परिस्थितियाॅ॑ हमेशा मानव निर्मित होती हैं और दो तरह की होती हैं पहला सुख देने वाली सुखकारी परिस्थितियाॅ॑....और दूसरी दुख देने वाली कष्टकारी परिस्थितियाॅ॑....
परंतु परिस्थितियाॅ॑ चाहे जैसी भी हों इंसान को अपना संतुलन बना कर रखना चाहिए। सुखकारी परिस्थितियाॅ॑ मनुष्य को आलसी ,लापरवाह , अहंकारी, स्व केंद्रीय एवं लोभी, बना देती है। जबकि कष्टकारी परिस्थितियाॅ॑ इंसान को अवसाद की ओर ले जाती हैं ,पलायन वादी बना देती हैं और मनुष्य भाग्यवादी होकर सोचने समझने की क्षमता खो देता है और दुर्भाग्यवश अपराध के रास्ते पर निकल जाता है…. इस तरह असंतुलित व्यक्ति विकारों का शिकार हो जाता है जबकि जीवन में संतुलित व्यक्ति धैर्य ,संयम ,साहस ,इच्छाशक्ति और मजबूत मनोबल के साथ आगे बढ़ने की तीव्र उत्कंठा रखता है और अपने जीवन में सद्विचारों के साथ आगे बढ़कर जीवन में संघर्ष करते हुए परिस्थितियों के अनुरूप जीवन को नई दिशा देता है।
हमने कोरोनाकाल में भी देखा कि संतुलित जीवन शैली वाले व्यक्तियों ने कोरोनावायरस को मात दे दिया और असंतुलित जीवन शैली वाले व्यक्ति जो पहले से ही कई व्याधियों से ग्रस्त थे , ऐसे में कोविड के भय और संशय ने स्थिति को भयावह कर दिया…. जिससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) गिर गई जिस वजह से कुछ कोरोनाग्रसित अस्पताल के आईसीयू तक पहुंच गए और कुछ कालकलवित हो गए। जीने की जिजीविषा और इच्छाशक्ति से इंसान कठिन से कठिन परिस्थितियों को हराकर जीवन को ऊर्जावान करके आगे बढ़ता हुआ निरंतर प्रगति करता हुआ स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है। इसलिए मनुष्य को संयम रखना चाहिए… परिस्थितियों का दास नहीं बनना चाहिए।