एक बहुत ही प्रसिद्ध कथन कि "अगर आपका धन खो जाता हैं तो कुछ नहीं खोता, अगर निरोगी काया खो जाए तो थोड़ा बहुत खो गया । और अगर आपका चरित्र खो जाए तो इसका मतलब आपने सबकुछ गँवा दिया।" चरित्र हमारे शरीर की रीढ़ की हड्डी के समान हैं जो हमारे शरीर को सीधा करती हैं और गति प्रदान करती हैं । हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास इसी पर निर्भर हैं । हमारा चरित्र हमारे व्यक्तित्व को मजबूत बनाता हैं । आज अगर हम इतिहास के पृष्ठ को खोलना शुरू करे तो ऐसे सद्चरित्र की रोशनी से पूरा इतिहास आलोकित होता नज़र आता हैं । चाहे महर्षि दघीचि, राजा शिवि, सत्यवादी हरिश्चंद्र, भीष्म पितामाह, युधिष्ठिर, परशुराम, कलयुग की बात करें: महराणा प्रताप, गुरु गोबिंद सिंह, झाँसी की रानी इत्यादि । कलम को विराम लगाना अत्यंत कठिन है क्योंकि हमारे देश भारत पूरे विश्व में ऐसी ही महानतम संस्कृति के लिए जाना जाता हैं । हम जीवन में ऐसी कितनी ही परिस्थितियों का सामना करते हैं, जब हमे उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं हो पाता और यही अज्ञानता हमारे चरित्र के पतन का कारण बनती हैं । आचार्य चाणकय जिन्होंन देश को चन्द्रगुप्त मौर्या जैसा सम्राट दिया । केवल उनकी शिक्षा का ही परिणाम है कि आज भी हम चाणक्य नीति का अनुसरण कर जीवन को उन्नति के मार्ग की और अग्रसर करते हैं । जीवन की महत्वपूर्ण सीख है कि अपने मित्र और शत्रु में पहचान करना आना चाहिए । आचार्य चाणक्य चन्द्रगुप्त को यही बात समझा रहे हैं कि जो आम्भिक तुमसे इतना मित्रवत व्यवहार करने लगा हैं और जो लोग पहले तुम्हे अपने साथ पढ़ते हुए भी नहीं देखना चाहते थें, अब वो तुम्हारी प्रशंसा करने लगे हैं क्या यह संदेह प्रकट नहीं करता कि बिना किसी कारण के वह तुम्हारी प्रशंसा क्यों करने लगे हैं । जिनके पास केवल तुम्हें परेशां करने का ही उद्देश्य था।

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वह अब तुम्हारे साथ सरल और सहज व्यवहार करने लगे हैं । यह सब अज़ीब है और सहजता से स्वीकार करने वाला विषय नहीं हैं। हमें भी इस बात को समझने की आवश्यकता हैं, हमें खुश नहीं होना चाहिए कि लोग बदल रहे हैं अपितु मन में एक जागरूकता होनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि इनक आचरण हमारे प्रति बदल गया है। अक्सर ऐसा होता है कि कोई पहले हमारी अत्यधिक आलोचना करता है, हमारे निंदा कर हमारे आत्मसम्मान को दूसरे के सामने चोट पहुँचाने से भी नहीं पीछे नहीं हटता । वह हमारा शत्रु की भूमिका का निर्वाह भी पूरी कर्मठता के साथ करता हैं । तभी अचानक उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगे। वह हमारा हितेषी हैं ऐसा दिखाने लगे । उसकी करनी जहाँ पहले काँटेदार थीं वहीं कथनी में अब शहद की मिठास आने लगे । और हम भी उसके इस दोहरे चरित्र को न समझ सके । यहीं हमारी अज्ञानता का परिचय और हमारे चरित्र के पतन का आरम्भ हैं । क्योंकि ऐसे व्यक्ति कभी सही अवसर के लिए घात लगाए बैठे होते हैं । जैसे ही उन्हें लागत ही कि हम उनपर भरोसा करने लगे है वैसे ही वह हमारी ढाल बन हमारी काट करने से पीछे नहीं हटते और अंत में हमे पछतावा होता हैं पर तब कटक बहुत देर भी हों जाती है क्योंकि हो सकता है कि उनके इस चलन से दूसरो का भी अहित कर बैठे । क्योंकि संगति मनुष्य को आम से बबूल बना देती हैं तभी किसी समझदार आदमी ने कहा है कि गलत संगत करने से अच्छा है कि अकेले रहो" । अकेला व्यक्ति अपने नवीन विचारो से कुछ समाज का उत्थान कर सके । परन्तु गलत संगत का परिणाम महाभारत है । सब जानते है कि सुयोधन को दुर्योधन बनाने का श्रेय शकुनि को जाता हैं । कैकेयी भी मंथरा की बातों मैं आ कर कुमाता की पदवी प्राप्त