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हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था और 1952 में देश के पहले लोकसभा चुनाव हुए और श्री जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बनेंI उस दौरान देश को कांग्रेस से बहुत उम्मीदे थीं और कई नेताओं की लोकप्रियता अपने चरम पर थी इसीलिए जनता, मीडिया की सक्रियता के बिना भी अपना नेता चुनने के बारे में विचार कर चुकी थीं और उस समय मीडिया के नाम पर समाचार पत्र के अलावा आकाशवाणी का प्रसारण होता था और उसकी भूमिका उतनी ही मुख्य थीं, जितनी होनी चाहिए I

आजादी के बाद, समाचार पत्र; अमर उजाला और डेक्कन हेराल्ड सबसे ज्यादा सक्रीय रहेंI जैसे जैसे देश विकासशीलता के पथ पर अग्रसर होता गया, उसी तरह मीडिया ने भी अपने विकास के आयाम ढूंढने शुरू कर दिए I 15 सितम्बर 1959 को दूरदर्शन का प्रसारण शुरू हुआ I डीडी न्यूज़ सरकार की गतिविधियों से जनता को अवगत करवाकर अपने दायित्त्व का बख़ूबी निर्वाह करता रहा, मगर कहीं न कहीं यह भी एक सत्य है कि सरकारी चैनल होने की वजह से वह उन्हीं खबरों को जनता तक पहुँचाता, जिन ख़बरों को सरकार पहुँचाना चाहती थींI

जब 1962 में भारत और चीन का युद्ध हुआ और उसमे मिली हार ने हमारे देश की जड़े हिलाकर रख दी थीI उस युद्ध की विफलता के कारण क्या थें, जब समाचार पत्रों के द्वारा सही तथ्य जनता के सामने प्रस्तुत किये गए, तब लोगों की विचारधारा में अभूतपूर्व परिवर्तन आया I यह कहने में कोई संदेह नहीं होगा कि कलम की ताकत को दर्शाते हुए समाचार पत्रों ने इलक्ट्रोनिक मीडिया के विकल्प रेडियो और दूरदर्शन से ज़्यादा जन जागरण के कार्य को संपन्न कियाI

वर्ष 1964 में नेहरू जी की मृत्यु के पश्चात, देश की राजनीति में कई उतार चढ़ाव देखने को मिलेI श्री गुज़ारीलाल नंदा ने कुछ अवधि तक प्रधानमंत्री का पद संभाला और फिर इंदिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनी I राजनीति के बदलते परिवेश का उस समय ऐसा असर था कि 1977 में लगाई गई इमरजेंसी ने देश में बवाल मचा दिया, उस इमरजेंसी में प्रेस की आजादी का भी हनन किया गया, साल 1956 में फिरोज गांधी ने प्रेस की आज़ादी के लिए जो बिल लोकसभा में पास करवाया था, उस पर भी रोक लगा दी I कई राजनेताओं की गिरफ्तारी की आलोचना पूरे देश में हुई I हालाँकि मीडिया पर रोक थीं, मगर तब भी सरकार की गतिविधियाँ को समाज सेवी संस्था द्वारा जनता तक पहुँचाने का काम हाथ से लिखे पर्चों ने कियाI पत्रकारिता का उद्देश्य तो जनता को जाग्रत करना था, चाहे वह किसी भी माध्यम से होI

इमरजेंसी के बाद जो चुनाव हुए, उसमें कांग्रेस की हार हुईI दूरदर्शन या आल इंडिया रेडियो की अपनी सीमाएँ थी, मगर चुनाव प्रचार में समाचार पत्रों और टंकण पुस्तिका ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाईI उस चुनाव में जनतादल पार्टी विजयी हुई और 1980 में श्री अटलबिहारी बाजपेयी ने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखीI कुछ ही सालों में यह पार्टी देश की बड़ी पार्टी बनकर उभरीI

