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मां सुनसान सडक पर कर गया गुमराह कोई
मुझे दूर
सबसे दूर ले रहा कोई
सिहर सा रहा था मन
अकेला सा पा रहा खुद को
पर मेरे आसूओं पर ठहाके लगा रहा कोई
न जाने क्यों घर का आंगन याद आ रहा
भाई से लडना
दीदी का मनाना
तुम्हारी डांट
पिता कि चिंता
बारी बारी मुझको रूला रहा
मां
थी कशमकश में
जिदगीं किस मोड़ पर लाने वाली है
लुटने वाली है आबरू मेरी
या जान मेरी जाने वाली है
काली अमावस्या थी वो
भीतर तक सिहरन पैदा करने वाली
दहल उठती है आत्मा मेरी
जब याद आता है
भूखे भेडियों की तरह मुझे नोच खा रहे थे वो
मुझे दर्द दिया यातनाएं दी
मै रोई चिल्लाई हाथ जोड़ विनती की
पर सुनने वाला न था कोई
कैसे बेदर्द थे वो
छीनकर मेरी आबरू
छीनकर मेरी सांसे
उनका दिल नही पसीजा
फैंक आए मेरे नग्न शरीर को
किसी सडक के किनारे
मां मै जा चुकी थी
मै जा चुकी थी
गुडिया कहतीहै
न निलाम करो मेरी निवस्त्र तस्वीरों को यूं
तडप उठती है आत्मा मेरी
जो उन शैतानो ने किया बंद कमरे मे
तुम न खुले मे करो यूं
दिल दहल उठता था मेरा
सडकों पर जुलुस देख
इंसाफ तो दिला न पाय
बस पार्टी का प्रचार करते रह गय
दास्तां बन चुकी है मेरी कहानी
जिसके लिए कभी लडा था कोई
एक गुंज उठी थी गलियों मे
हर जुंबा पर
लहर थी न्याय की
लहर थी सच्चाई की
तो फिर क्यों खामोश है
ये जहान
कही भूला तो नहीं दिया
मै तो जा चुकी हूं
पर रोक लेना
कही ये वारदात फिर किसी की बेटी के साथ न हो
अगर यही हाल रहा तो
मुझे डर है
न चाहते हुए भी
कही मां बाप को कन्या भ्रूण हत्या का सहारा न लेना पडे
अपनी नन्ही कली को इस बेहरम दुनिया से बचाने के लिए
रोक लो
वक्त रहते रोक लो

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