कर चुकी है आज कोई भी अपने बच्चों का नाम दुर्योधन और कैकेयी नहीं रखता हैं । यहीं चरित्र के पतन का परिणाम है । हम ऐसे व्यक्ति का उदहारण समाज को नहीं दे सकते जिन्होंने स्वयं के लिए ही नहीं दूसरो का भी बुरा किया हैं । ऐसे व्यक्ति दूध से ढके विष की तरह होते हैं । मन और तन को शांति देने वाला पदार्थ दूध दरसअल हमें क्षति पहुँचाने वाला विष हैं जो हमें इस तरह नुकसान पहुचायेंगा कि हम भी उसके विषैले व्यवहार से प्रभावित होकर दूसरो को कष्ट दे सकते हैं और यहीं हमारी छवि को धूमिल करेंगा जिस तरह काजल की कोठरी में जाकर आप काले होकर ही बाहर निकलोगे । इसलिए सचेत और सावधान रहकर मित्र और शत्रु के अंतर को समझने की समझ रखना अत्यंत ज़रूरी हो गया हियँ आजकल के युग में जहाँ इतनी प्रतिस्पर्धा है और आपके सुख से दुखी होने वाले लोगों मैं भी कोई कमी नहीं हैं । आपको नीचा' दिखाने का प्रयास लोग करते रहते हैं । अतः वह कभी भी हमारे शुभचिंतक नहीं हो सकते हैं हमारे मित्र भी नहीं हो सकते हैं । क्योंकि वह तो करीब आ केवल आपकी कमज़ोरी का पता लगाकर आपको हानि पहुंचाने की ताक में रहते हैं । और हम भी उनकी बातो में आकर सही और गलत के बीच का फर्क भूल जाते हैं । और निंदा का पात्र बन जाते हैं । यहीं से हमारे चरित्र का हैं होना शुरू हो जाता हैं । लोग हमारे बारे में एक गलत धारणा बना लेते हैं और हम भी जीवन में गलत निर्णय लेकर स्वयं को अहित कर बैठते हैं और हमारी रीढ़ की हड्डी में फर्क आ जाता हैं । अतः हमने चाहिए कि हम सावधान और सचेत रहे । ऐसे लोगो के कृत्रिम व्यवहार को समझने करें और अपने व्यक्तित्व को सुदृढ बनाए । तभी दुसरो के लिए सदैव प्रेरणा बने रहेंगे । आने वाली कई पीढ़ी भी हमसे कुछ सीख सकेंगी और जब भी स्वयं का आकलन करेंगे तो किसी भी अपराध बोध से ग्रस्त नहीं होंगे एक बहुत ही प्रसिद्ध उक्ति है कि अगर आपका धन खो जाता हैं तो कुछ खो जाता हैं, तो कुछ भी नहीं खोता, अगर निरोगी काया खो जाए तो थोड़ा बहुत खो गया । और अगर आपका चरित्र खो जाए तो इसका मतलब आपने सब कुछ आपने गँवा दिया।" चरित्र हमारे शरीर की रीढ़ की हड्डी के समान हैं जो हमारे शरीर को सीधा करती हैं और गति प्रदान करती हैं । हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास ऐसी पर निर्भर हैं । इसी तरह हमारा चरित्र हमारे व्यक्तित्व को मजबूत बनाता हैं । आज अगर हम इतिहास के पृष्ठ को खोलना शुरू करे तो ऐसे सद्चरित्र की रोशनी से पूरा इतिहास आलोकित होता नज़र आता हैं । चाहे महर्षि दघीचि, राजा शिवि, सत्यवादी हरिश्चंद्र, भीष्म पितामाह, युधिष्ठिर, परशुराम, कलयुग की बात करें महराणा प्रताप, गुरु गोबिंद सिंह, झाँसी की रानी इत्यादि । कलम को विराम लगाना अत्यंत कठिन है क्योंकि हमारे देश भारत तो पूरे विश्व में ऐसी ही महानतम संस्कृति के लिए जाना जाता हैं । हम जीवन में ऐसी कितनी ही परिस्थितियों का सामना करते हैं, जब हमे उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं हो पाता और यही अज्ञानता हमारे चरित्र के पतन का कारण बनती हैं ।

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आचार्य चाणकय जिन्होंन देश को चन्द्रगुप्त मौर्या जैसा सम्राट दिया । केवल उनकी शिक्षा का ही परिणाम है कि आज भी हम चाणक्य नीति का अनुसरण जीवन को उन्नति के मार्ग की और अग्रसर करते हैं । जीवन की महत्व सीख है कि अपने मित्र और शत्रु में पहचान करना आना चाहिए । आचार्य चाणक्य चन्द्रगुप्त को यही बात समझा रहे हैं कि जो आम्भिक तुमसे इतना मित्रवत व्यवहार करने लगा हैं और जो लोग पहले तुम्हे अपने साथ पढ़ते हुए भी नहीं देखना चाहते थें , अब वो तुम्हारी प्रशंसा करने लगे हैं । क्या यह संदेह प्रकट नहीं करता कि बिना किसी कारण