पार कर लिया तो हमे दोबारा मोका मिलता है खेल खेलने का ।

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  • अब हम सापसीढी खेल की कुछ विशेष बातो के बारे मे जानेंगे ।

  1. जब इस खेल को इंग्लेन्ड ले जाया गया तब इस खेल को भारतीय नैतिक मूल्यो को विक्टोरीयन नैतिक मूल्यो मे प्रतिबिंब करने की आस से पुरी तरह से इस खेल को बदला गया । यहां यह खेल मनोरंजन के तोर पर ज्यादा खेलने जाने लगा । यहां इस खेल का बेकग्राउन्ड चित्र, साप और सीढीयो का चित्र आदि सब कुछ बदला गया । यहां के खेल मे सीढीयो की संख्या सांपो से ज्यादा थी । इस खेल मे भारत और इंग्लेंड दोनो देशो का सन्दर्भ देखने को मिलता है । खेलने का तरीका भारतीय पर खेल का स्वरूप विदेशी, एक मूळ है तो दूसरा उनका नवीनीकरण । 20 वी सदी प्रारंभिक समय मे सापसीढी के इस खेल मे भारत और ब्रिटन दोनो की डिजाइनो को सम्मिलीत किया गया था, पर 1940 के बाद भारत मे ब्रिटीश शासन के धीरे धीरे पतन होने की वजह से अंग्रेजी वर्झन का सापसीढी का खेल था उसमे भारतीय चित्रो को बहुत ही कम मात्रा मे शामिल किया गया । हालांकी सापसीढी खेल के जो नैतिक मूल्यो है वह तो पीढी दर पीढी वैसे ही रहे जो हमे धार्मिक ओर फिलोसोफी के भौतिक संकेतो को प्रस्तुत करता है । दो देशो के बीच चलते हुए असमंजस होने के बावजुद भी सापसीढी खेल का महत्व कम नही हुआ ।

  2. यह खेल ना केवल भारत तक सीमित रहा किंतु विदेशो मे भी यह खेल ले जाया गया । यह खेल जब इंग्लेन्ड ले जाया गया तो उसे वहा की ख्रिस्तीयन धर्म की संवेदनाओ के अनुसार डिजाइन कीया गया । यहा की सापसीडी के खेल मे सीढी वाले चोरस को परिपुर्णता, कृपा, सफळता, करकसर, तपश्चर्या जैसे आदि गुणो को दर्शाता था । सापवाले चोरस को भोग, आलस और दुष्कर्मो करनेवाले व्यक्ति को बिमारी, बदनामी ओर गरीबी आदि जैसे दुर्गुणो को दर्शाता है ।

  3. भारत मे जब पाल सेना का राज था तब बौद्ध धर्म मे भी यह खेल मोजुद था उनके सबूत भी खोज के दोरान मिले हुए है ।

  4. सापसीढी का यह खेल पुरे भारत मे सभी जगहो पर खेला जाता था । वह सभी प्रादेशिक क्षेत्रो पर पहुंच गया था । और वहां की प्रादेशिक भाषा के नाम से प्रख्यात हुआ । सापसीढी का खेल कइ अलग अलग नामो से जाना जाता है जैसे कीआन्ध्र प्रदेश मे सापसीढी का यह खेल “वैकुंठपाली” या “परमपद सोपान पट्म” से जाना जाता है जिसका अर्थ “मोक्ष की सीढी” होता है । हिन्दी मे यह खेल सापसीढी, सापऔर सीढी, मोक्षपट के नाम से जाना जाता है। गुजरात मे यह खेल सापसीडी के नाम से जाना जाता है । तमिलनाडु मे यह खेल “परमपद” के नाम से जाना जाता है । एसा सुनने मे आया है कि वैकुंठ एकादशी के दिन भगवान विष्णु यह खेल पुरी रात जागकर खेलते है । बंगाल क्षेत्र मे यह खेल शापशीरी या शापलुडु के नाम से जाना जाता है ।

