Photo by cottonbro studio: Pexels

नमस्कार मैं आपको याद दिलाना चाहती हूं की आज मनुष्यों के कारण जीवों की कई प्रजातियां संकट में हैं और लगभग विलुप्त होने की कगार पर हैं। आपने अक्सर ऐसे स्लोगन देखे होंगे जैसे Save Tiger या Save Sparrows या Save Earth.

पर क्या आपको इस बात का एहसास है कि स्त्रियां भी विलुप्त हो रहीं हैं ?

नहीं ना…. जी हां मैं सही कह रही हूं । याद कीजिए अपना बचपन जब आप स्कूल से आते थे और एक तरफ बैग फेंकते थे दूसरी ओर जूते और मोजे और दौड़ कर सीधे किचन में जाते थे तो क्या देखते थे । आपकी मां … जो किचन में आपके आने से पहले ही आपका मनपसंद पकवान बनाने में व्यस्त रहा करती थीं। आप दौड़कर जाते और उनका आंचल पकड़कर बोलते "मम्मी मुझे बहुत जोर से भूख लगी है।" पर आज के बच्चो को वहां क्या दिखता या दिखती हैं? ज्यादातर केसेज में नौकरानियां । क्युकी मां तो ऑफिस गई होती हैं। या फिर किन्हीं घरों में बूढ़ी दादी जिनसे अपना शरीर संभलता नहीं पर फिर भी अपने पोते पोती के लिए वो रिटायरमेंट की उम्र में आराम करने की बजाय नई जिम्मेदारियाँ उठा रही हैं।

एक समय था जब गरीब औरतें ही घर के बाहर नौकरी करने जाती थीं जिनके पति की कमाई से दो वक्त का भोजन भी नही मिल पाता था । पर आज बड़े बड़े सरकारी अफसरों की पत्नियां भी जॉब करती हैं क्युकी वो अपनी शिक्षा का सही प्रयोग करना चाहती हैं । वो अपनी माता के समान अनपढ़ नहीं हैं । और वो अपनी योग्यता साबित करना चाहती हैं।

पुराने जमाने में हमे अपनी दादियां बुरी लगती थीं क्युकी हिंदी फिल्मों की शशिकला की तरह वो दिन भर हमारी मां के काम में नुश्ख निकाला करती थीं पर अब तो कहीं कहीं दादी दादा ही नसीब नहीं होते क्युकी कामकाजी महिलाएं उनकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकतीं।

कुछ महिलाओं का कहना है की वो जॉब करती हैं ताकि सास के साथ कम से कम समय बिताना पड़े और घरेलू झगड़े कम हों। जिन्हें सास ससुर नहीं मिले वो इसलिए जॉब करती हैं क्योंकि घर पर बोर हो जाती हैं। अरे भाई घर में झाड़ू पोंछा वाली , कपड़े धोने वाली , खाना पकाने वाली लगी है तो बोर तो होगी ही। चलिए ये बात मान भी लें तो इन मांओं को अपने बच्चो की तो परवाह करनी चाहिए । पर ये तो उनके लिए भी नौकरानी रख कर या उन्हें क्रेच या डे बोर्डिंग में डालकर उनकी जिम्मेदारी से भी बचना चाहती हैं । जिन बच्चों को मां का पूरा समय मिल सकता है , जिनके पिता परिवार के लिए अच्छा कमा रहे हैं उन्हें भी अपनी मां का पूरा समय नहीं मिल रहा।

जब बच्चा बीमार है और चाहता है की मां उसके पास रहे तब मां को ऑफिस में जरूरी मीटिंग अटेंड करनी होती है । और वो अपने बच्चो को दवा देकर कहती हैं "बेटा तुम दवा पीकर आराम करो मम्मा को ऑफिस जाना जरूरी है अगर मम्मा ऑफिस नही जायेगी तो तुमरे लिए अच्छे अच्छे खिलौने कैसे लाएगी ?"

अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे को आपके समय और साथ से ज्यादा खिलौने , बर्गर , पिज्जा और आइसक्रीम प्यारे हैं तो कल इन बच्चों को भी यही लगेगा कि आपको उनके साथ से ज्यादा ऐशो आराम प्यारा है । बच्चे को आपका अहसास , आपका स्पर्श और आपका साथ सबसे अधिक प्यारा है।

कल जब ये माएं मर रही होंगी और अंतिम समय में अपने बेटे या बेटी का हाथ पकड़कर उन्हें महसूस करना चाहेंगीं तो शायद इनके बच्चे भी इन्हे जहर की शीशी देकर ऐसे ही बहलायेगे "मम्मा आप जहर पीकर आराम से मरो मुझे ऑफिस में जरूरी काम है सोचो अगर मैं ऑफिस नहीं गया तो तुम्हारी शानदार तेरही कैसे करूंगा ? देखना शहर के सभी ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन कराऊंगा। तुम्हारी आत्मा सीधी स्वर्ग जाएगी। "

आज आप अपने बच्चो को अपना मुंह देखने के लिए तरसाइए कल बुढ़ापे आप उनका मुंह देखने के लिए तरसिए । आप बच्चो को शिक्षा दे रही हैं की करियर और पैसा सब रिश्तों से ज्यादा जरूरी है। कल आपके बच्चे विदेशों में सेटल हो जायेगे और आपकी देखभाल के वो भी नौकरानी का बंदोबस्त कर देंगे तब आपको अहसास होगा कि अपनों का साथ पैसों से ज्यादा जरूरी है।

यह तो माता पिता और बच्चो की बात है आजकल तो कैरियर के लिए पति और पत्नी भी एकदूसरे से दूर दूर रहते हैं । ऐसे में पति अपने लिए और पत्नी अपने लिए एक टाइम पास खोज लेते हैं । ये कैसी शादी है ? ये कैसा सात जन्मों का बंधन है? ऐ?से पति पत्नी प्रायः ओपन रिलेशनशिप नामक व्यभिचार का बढ़चढ़ कर समर्थन करते हैं और खुद को आधुनिक दिखाने की कोशिश करते हैं। क्या यही आधुनिकता है ? क्या हमारे पूर्वज मूर्ख थे जो ब्रह्मचर्य जैसी बकवास का समर्थन करते थे? व्यभिचार ही आधुनिकता है।

फिर ऐसे परिवार में बुजुर्गों की क्या गति होती है? सास ससुर जो बेटे बहु के लिए लाखों की प्रॉपर्टी छोड़ कर जाते हैं उनकी एक बात बहु को बर्दास्त नहीं पर बॉस जो 15 या 20 हजार महीना देता है उसकी गलियां भी महिलाओं को सम्मानजनक लगती हैं।

सोचिए..... अपनी सास और मां के बारे में, कितने प्यार से उन्होंने अपने घर की एक एक चीज खरीदी और उसे आपके लिए सहेज कर रखा । आज बुढ़ापे में वो अपने घर के प्रति आपका भी उतना ही समर्पण चाहती हैं तो क्या गलत है?

इसीलिए कहती हूं स्त्रियां समाप्त हो रहीं हैं सब पुरुष बनती जा रहीं हैं और परिवार में इनकी रुचि दिन पर दिन कम हो रही है । कैरियर धन और प्रैक्टिकल होना आज स्त्रियों में आम बात है जिसे मैं कहूंगी की पुरुष प्रकृति की निशानी है।जिस दिन सभी स्त्रियां समाप्त हो जायेंगी उस दिन से मानव जाति का पतन शुरू हो जायेगा और ये शीघ्र होगा।

अब बात करते है पुरुषों की , अगर आपको ऐसी पत्नी मिली है जो आपकी कमाई में गुजारा कर रही है , आपके बच्चो का ध्यान रख रही है, आपके माता पिता की हर जरूरत समय पर पूरी कर रही है तो यकीन मानिए आपने एक स्त्री से विवाह किया है बल्कि आप एक देवी ब्याह ले आए हैं । उसपर अपनी कमाई का रौब मत जमाइए बल्कि अपनी पूरी कमाई उसके हाथ में रखिए । क्योंकि आप तो उसके लिए बस धन कमा रहे हैं पर वो आपके लिए आपके माता पिता का आशीर्वाद, बच्चों का स्नेह, समाज में सम्मान और भविष्य के लिए एक स्वस्थ समाज कमा रही है। आपकी कमाई में उसका आधा हिस्सा है तो उसकी कमाई (आशीर्वाद , स्नेह व सम्मान) में आपका आधा हिस्सा लगेगा ।