जब वर्ष 1991 में ज़ी न्यूज़ का आगाज़ हुआ तब इस पहले प्राइवेट चैनल के शुरू होने से देश की राजनीति और राजनेताओं के भी नए ढंग जनता को देखने को मिले I जनता दूरदर्शन की खबरों को सरकार के सौजन्य से ही मानती थी मगर प्राइवेट चैनल के आने से तत्कालीन सरकार की छवि के कई पहलू जनता के सामने आने लग गएI समय भी पंछी की तरह पंख लगाकर उड़ता रहा और पत्रकारिता को विस्तार देने के लिए कई मीडिया चैनल और समाचार पत्र की शुरुआत होने लगीI लोगों का देश और विदेश की खबरों को पढ़ने का नज़रिया बदलता गया, प्राइवेट चैनल पर कोई सरकारी ठप्पा तो था नहीं, इसीलिए उनका खबरों को देने का अपना ही तरीका था, एक निजी अख़बार और चैनल को अपने लिए आय भी अर्जित करनी पड़ती है इसलिए विज्ञापन के साथ साथ इन्होंने खबरों को आधार बनाकर प्रोग्राम चलाने शुरू कर दिए ताकि ज्यादा से ज्यादा दर्शक देखें और उनके चैनल की टीआरपी में वृद्धि होI

साल 2000 के बाद तो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला I रोज़ नए चैनल और समाचार पत्रों के आगमन से आपस में एक होड़ लग गईI महँगाई, आंतकवाद, महिला उत्पीड़न, बढ़ते अपराध, देश विरोधी घटनायें, आम बजट, नयी सरकारी नीतियाँ और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध इत्यादि पर मीडिया ने सरकार को घेरना शुरू किया तो इसका असर विधान और लोकसभा के चुनावों पर भी पड़ता गयाI राजनेताओं को भी समझ आ गया कि मीडिया अब देश के मजबूत स्तम्भ के रूप में उभर चुका है इसीलिए अब सत्ताधारियों ने भी अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिएI

वर्तमान में ऐसे कई मीडिया चैनल और समाचार पत्र है जो किसी न किसी पार्टी से प्रभावित है या फिर उनके कार्य संचालक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैंI जिस वजह से चुनाव में भी यह वफ़ादारी देखने को मिलती हैI उनसे सम्बन्धित ख़बरें, उनके प्रोग्राम, उस पार्टी के कार्यों और उनकी गतिविधियों को वो दर्शाते है, तभी तो कभी कभी वो चैनल और अखबार किसी विशेष पार्टी के प्रचार का निजी माध्यम भी बन जाते हैंI यह ज़रूरी नहीं कि इससे समाज में कुछ गलत सन्देश जा रहा हो, कई बार इसकी ज़रूरत भी होती है क्योंकि जनता को यह बताना भी ज़रूरी है कि उनके वोट किस तरह इन नेताओ को कभी ऊँचे तो कभी नीचे पायदान पर खिसका सकते हैंI

आज हर किसी को मीडिया की तवज्जो चाहिएI चाहे कोई नेता हो, अभिनेता, खिलाड़ी या कोई सिरफिरा अनाड़ीI मीडिया के प्रकाश में सभी चमकना चाहते हैंI जब पहली बार आम आदमी पार्टी दिल्ली के विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हुई तो उनके पास राजनीति में आने के जो कारण थें, जिस बदलाव की वो बात कर रहें थें, जिस क्रांति की आग से वो आम लोगों का जीवन बदलना चाहते थें, उन सभी विचारधारा को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ साथ इंटनेट पर भी उजागर किया गयाI जनता को लगने लगा कि यह पार्टी आम आदमी के जीवन को नई दिशा दे सकती है और उसका फायदा उन्हें चुनाव में भी हुआI राजनीति के इतिहास का जब भी जिक्र होगा तो इस अप्रत्याशित कामयाबी के बारे में बात की जाएगीI

