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“किताबें पढ़ो और बनो विद्वान्,
इनसे मिलेगी तुम्हें पहचान,
सभी गुणों का करतीं विकास,
यश, कीर्ति और वैभव के नित नए चढ़ो सोपान।“
किताबों की दुनिया की है अजब अनोखी पहचान,
इनकी दृष्टि में भेद नहीं है, भले ही कोई दरिद्र हो या हो धनवान,
ज्ञान चक्षु ये खोल हैं जातीं, साथ में देतीं अमूल्य ज्ञान,
बाल जगत हो, फैशन युग हो, या हो कोई भी व्यापार,
सभी तरफ चर्चा है इनकी, इनके बिना अपूर्ण संसार,
शिशु को अक्षर ज्ञान करातीं, वृद्धों को देतीं सम्मान,
पढ़-पढ़ पोथी भेद खोलतीं, निरक्षर भी बन जाए ज्ञानवान,
इनकी महिमा वो ही जाने, वो ही इनका महत्त्व पहचाने,
जो भी इनको पढता-गुनता, बन जाता वो ही गुणवान,
मनोरंजन तो करतीं ही हैं, सदा करातीं आत्मज्ञान,
इनकी दुनिया अजब-गजब है, विचित्र अनूठी इनकी शान,
सबको सराबोर कर देतीं, इनकी महिमा अपरम्पार,
कइओं को सदमार्ग दिखातीं, नैतिकता का बोध करातीं,
जिनका होता तनिक रुझान,
ज्ञान-पिपासा शांत करातीं, पुस्तकालयों की शान बढ़ातीं,
बच्चे, बूढ़े या हो जवान, युवती, अल्हड़ या विद्वान,
सबका करतीं बेड़ा पार,
इनकी सीख तो ऎसी होती, जैसे पाथर में भगवान,
ज्ञानवान ही परख है सकता, इनका अक्षरश: मूल्यवान,
सभी तरह का ज्ञान समाहित, आस्था विश्वास इनमें निहित,
हो वेद ज्ञान या भले पुराण, इनकी अलौकिक आन और बान,
ये व्यक्तित्व का करें निर्माण, बहुमुखी प्रतिभा का दें प्रतिदान,
परखें, निरखें और संवारें , दुर्गुण का ये करें विनाश, सद्गुण का ये करें विकास,
प्रतिभाशाली प्रतिभाओं का बढ़े सदा चहुँ ओर प्रताप,
सर्वांगीण मनुज बन जाता, दया, प्रेम, करुणा सिखलाता,
मानवता का प्रभु से नाता, किताबों से सन्देश ये आता,
इनकी महिमा हर कोई गाता, दीन, रुग्ण, धनिक या हो बलवान,
इनकी दृष्टि में पक्षपात का लेश नहीं है, सर्वधर्म समभाव यही है,
गंगा-जमुनी तहज़ीब यही है, सब धर्मों का सार यही है,
विनीत रहो और विनम्र बनो तुम, नेकी की मिसाल बनो तुम,
शिक्षा का भी मंत्र यही है, शिक्षा का भी मंत्र यही है।

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