के वह तुम्हारी प्रशंसा क्यों करने लगे हैं । जिनके पास केवल तुम्हें परेशां करने का ही उद्देश्य था । वह अब तुम्हारे साथ सरल और सहज व्यवहार करने लगे हैं । यह सब अज़ीब है और सहजता से स्वीकार करने वाला विषय नहीं हैं । हमें भी इस बात को समझने की आवश्यकता हैं, हमें खुश नहीं होना चाहिए कि लोग बदल रहे हैं अपितु मन में एक जागरूकता होनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि इनका आचरण हमारे प्रति बदल गया है। अक्सर ऐसा होता है कि कोई पहले हमारी अत्यधिक आलोचना करता है, निंदा कर हमारे आत्मसम्मान को दूसरे के सामने चोट पहुँचाने से भी नहीं पीछे नहीं हटता । वह हमारा शत्रु की भूमिका का निर्वाह भी पूरी कर्मठता के साथ करता हैं । तभी अचानक उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगे। वह हमारा हितेषी हैं, ऐसा दिखाने लगे । उसकी करनी जहाँ पहले काँटेदार थीं वहीं कथनी में अब शहद की मिठास आने लगे । और हम भी उसके इस दोहरे चरित्र को न समझ सके । यहीं हमारी अज्ञानता का परिचय और हमारे चरित्र के पतन का आरम्भ हैं । क्योंकि ऐसे व्यक्ति कभी सही अवसर के लिए घात लगाए बैठे होते हैं । जैसे ही उन्हें लगता है कि हम उनपर भरोसा करने लगे है वैसे ही वह हमारी ढाल बन हमारी काट करने से पीछे नहीं हटते और अंत में हमे पछतावा होता हैं पर तब बहुत देर भी हों जाती है क्योंकि हो सकता है कि उनके इस चलन से हम भी दूसरो का अहित कर बैठे हों । क्योंकि संगति मनुष्य को आम से बबूल बना देती हैं । तभी किसी समझदार आदमी ने कहा है कि "गलत संगत करने से अच्छा है कि अकेले रहो" ।

व्यक्ति अपने नवीन विचारो से कुछ समाज का उत्थान कर सके । परन्तु गलत संगत का परिणाम महाभारत है । सब जानते है कि सुयोधन को दुर्योधन बनाने का श्रेय शकुनि को जाता हैं । कैकेयी भी मंथरा की बातों मैं आ कर कुमाता की पदवी प्राप्त कर चुकी है आज कोई भी अपने बच्चों का नाम दुर्योधन और कैकेयी नहीं रखता हैं । यहीं चरित्र के पतन का परिणाम है । हम ऐसे व्यक्ति का उदहारण समाज को नहीं दे सकते जिन्होंने स्वयं का ही नहीं दूसरो का भी बुरा किया हैं । ऐसे व्यक्ति दूध से ढके विष की तरह होते हैं । मन और तन को शांति देने वाला पदार्थ वो दूध दरसअल हमें क्षति पहुँचाने वाला विष हैं जो हमें इस तरह नुकसान पहुचायेंगा कि हम भी उसके विषैले व्यवहार से प्रभावित होकर दूसरो को कष्ट दे सकते हैं और यहीं हमारी छवि को धूमिल करेंगा जिस तरह काजल की कोठरी में जाकर आप काले होकर ही बाहर निकलोगे । आजकल के युग में जहाँ इतनी प्रतिस्पर्धा है और आपके सुख से दुखी होने वाले लोगों में भी कोई कमी नहीं हैं । आपको नीचा' दिखाने का प्रयास लोग करते रहते हैं। अतः वह कभी भी हमारे शुभचिंतक नहीं हो सकते हैं हमारे मित्र भी नहीं हो सकते हैं । क्योंकि वह तो करीब आकर केवल आपकी कमज़ोरी का पता लगाकर आपको हानि पहुंचाने की ताक में रहते हैं । और हम भी उनकी बातो में आकर सही और गलत के बीच का फर्क भूल जाते हैं । और निंदा का पात्र बन जाते हैं । यहीं से हमारे चरित्र का हनन होना शुरू हो जाता हैं । लोग हमारे बारे में एक गलत धारणा बना लेते हैं और हम भी जीवन में गलत निर्णय लेकर स्वयं का अहित कर बैठते हैं और हमारी रीढ़ की हड्डी में फर्क आ जाता हैं । अतः हमें चाहिए कि हम सावधान और सचेत रहे । ऐसे लोगो के कृत्रिम व्यवहार को समझने का प्रयास करें और अपने व्यक्तित्व को सुदृढ बनाए । तभी दूसरों के लिए सदैव प्रेरणा बने रहेंगे । हमें लगेगा कि हमने अपना हीरे जैसा जन्म कौड़ी के बदले नहीं जाने दिया और यही उत्तम चरित्र ही हमारी जीवन की पूंजी है जिसे हम किसी भी हाल में गँवा नहीं सकते हैं ।

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