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‘कविता’ कवि की भावनाओं को उजागर करती है, इसमें संवेदना का प्रवाह होता है तथा ‘कविता’ जीवन को नई चेतना प्रदान करने का अनूठा माध्यम है; यह प्रकृति के आंतरिक रंग और सौंदर्य को उदघोषित करती है अर्थात् कवि की भावनाओं का रसात्मक उद्घाटन ‘कविता’ के द्वारा होता है। ‘कविता’ मनुष्य के हृदय को उन्नत करती है और ऐसी ऐसी उत्कृष्ट और लौकिक पदार्थों का परिचय कराती है जिनके द्वारा यह लोक, देवलोक और मनुष्य, देवता हो सकता है। 

मनुष्य संसार में व्याप्त सुख दुख, आनंद, शांति, परंशांति, प्रकृतिप्रेम, देशप्रेम आदि का यथार्थ पूर्ण अनुभव ‘कविता' से कर सकता है। ‘कविता’ मनुष्य को भावनाओं से जोड़ती है। कंप्यूटर और इंटरनेट के समय में यह अब और सरल तथा एक -दूसरे तक संवेदना को पहुंचाना पहले से आसान हो गया है। ‘कविता’ सृष्टि सौंदर्य का अनुभव कराती है और मनुष्य को सुंदर वस्तुओं से अनुरक्त कराती है। जो ‘कविता’ रमणी के रूप माधुर्य से हमें मोहित करती है वही उसके अंतःकरण की सुंदरता और कोमलता आदि की मनोहारिणी छाया दिखाकर मुग्ध भी करती है।‘कविता’ इतनी प्रयोजनीय वस्तु है कि संसार के सभ्य से सभ्य सभी जातियों में पाई जाती है; इतिहास न हो, विज्ञान न हो, दर्शन न हो, पर ‘कविता’ अवश्य ही होगी। अतएव मानुषी प्रकृति को जागृत रखने के लिए ईश्वर ने ‘कविता’ रूपी औषधि बनाई है। ‘कविता’ यही प्रयत्न करती है कि प्रकृति से मनुष्य की दृष्टि फिरने न पावे।‘कविता’ साहित्य का एक अंग है। ‘कविता’ की एक निश्चित परिभाषा देना कठिन है लेकिन इतना कहा जा सकता है कि, ‘कविता’ आत्मा द्वारा अनुभूत भावों एवं विचारों का प्रस्फुटन है जो छंद और नियमित गति से बंधी होने के कारण ताल तथा लय को अपने में समाविष्ट करती है। रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं, “कविता व साधन है जिसके द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा का निर्वाह होता है”।

बींसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कंप्यूटर और सूचना तकनीक के आगमन के साथ सभ्यता फिर से एक नए दौर में प्रविष्ट् हुई। इस बार वाचिक और मुद्रित माध्यम के बाद, अभिव्यक्ति का तीसरा माध्यम प्रकट हुआ ,'साइबरस्पेस माध्यम' । ‘कविता’ सृजनात्मक अभिव्यक्ति का बहुत पुराना माध्यम है। अब तक वह सुनी और पढ़ी जाती थी लेकिन अब उसे कंप्यूटर के स्क्रीन पर भी देखा ,पढ़ा और सुना जा सकता है।‘कविता’ के संचार प्रक्रिया में दो ज्ञानेंद्रियां पृथक- पृथक सक्रिय होती थी, कान और आंख। मगर डिजिटल तकनीक ने दोनों ज्ञानेन्द्रियों को एक साथ सक्रिय होने का अवसर जुटा दिया है। अब उसे एक समय में पढ़ा, सुना और देखा जा सकता है। नए ढंग की यह ‘कविता' आज की उन्नत तकनीक का परिणाम है। तकनीक ‘कविता' को बदल तो दे रही है, लेकिन सच कहें तो उसकी रचना भी कर रही है। तकनीकी सुविधाओं से लैस इस जमाने में, कविताएँ ,सुनने का, सुनाने का और लिखने का एक अलग ही अंदाज है।अब पॉडकास्ट व ऑडियो के माध्यम से कविता को सुना जा सकता है साथ ही साथ वीडियो के माध्यम से कविता के सौंदर्य को देखते हुए सुना जा सकता है। इस वॉट्सऐप के जमाने में वन लाइनर कविताओं का बहुत ही ज्यादा प्रचलन है। ये वन लाइनर कविताएँ होती तो दो चार लाइनों की ही है, लेकिन इसमें बहुत ही गहरा भाव छुपा होता है। कविताएँ वॉट्सऐप के माध्यम से एक दूसरे को तत्काल में शेयर करके भी लुफ्त उठाया जा रहा है। कविताएँ सुनने और सुनाने के लिए कई तरह के फेसबुक, और इंस्टाग्राम जैसे नए प्लेटफार्म भी विकसित हुए हैं। आज इस बदलते दुनिया के दौर में हम तकनीक के माध्यम से दूर- दराज के स्थानों पर भी कवि सम्मेलन के लाइव प्रसारण से मनोरंजन कर रहे हैं । कंप्यूटर जैसे तकनीक के विकास के बाद ‘कविता' जब कागज से बाहर आकर स्क्रीन पर प्रकट हुई तो वह सिर्फ शब्द पर निर्भर नहीं रहा ;बल्कि उसने इस नए माध्यम की संभावनाओं का भरपूर इस्तेमाल किया और सूचना की नई तकनीक द्वारा निर्मित आभासी संरचनाओं को शब्द के सहयोजन में अथवा उसके विकल्प के तौर पर प्रस्तुत किया।

