माँ थक रही है
या उम्र बढ़ती जा रही है!
आँखें कुछ दबी दबी सी,
चाल कुछ धीमी
और आवाज भी कुछ मंद होती जा रही है!!
चिंताओं की रेखाओं में
भविष्य की कोई अदृश्य नदी
'अपने आवेग' से बहती जा रही है!
कोई नहीं है रास्ता
बस अपने हौंसलों से
निरन्तर बढ़ती जा रही है!!
वो बदली नहीं जमाने की रंगत से
वही कर्म की पोटली
सिर पर उठाये चली जा रही है!
दूर है 'मन की मंजिल' बहुत
यह जानकर भी थके पैरों से
वो जीवन के संघर्ष पथ पर चली जा रही है!!
कुछ मिला अपनों से
इस चिंता से दूर
बस अपनों के लिए जिए जा रही है!
जिंदगी है जिंदगी
इस रहस्य को समझ
सुख-दुःख को अमृत सा पिए जा रही है!!