  5. भाग्य पर आधारित यह खेल सबसे ज्यादा बच्चो मे मशहूर हुआ । यह खेल सबसे ज्यादा बच्चो द्वारा खेला गया और अभी भी खेला जाता है । इस खेल का पुराना वर्जन जीवन के नैतिक मूल्यो के पाठ सिखाता था जिसमे इंसान के जीवनकाल के दरमियान आने वाले उतार चढाव और अच्छे – बुरे कर्म को दर्शाता था, किंतु इसका नया वर्जन मनोरंजन के तोर पर है । विदेशो मे सापसीढी का यह खेल चट्स एंड लेडर्स, बाइबल अप्स एंड डाउन्स आदि नामो से जानी जाती है ।

  6. सन – 1943 मे मिल्टन ब्रेडली द्वारा डिजाइन कीया गया सापसीढी का खेल आज तक का सबसे ज्यादा बीकने वाला बोर्ड गेम रहा । यहां यह गेम ‘चट्स एंड लेडर्स’ के नाम से मशहूर हुआ । यह खेल व्यापारी तोर पर बाजार मे बेचा गया था । और वह आज तक की सबसे ज्यादा बिकने वाली सापसीढी की गेम थी । हालांकी सापसीढी के कइ थीम वाली गेम आयी किंतु मिल्टन ब्रेडली की यह डिजाइन वाली सापसीढी सबसे ज्यादा मशहूर और बिकाउ हुए ।

  7. बदलते जमाने के साथ इस खेल को ओर भी ज्यादा सरल बनाया गया जहां नैतिक मूल्यो की साथ साथ मनोरंजन के तोर पर भी यह गेम खेला जाने लगा । ये खेल अब पुरी दुनिया मे ‘स्नेक एंड लेडर्स’ के नाम से जानी जाती है । मोडर्न वर्जन के सापसीढी के खेल मे सापऔर सीढी की संख्या बराबर मात्रा मे रखी गइ ।

  8. विदेशो मे बिकने वाले सापसीढी के खेल मे बच्चो को साप पसन्द नही थे इसी लिए साप की जगह चट्स (पाइप आकार का) रखा गया। सापसीढी का बेकग्राउन्ड फोटो बच्चो के खेल के मेदान जैसा बनाया गया । यह खेल सबसे ज्यादा बच्चो मे खेला जाता है इसी लिए इस खेल को कार्टून की थीम मे बनाया जीसमे डरावने नही पर फनी फेस वाले साप होते है ।

  9. सापसीढी का जो आर्टवर्क है वो बच्चो को उन्ही के तरीके से नैतिकता के पाठ सिखाता है जैसे की – जहा से सीढी चढनी होती है वह बच्चो को अच्छे और समजदार काम करने को कहता है और सीढी के उपर तक पहोंचने पर उसे इनाम दिया जाता एसी छवी दिखाता है । जहां चट्स ~ साप का खान होता है वह बच्चो के बदमाशी बर्ताव और उसकी बदमाशी हरकतो के साथ जुडा होता है और चट्स के जरिए नीचे आने से उसे सजा मिलती है एसा बताया जाता है ।

  10. केनेडा मे इस खेल को उसके पारंपरिक नाम “साप और सीढी” के नाम से ही बेचा जाता है । कइ बरसो से केनेडा गेम्स कंपनी द्वारा ही सापसीढी गेम (बोर्ड) बनाया जा रहा है । आज तक इस कंपनी ने बहोत सारी अलग अलग थीम पर सापसीढी गेम मार्केट मे लायी है जिसमे साप की जगह Toboggan Runs होता है ।

तो यह बात थी हमारे बचपन के खेल – सापसीढी की । हमने कभी सोचा भी नही होगा की यह खेल हमे हमारी जिन्दगी के साथ इतना जुडा हुआ है की वो हमे हमारे अच्छे – बुरे कर्म की सिख दिलाता है । भले खेल मे ही सही यह खेल हमे धैर्य, खेलदिली, आत्मनिरीक्षण, प्रामाणिक्ता, जिज्ञासु जैसे गुणो को जगाता है जो हमारी अन्दर छीपे हुए होते है । छोटे थी तब खेल के तोर पर खेला करते थे पर इसका असली महत्व तो अब समज मे आया की सीढी चढना और साप उतरना (निगलना) वास्तविक मे क्या होता है । आशा है की इस लेख को पढने के बाद शायद आपका मन सापसीढी खेलने का करे । 

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