यह विधानसभा के चुनाव तो हर राज्य के लिए है और हर राज्य में चुनाव लड़ने के लिए बहुत सी पार्टियाँ मौजद हैI हर पार्टी बेहतर प्रदर्शन के प्रचार के लिए मीडिया का सहारा लेती ही हैI स्टूडियो में जाकर चैनल पर पार्टी नेताओं का साक्षात्कार देना, गत वर्षो के उनके काम गिनवानाI उनके वादों और पार्टी घोषणा पत्र का जनता के बीच उल्लेख करनाI मीडिया की जिम्मेदारी भी है और उनका सामाजिक दायित्व भीI इस मीडिया की बदौलत आज हर पार्टी अपने घोषणा पत्र काफी संभलकर बनाती है क्योंकि उन्हें पता है, यही मीडिया जो प्रचार का माध्यम बनी, वह उनकी दोतरफा नीतियों को उजागर करने का भी माध्यम बन जाएगीI

हर पाँच साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करते हैंI जिस राज्य में एक ही सीट है, वहाँ भी सरकार चुनाव करवाती हैI आजकल ऐसा ज़रूरी नहीं कि जनता ने जिसे विधान सभा में जीत दिलवा दी, उसे वह लोकसभा में भी जीत का मुकुट पहनाएगीI जनता के मूड़ को काफी हद तक बदलने का श्रेय मीडिया को भी जाता हैI

अभी पिछले दिनों 2024 लोकसभा चुनाव हुएI हर पार्टी ने जीत के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया लेकिन हर किसी को आधी अधूरी जीत मिलीI गठबंधन की सरकार का एक बार फिर लोकसभा में आगमन हुआ तो वहीं बैसाखियों पर खड़ी पार्टी को एक मजबूत विपक्ष बनने का मौका मिला I हर पार्टी अपनी हार का मूल्यांकन करती हैI मगर यह हार जीत की समीक्षा गढ़ने में मीडिया की भी अहम भूमिका होती हैI जो चैनल या अख़बार किसी पार्टी विशेष से जुड़े हुए हैंI उन्होंने तो अपनी पार्टी का प्रचार करने के लिए कोई प्रसारण नहीं छोड़ा, मगर फिर भी उन्हें समानता का भाव दिखाते हुए हर पार्टी के बारे में लिखना और बोलना पड़ा पर जो पूरी तरह से स्वतंत्र थें, उन्होंने पक्ष और विपक्ष दोनों के विचार जनता के सामने रखने से गुरेज़ नहीं किया और इसका प्रभाव चुनावी नतीजों पर भी पड़ाI

इस चुनाव में जहाँ भक्ति की बातें प्रसारित हुई तो वही सविंधान और आरक्षण जैस मुद्दों को भी जमकर दिखाया गयाI मीडिया ने किसी को जीत से पहले ही जीता दिया तो किसी को हीरो से जीरो बना दियाI एग्जिट पोल के नाम पर जो नतीजे सामने आये, उसे किसी पार्टी का आत्मविश्वाबस बड़ा भी और डिगा भीI धर्म, जातपात, अमीरी और गरीबी यह मुद्दे होते नहीं है, बल्कि राजनीति में मुद्दे बना दिए जाते हैं और उन मुद्दों से जनता में जागरूकता और भ्रम पैदा करने का कार्य मीडिया भी करती है I अगर विपक्ष कोई गलत धारणा को अपनी पार्टी का मुख्य मुद्दा बनाकर पेश कर रहा है तो मीडिया उसे अपनी टीआरपी के चक्कर में दिखा भी रही है, चाहे दूसरी पार्टी के लोगों के मन में भविष्य में, सत्ता में आने के बाद ऐसा कुछ करने का ईरादा भी नहीं होता, मगर फिर भी इस तरह का प्रसारण हार का मुख्य कारण बनता हैI

किसी नेता के असभ्य भाषण का चित्रण करना मीडिया का सामाजिक दायित्व है पर इससे पूरी पार्टी गलत नहीं हो जातीI उदहारण के तौर पर कई बार महिलाओं से होने वाले अपराध के मामल में कई दिग्गज नेताओ ने महिलाओं को ही दोषी ठहराया है, जब इस बात का विरोध हुआ तो नेता ने माफ़ी माँग ली और उन्हें पार्टी से निष्कासित भी कर दिया गया पर गढ़े मुर्दे उखाड़कर मीडिया चुनावी मेले में रंग भर देती हैI अगर देखा जाये तो पार्टी के हर सदस्य की जबान और सोच की जिम्मेदारी पूरी पार्टी की ही होती हैI आप मीडिया को मौका देंगे तो वह इस मौके का लाभ भी उठायेंगी I जब साफ सुथरी राजनीति नहीं रही तो मीडिया में भी विकार देखने को मिल सकता है I

