Photo by Amine İspir: pexels

नारी मैं
कभी ममता से परिपूर्ण
इस जग में सबसे निराली मैं
कभी हूं, लक्ष्मी स्वरूपा सी
कभी बुराई से लड़ने वाली काली मैं
दिन चढ़ता है, दिन ढलता है
भाकर से भी बलशाली मैं
ठोकर खा कर हंसती हूं, टूटने पर रोती हूं
अश्रु मेरे साथी है, इसलिए इतनी शक्तिशाली मैं
तुम अड़चन ही पैदा कर सकते हो
क्या तोड़ोगे होंसला मेरा
खुद तूफान में रहकर भी
हजारों पक्षियों को सहारा दूं
उस मजबूत पेड़ की डाली मैं
घर की ज़िमेदारी बेटे के समान ही निभाती हूं
एक नहीं दो दो घर की इज़्ज़त को खुद में समेटे हूं
कभी मां, कभी बेटी, कभी बहू
रूप अनेक पर सृष्टि को चलाने वाली नारी मैं
अव्वल हूं, अबला नहीं
टूट कर बिखर जाऊं, नहीं वो बिचारी मैं
हर परिस्थिति में स्वभावशाली मैं
तुलसी हूं घर की, ज़िंदगी का सार हूं
आने पर प्रभु को जो दो वो आभार हूं
इज़्ज़त देने पर तुम्हारी शत शत आभारी मैं
जो भीगा दिए नैना मेरे, तुम्हारे दर पर दुखों की पहरेदारी मैं
कभी ममता से परिपूर्ण,
इस जग में सबसे निराली मैं
कभी हूं, लक्ष्मी स्वरूपा सी
तो कभी बुराई से लड़ने वाली काली मैं
इस जग में सबसे निराली मैं
अपनो के लिए जान की बाजी लगाऊं
वो नारी मैं
इस जग में सबसे निराली मैं

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