एक परिवार चलाने के लिए एक मर्द और एक औरत चाहिए नकी दो मर्द। फिर भी यदि महिलाओं को लगता है की वो काबिल हैं और अपने पति से अधिक पैसे कमा सकती हैं तो उन्हें बच्चो को जन्म नही देना चाहिए । पहले पैसे कमा लीजिए जब आपको लगे की अब मैंने पैसे बहुत कमा लिए तब बच्चो को जन्म दीजिए या गोद ले लीजिए। संसार के सभी बच्चे उसी एक परमात्मा की संतान हैं।

आज के आधुनिक समाज में जहां लिव इन रिलेशनशिप व ओपन रिलेशनशिप जैसे रिश्ते आधुनिकता के नाम पर, समाज द्वारा मान्य हैं , वहां मात्र शारीरिक आवश्यकताओ के लिए विवाह जैसे पवित्र संस्कार की आवश्यकता ही क्या है ? मॉर्डन समाज में शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप वगैरा का चलन है जिसमे आपको शादी के सारे लाभ मिलते हैं और शादी की कोई परेशानियां व जिम्मेदारियां नही उठानी पड़ती। आप आजादी से जी सकते हैं और शारीरिक सुख उठा सकते हैं । चाहे स्त्री हो या पुरुष जब आपको लगे की आपने अपनी जिंदगी जीभर के जी ली अब आप दूसरों के लिए जीना चाहते हैं तभी विवाह कीजिए और संतान को जन्म दीजिए । तभी गृहस्थ जीवन की शुरूआत कीजिए । पुरुषों को आर्थिक जिम्मेदारियां व स्त्रियों को पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने दीजिए। बच्चों को माता व पिता का पूरा समय व प्यार दीजिए।

नासमझी में सिर्फ परिवार के दबाव में विवाह मत कीजिए। बच्चों को प्रेम भरे वातावरण में पालिये। आपने धरती के सबसे अद्भुत जीव को जन्म दिया है , यह बहुत खास है और इसकी देखभाल भी खास होनी चाहिए । यही मानव शरीर आपको मोक्ष दिला सकता है और यही आपको भरपूर आनन्द की अनुभूति भी कराता है। इसका भरपूर आनन्द लीजिए और जब आप इसका आनन्द ले चुकें तब इसे मोक्ष के मार्ग पर लगा दीजिए । गृहस्थ आश्रम भी मोक्ष प्राप्ति का ही एक मार्ग है। इसे हल्के में मत लें । इसका श्रद्धा पूर्वक वहन करें। आपका जीवन साथी ईश्वर का रूप है क्योंकि वह आपको इस जन्म मृत्यु के चक्रव्यूह से निकाल सकता है । अपने पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ काम , मोक्ष) का पालन करते हुए इसी गृहस्थ आश्रम के कारण आप मुक्त हो सकते हैं। कृत्रिमता में न फंसे। करियर, फ्यूचर, रुपया , सेक्स इन्ही के आगे पीछे मत घूमिये । ये आपको भटकाते रहेंगे। पाश्चात्य परंपरा का अनुसरण करना बेवकूफी है। क्या वाकई पाश्चत्य सभ्यता अनुकरणीय है?

हमारे बच्चों को विदेशियों ने अपने यहां नौकर रखा है और खुद यहां आकर आध्यात्मिक ज्ञान बटोर रहे हैं। ये देखकर एक पुराना गीत याद आया।

"राम चन्द्र कह गये सिया से ऐसा कलयुग आएगा ।
हंस चुगेगा दाना दुनका, कौवा मोती खाएगा।"

हमारे हंस वदेशियों के फेंके दाने चुग रहे हैं और विदेशी हमारे देश के मोती चुग रहे हैं।

आपको मेरा सुझाव कैसा लगा कॉमेंट में अवश्य बताइए । 

धन्यवाद।

.    .    .

Discus