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मै जीऊँ दुनिया से अलग
एक कोने मे
किसी डर के साथ
शायद कुछ खोने का डर हो जैसे
जैसे कोई आहट कहती हुई
हारना नहीं
एक चिगांरी जलती हुई
घनघोर अधेंरों मे
मैं बिना थके चलती रही
रूकी न तूफान से
न किसी के साथ को रूकी

अकेली
सिमटी हुई किसी राह मे
एक मोड़ लाख
मुश्किलों से भरा
चल रही एक उम्मीद के साथ

मै चल रही
दुनिया की हर हरकत को सजाते
और संवारते हूए
बुराई से सीखकर
अच्छाई को जीकर

अपनी हार पर
पीछे खडे शक्स को देख
शांत होती हुई
मिलता हौंसला
कुछ कर गुजरने का जज्बा
ऊंचाई पर खडे लोगों को देख
मै जीती हुं
हार और जीत के
दोनों पहलू साथ लेकर

मै जीती हुं जमाने से हटकर
कारवाँ बदलने की चाह के साथ

मै जीती हूं
मेरे डर
उम्मीद
और मकस्द के साथ
संवारने वाले कुछ ही मिलते है
पर घृणा करने वाले कई है कतार मे

फिर भी मै जीती हूं
अपने अदांज के साथ

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