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कौन था वो, जिसने समाज को बाँट दिया
कोई पंडित था
विद्वान था
या बड़े घरों ,
में रहने वाला धनवान था
वेद-पुराण पढ़ लिए
तो भगवान के द्योतक बन गए
रोशनी के दूत बनकर
अँधेरे में चमक गए
भुजाओं ने इतना बलशाली कर दिया
शक्तिशाली को कुर्सी के हवाले कर दिया
शासक बन प्रजा को पालता रहा
एक नए वर्ग का निर्माण हो गया
लोग इन्हें भी ऊँचा मानने लगे
नए नामों से पुकारने लगे
बोकर खाना भी इतना आसान नहीं था
सामान बेचने वाला कोई कमतर इंसान नहीं था
व्यापारी और दुकानदारी भी होने लगी थीं
इनकी गिनती भी पैसों वालों में होने लगी थीं
मगर रहने के लिए सफाई भी ज़रूरी है
काम तो काम है न कोई मज़बूरी है
जो बोझ उठाए,
वो मज़दूर नहीं होंगे तो कौन सामान उठाएगा
महलों में रहने वालों को
कौन आराम पहुँचायेगा
दरिया में चलती नाव को कौन
पार पहुंचाएगा
सब जानते थे
फ़िर भी इनको हीन समझ लिया
किसी ने अछूत कहा
तो कोई हरिजन कहकर
सम्मान दिलवाता है
मगर जिस पर बीतती है
वहीं समझ पाता है
काश ! यह बटँवारा न होता
तो जनरल आरक्षण का मारा न होता
मेहनत तो सब कर रहें हैं
मगर सीटें ले डूबती है
दो-चार नंबरो से हाथ लगी नौकरी छूटती है
ईश्वर ने दिमाग थोड़ी न हमारी तरह बाँटा था
उसके घर कोई भेद नहीं है
उसकी पुस्तक में कोई अनुच्छेद नहीं है
बाबा साहेब तो कहकर गए थें
दस साल बाद कानून आरक्षण हटा देना
सबको सम्मान बना देना
मगर इन नेतागण ने
लोगों को वोटबैंक बना दिया
जातिगणना से कुर्सी की जमीन
मज़बूत करेंगे
जहाँ फ़ायदा होगा वहीं ढील देंगे
यह तो मानव संरचना है
जिस में फेर-बदल होते रहते हैं
पर विद्वता की ऐसी भी छाप है
कि हमारे शरीर का बोझ उठाने वाले
पैरों का छूना भी पाप है
हमने शरीर को भी बाँटा गया है
कहते है...
धर्म शिक्षा का कोई बड़ा ज्ञाता है
जिसने ज्ञान की यह नदियाँ बहाई
कैसी भारतीय संस्कृति है
जो अलग़ नज़र आई है
इसी विकृत सोच ने ग़ुलाम बना दिया
आख़िर कौन था वो
जिसने समाज को बाँट दिया ???
कौन था वो ??

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