जब भावाभिव्यक्ति रूपी ‘कविताओं' के शब्द संवेदना के रसों से लथपथ है, जिसे सुनने और सुनाने पर आत्मानंद की प्राप्ति होती है तब इसे नये नये साइट के माध्यम से शेयर किया जा रहा है।फिलहाल तो ‘कविता' को सिर्फ चंद लाइनों में समेटा जाता है लेकिन कविताओं को यदि समझने का प्रयास किया जाए तो हमें पता चलता है कि इसमें तो समुद्र के समान गहराई हैं; समुद्र में गोते लगा कर ही इसे हम महसूस कर सकते हैं।इस तकनीक की दुनिया में प्राकृतिक सौंदर्य हो, हास्यात्मक व्यंग्य हो या प्रेम की अभिव्यक्ति हो इन सभी को ‘कविता' के शब्दों में पिरोकर एक दूसरे को पढ़कर, लिखकर, सुनाना और सुनना , काफी सरल और सहज हो गया है।आज कल के ज्यादातर नवयुवक प्रेम प्रसंगों को ‘कविता' के माध्यम एक दूसरे को सुनाते हुए दिख जाते हैं ।यह ‘कविता' सिर्फ प्रेम तक ही सीमित नहीं है, इसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्माभिव्यक्ति स्वेच्छा से सरलतापूर्वक कर रहा है।‘कविता’ मनुष्य को मनुष्य बने रहने की प्रेरणा देती है। जब-जब मानव जाति अपने कर्तव्य से विचलित होते रहे हैं तब-तब कवियों की कविताएं उन्हें प्रेरणा देने का कार्य करती आई हैं।वर्तमान में मनुष्य सांसरिक बंधनों में इस कदर लिप्त है कि किसी के दुख, दर्द, दीनता अभाव, क्रंदन का एहसास ही नहीं होता।मन के समस्त भाव किसी कोने में निष्क्रिय पड़े हैं। ‘कविता' इन्हीं भावों को जाग्रत करने का कार्य करती है।जब अंत: करण में शब्दों की उत्पत्ति होती है तब कोई बंधन नहीं होता, कोई रुकावट नहीं होती, बस विद्यमान होती है;भावात्मकता, अर्थात्मकता, सहजता, सरसता, सौंदर्य प्रियता, शांति प्रियता और स्वाभाविकता से परिपूर्ण रसात्मक अनुभूति, वही ‘कविता' होती है।

दरअसल डिजिटल ‘कविता' का आगमन कुछ- कुछ वैसा ही अनुभव लेकर आया है जैसा की 15 वीं शताब्दी में छापाखाने के आने पर हुआ था, जब प्रिंट माध्यम अस्तित्व में आया था। नई पीढ़ी जिसे ‘डिजिटल नेटिव' भी कहा जाता है, उसे कंप्यूटर का सहज अभ्यास है। इसलिए डिजिटल ‘कविता' तक उनकी पहुँच भी सहज है।कहने की जरूरत नहीं कि डिजिटल ‘कविता' को लेकर भी आशंकाएं हैं। पहली बात तो यही कि कागज के पृष्ठ पर ‘कविता' पढ़ने का अभ्यास जो आधुनिक जीवन में लगभग रूढ बन चला है, कंप्यूटर के स्क्रीन पर प्रकट होने वाली ‘कविता' के साथ किस तरह संगति बिठा पाएगा, कहना मुश्किल है। हिंदी में डिजिटल ‘कविता' का अभ्यास वैसे भी नहीं के बराबर है। इसलिए डिजिटल कवियों को हमारा साहित्यिक समुदाय बराबरी का दर्जा दे सकेगा, इसमें संदेह है। वह तो जनपदीय और लोक भाषाओं की कमियों को भी बराबरी का सम्मान देने को तैयार नहीं है। यह एक तरह का प्रिंट आधिपत्य है, जो लोग ‘कविता' को निरक्षर जनों के निम्न सांस्कृतिक उद्यम के तौर पर देख कर उसे हीन कोटि का समझते है, इसी गुरुर को तोड़कर डिजिटल ‘कविता' अपना आधिपत्य रचता है।

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