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उसने ऐसा क्यों किया?उसके साथ क्या हुआ? उसने क्या सोचा?उसने क्या महसूस किया?यह सब तो केवल वही जानती थी।लेकिन अपने यह अहसास शायद वह किसी को समझा नही पाई होगी।कितनी ही रातें इसी कसमकस में उसने बिना सोये गुज़ारी होंगी। शायद दिन में जगना नहीं चाहती होगी।बचती होगी कि कहीं उसके चेहरे पर ढकी पतली सी मुस्कान की कच्ची सी चादर जो वह अक्सर ओढ़ कर निकला करती थी। कहीं वह हवा से उड़ न जाए और रात की नीँद और आँसुओं के सूखे हुए निशान कोइ देख न ले। थोड़ी सी आहट से डर जाती जाती होगी।उसे किस बात का डर था यह तो नही पता।लेकिन जरूर उसे कुछ खोने का डर होगा।लेकिन क्या? था ही क्या उसके पास सिर्फ एक कटी हुई पतंग की तरह उड़ने की कोशिश में लगी जिंदगी के अलावा।मग़र शायद वह बचा रही थी अपनी अधूरी ख्वाहिशों को जिसे वह पूरा करने के लिए सबसे लड़ी थी।उन सपनों को बार बार जोड़कर देख रही होगी, जिन्हें सबकी लाख कोशिशों के बाद भी वह देखना नही भूल पा रही थी।लेकिन ऐसा क्या हो गया था कि उसने अचानक समेट लिया खुद को एक कोने में।वह दर्द जिससे उसे सपने देखने का हौसला मिलता था,जो सालों साल उसके साथ रहा,जो उसकी ताक़त बना,अब वह उसे मारने लगा था।उसमें अचानक उसे सहन कर पाने की शक्ति खत्म हो गई।क्यों?।कभी अचानक से खुश दिखने की कोशिश में जुट गई तो कभी अकेली बिस्तर पकड़कर सिसक रही थी।कितनी ही बार उस आवाज़ को सुनने की कोशिश करती होगी जो एक बार कह दे कि सब ठीक करेंगे, मिलकर करेंगें।जो बोल दे कि हक़ है तुम्हारा, जीने का अपनी मर्जी से,खुश होने का,पढ़ने का, दुनिया देखने का,सपने संजोने का।उसनेअपनी माँ का वह हाथ ढूंढा होगा जिसे थामकर कभी उसने महसूस किया था कि बस उसकी ही जिंदगी में प्यार है,सिर्फ़ वही सबसे प्यारी और बहादुर है।लेकिन फिर वैसे ही सामान्य होने की कोशिश में जुट गई और खुद को समझाते हुए कि यही तो जिंदगी है।पागल कहने लगे थे उसे।मग़र उड़ने की और खुद को साबित करने की इसी जदोजहद में फिर थककर एक दिन चैन से सो गई विशाखा।जब तक वह जिंदा थी किसी ने उसकी तरफ देखा ही नहीं।ध्यान ही नहीं दिया कि वह कुछ अलग हो गई है ,जैसी वह कभी नही थी।जैसी वह कभी होना भी नही चाहती थी।लेकिन साथ खड़े होने की बजाय उसके इस व्यवहार से उलटा चीड़ रहे थे हम।वह खुद तो पागल हो गई है हमें भी पागल कर देगी यही बोल कर उससे दूर निकल गये कहीं।किसी ने नही देखा उसके मन को टटोलकर।छोड़ दिया उसे अकेले अपने हाल पर अपनी बेचैनियों के साथ।ऐसी कोई समस्या है ही नहीं बस दिमाग़ का वहम है।और है भी तो वह खुद निपटे।घर बैठे आराम से क्या फालतू की बातों में उलझी है।किसी ने नहीं सोचा कि वह हार मान लेगी तो?थक के बैठ गई तो?तो भी क्या? मर ही तो जाएगी और वह मर भी गई।अब जब विशाखा नहीं है, तो हम सब बात कर रहे हैं ,हम यह कर सकते थे,वह कर सकते थे।काश हमें पता होता।काश एक बार बता देती।पर क्या सबको नहीं पता था?क्या सबने छोड़ नही दिया था उसे उसके हाल पर, दिमाग खराब कहकर?क्या किसी ने कोशिश की थी उसे बचाने की?किसी ने अंदाज़ा लगाया उसकी थकान का जो उसे जिंदगी के आखिरी पलों में महसूस की।खैर जो भी है अब विशाखा चली गई ,इस समाज को आईना दिखा कर।लेकिन अफशोश यह तो अपने भद्दे चेहरे को आईने में देखकर खुश हो रहा है!अब भी मैं कितना सुंदर हूँ !!

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