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नमस्कार ,आदाब ,प्रणाम, सलाम

मैं इस धरती का एक टुकड़ा हूँ आज मुझे आपसे कुछ बाते करनी है लेकिन पहले ये जान लो की मैं कोई साधारण जमीं नहीं हूँ, मैं जमीन हूँ दो मुल्को के बीच की या दो बॉर्डरों के बीच की या कहु की कंटीले तारों के बीच की | मैं जमीन हूँ हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच की,कुछ जगह बर्फ से ढकी हुई तो कुछ जगह रेतीले धोरों में दबी हुई | दोनों देशो के लिए मेरी महत्वता रोटी, कपड़ा, मकान या कहु की हवा से काम नहीं रह गयी है | इसी बढ़ती महत्वता के बीच मुझे बहुत तकलीफें झेलनी पड़ रही है उन्ही में से कुछ मैं आज आपके साथ साझा करना चाहती हूँ, कुछ शिकायते भी करनी है आप से, चिंता मत कीजिए ये शिकायते आपकी की नहीं है, आपको मैं इसलिए कह रही हूँ क्यों की शायद आप सब मिलकर इनका कोई समाधान निकल पाएं |

तो शुरू करते ये सिलसिला, ये जो और जमीने है, मेरे जैसी, वो चाहे हिंदुस्तान की हो चाहे पाकिस्तान की ये मुझे हमेशा नीचा दिखने की कोशिस करती रहती है मुझसे कहती है की तेरा कोई वजूद ही नहीं है, तू कहीं की नहीं है, तेरे होने पर लानत है, तू किसी काम की नहीं है तू बस युहीं पड़ी है और भी न जाने क्या क्या अगर मैं मनुष्य होती तो ऐसे तानो से कब की मर चुकी होती ख़ैर |

और ये जो आसमान है जिसे आप बहुत शांत या ‘दीर्घ ह्रदय’ समझते हो ये भी कुछ कम नहीं है रोज मेरे ऊपर से बादलों को इधर से उधर ले जाते वक़्त तंज कसता ही जाता है |

कोई जानवर तो मुझ तक पहुँच भी नहीं पाता है ये तार उन्हें पहले ही रोक लेते है | और अगर कभी-कबार कोई परिंदा आना भी चाहे तो पहली बात मेरे पास ना पेड़ है ना पानी मैं उसे कहाँ रखु इसके बावजूद भी अगर वो आ जाये तो उसे शक की नज़रों से देखा जाता है और कई बार तो किसी न किसी मुल्क का कोई सिपाही उसे मार भी गिराता है इसलिए उन का भी आना जाना कम ही होता है | मुझे अकेले ही रहना पड़ता है पडोसी जमीनों के बीच |

मानती हूँ की मैं बहुत महत्वपूर्ण हूँ आखिर दो मुल्कों या दो भाइयों को अलग करती हूँ | मुझे पाने की चाह में कभी इस और से तो कभी उस और से छुटपुट लड़ाइयां होती ही रहती है मुझे पाने के लिए दोनों मुल्को के सिपाही शहीद होते रहते है, हाँ तुम सोच रहे होंगे की इतनी डिमांड है इसकी, हर कोई इसे पाना चाहता है, सब इसके लिए कुछ भी करने को तैयार है है फिर भी इसे क्या चाहिए | मुझे चाहिए सकूं, मैं जमीन हूँ और मैं खुद पर किसानो द्वारा हल जोतने को , पेड़ पौधों के उगने को , बीएन रुकावट नदियों के बहने को,जीव जन्तुओ के रहने को अपना सौभाग्य मानती हूँ ना की दोनों और गोले और बारूदों से लेस सिपाहियों से घेरे होने को अपना सौभाग्य समझती हूँ | मुझ पर रोज खून की होली तो खेली जाती है लेकिन मुझे ये नहीं चाहिए मैं रंगो से खेलना चाहती हूँ मैं दीवाली भी मनाना चाहती हूँ और ईद भी मैं बैसाखी भी मनाना चाहती हूँ और वेसाक भी |

अब तक आप समझ चुके होंगे की मैं क्या कहना चाहती हूँ | हाँ इन सब में आपकी मुख्य रूप से कोई गलती नहीं है | आपको जैसा मिला आपने उसे स्वीकारा है लेकिन ये गलती आपके ही बुजुर्गों से हुई है अब वो तो रहे नहीं लेकिन गलती तो अभी भी है इसे आप ही सुधार सकते है हाँ ये रास्ता आसान तो नहीं है लेकिन इसकी नीव में एक पत्थर तो आप भी रख सकते है ताकि मुझ पर ऊगा कोई पेड़ उगने से पहले ही ना काट दिया जाये, पंछी भी आराम से आ जा सके, मुझ पर भी कुछ बोया जाये, मुझ पर भी लोग ये सभी त्योंहार मनायें, और मेरे कारण कोई सैनिक शहीद ना हो और न जाने कितनी चाहते है मेरी शायद आप समझ रहे होंगे ख़ैर !

सुनिए सुनिए !!!
न हिंदुस्तान की ना पाकिस्तान की
मैं जमीं हूँ कुछ कंटीले तारो के बीच की
ना यहां की न वहां की
मैं जमीन हूँ हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच की
कुछ सवाल है मेरे हिंदुस्तान से कुछ पकिस्तान से
और कुछ सवाल है आपसे जी हाँ आपसे
इतना सब कुछ तो खो चुके हो तुम
तुम्हे अब और क्या खोना है
मुझे ये बताओ की किसकी मौत पर हंसना है मुझे
किसकी मौत पर रोना है

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