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आओ अब दिन बीत गए सब..
चली गई वह घड़ियां ...
खिलती थी जिनमें कलियां
मन उदास हुआ है; हृदय को आभास हुआ है..
दौर  ए- तन्हाई में हर शख्स अल्फाज हुआ है..
थी वो शामें सुहानी,  आते थे जब दूर-दूर से पैगामें
जज़्बातों की आंधी में बह गई कड़ियां विस्तार की..
पैमानों की बारिश में .. खो गई खुशियां बौछार की!!
रुत बीत गई वो मस्तानी ..
अब ना आयेंगी फिर से वह शामें सुहानी !!
सो ना पाए रो ना पाए ,
अरे,
सो ना पाए रो ना पाए..
यादों में हम  खो भी ना पाए!!
लगी है आस कहीं एक बार फिर से प्रिय मिलन हो जाए....
थम जाए यह घड़ी ,खिल उठे हर कली
नैनों की फुहार में मीठी सी सित्कार में..
हां मैं वहीं खड़ी!! ..  थामे सब कुछ "ख्वाहिशों के संसार में"...

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