अब बीते दस सालों में सोशल मीडिया भी चुनाव प्रचार और उसके परिणाम को प्रभावित कर रहा है? इंस्टाग्राम, फेसबुक, स्नैपचैट और एक्स पर भी चुनावों में पार्टी का प्रचार और प्रसार करने के लिए हर पार्टी का सोशल मीडिया मैनेजर है, जो इंस्ट्राग्राम की रील, फेसबुक के पोस्ट, वीडियो और एक्स पर दी गई टिप्पड़ियों को आधार बनाकर जागरूक भी करते है और भ्रम भी फैलाते हैI किसी पार्टी के नेता की रील पर ज़्यादा व्यूज या लाइक जनता की विचारधारा को बदलने में भी सहायक होते हैंI फेसबुक पोस्ट को लाखों लोगों द्वारा शेयर करने की एक मुहिम चलाई जाती हैI यू टूयूब पर पार्टी के नाम पर कितने ही चैनल बनते हैं और कभी यह उनका काम बिगाड़ते है तो कभी बनाते हैI देखा जाये तो सोशल मीडिया पर सभी रिपोर्टर है, सभी लेखक हैI भावना की अभिव्यक्ति कोई भी कर सकता है, इसके लिए डिग्री की ज़रूरत नहीं पड़तीI इसे एक असीम धरातल माना जाता हैI इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए यह संचा का एक सशक्त आयाम बनकर उभरा हैI इसके माध्यम से नकरात्मकता और सकरात्मकता दोनों फैली हैI नकारात्मकता के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इस असीम धरातल पर भी लगाम लगायी गई हैI कुछ नियम और कानून इसके लिए भी बनाने पड़े हैंI

निष्कर्ष तौर पर यह कहा जा सकता है, आजादी के बाद से मीडिया के नए नए रूपों से जनता परिचित हुईI आज जहाँ स्वंत्रत पत्रकारिता है वही पैसे से प्रभावित पत्रकारिता भी चलन में हैI जहाँ मीडिया अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाते हुए समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन का कारण बनी है तो वहीं देश के राजनीति में भी कई रोमांचक मोड़ लाई हैI हर पार्टी और उस पार्टी का नेता अपने कार्यों और छवि की वजह से सत्ता में आता है, मगर इसमें कोई संदेह नहीं है कि मीडिया में हो रहे चुनावी प्रचार से चुनावी नतीजों की गणना पर फर्क भी पड़ता है I कोई अख़बार, चैनल या इंटरनेट किसी की विचारधारा को कैसे प्रभावित करते है यह तो चुनाव के परिणाम ही बता पाते है I हार की समीक्षा हर पार्टी करती है, मगर वे यह भूल जाती है कि जो प्रचार हुआ, उस किस तरह चित्रित किया गया I मीडिया खबरों का एक मायाजाल है, हर चैनल या अख़बार एक होड़ में हैI मगर कौन सी खबर किस पार्टी या राजनेता को फायदा देगी, इसका मूल्याङ्कन करना भी राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत ज़रूरी हैI जबसे से दुनिया बनी है, तब से संचार शुरू हो चुका है और इस आधुनिक युग में इसकी ज़रूरत और बढ़ती जा रही हैI चुनावी मौसम तो फिर आएगा, इसलिए माननीय नेताओं की ज़िम्मेदारी है कि वह मीडिया के सकरात्मक पहलुओं को ही खुद पर हावी होने दें I कभी भी ऐसा नहीं होना चाहिए कि उनकी भूमिका पर मीडिया की भूमिका हावी हो जाये, या मीडिया की भूमिका राजनीति से प्रभावित हो, आम जनता की भलाई के लिए एक समांजस्य बना रहना बहुत ज़रूरी हैI 

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