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कितने और युद्ध मांगेंगे
यह दुनिया वाले
थक चुके हैं जान दे दे
बूढ़े, बच्चे और जवान।
कितना और रक्त मांगेंगे
यह दुनिया वाले
हार चुकी धरती अरब की
अपने रक्त का दे दे बलिदान।
वर्ष हो चुके दो
अब तो रुक जाओ।
कितने बच्चों, औरतो, बुढ़ो
और जवानों की आंखों को
रक्त में डूबा,
रह गया है देखना बाकी।
राजनीतिक ताकतों को
नजर नहीं आता यह दुखों
का अंबार कभी
क्योंकि वे हो चुके हैं
अंधे, अपने बदले की आग में।
देखकर भी अनदेखा
कर देते हैं सारे के सारे।
उन्हें लगता केवल
वह ही है सही।
उनके बदले का नहीं आता
कोई अंत नजर।
चलती गोलियों का शोर
कर देता है कानों को बहरा।
फटते बम के आकाशी गोल
धरती को फाड़
उसमें भर देते हैं बारुद
ताकि रह जाए
याद हमारे पीढ़ियो को
कि यहां इंसानों के रूप में
राक्षसों का था वास।
दुनिया में इंसानों के अतिरिक्त
है नहीं कोई प्रजाति,
जो अपने ही भाइयों
और बहनों का अंत
करना कर सुनिश्चित।
किंतु हम इंसान
इसको सिद्ध करने का
छोड़ते नहीं कोई मौका।
लगे रहते हैं एक दूसरे की
टांग खींच खींच पीछे करने में।
भले ही इसमें रक्त
कितना ही न बह जाए।
किस-किस को जिम्मेदार ठहराएं
इस जगत की बर्बादी का।
कहीं न कहीं
हर कोई है जिम्मेदार
इसको कुकर्म का।
चाहे इसराइल हो, चाहे ईरान
या हो फिर फिलिस्तीन;
हर कोई बहाता है रक्त
इसको माने सही किसको गलत।
है बने यहां ठेकेदार सभी
करने अपनी-अपने पैरवी।
अरे कोई तो रोक लो
कोई तो समझो
और रोक दो
एक और मौत होने से,
एक और बच्चे की आंखों में
रक्त भर जाने से।