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अयोध्या में राम मदिर बनाने का विवाद लगभग सत्तर साल पुराना है। 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को जन्मभूमि का अधिकारी मानते हुए ट्रस्ट को 2.2 एकड़ ज़मीन देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अगर अतीत के गर्भ में झाँका जाए तो कितने ही कारसेवकों ने राम मंदिर के लिए संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया। सरकारी आँकड़ों के अनुसार लगभग 3000 से ज़्यादा लोग इस दौरान मारे गए थें। फिर आया वो दिन, जब 22 जनवरी 2023 को रामलला अयोध्या में सुशोभित हुए। देशभर में जय श्रीराम के नारे गूँजने लगें। उस दिन लगा कि कलयुग में त्रेतायुग की झलक देखने को मिल रहीं है पर सवाल यह है कि “राम है क्या?” राम क्या सिर्फ अयोध्या के राजाराम है या रावण का वध करने वाले प्रभु श्रीराम। हम ईट-पत्थरों का भवन बनाने के लिए तो संघर्ष कर रहें हैं मगर राम को जानने के लिए हम प्रयत्नशील नहीं है । बाल्मीकि जी ने जब डकैती छोड़ी थीं, तब उनके पास सिर्फ एक नाम था 'राम' । उसी राम नाम के सहारे, उन्होंने रामायण की रचना कर दीं। राम का नाम सीमित नहीं है बल्कि बहुत व्यापक है। अब भक्तिकाल की ओर प्रस्थान करते हैं, जहाँ कबीर जी गंगातट के किनारे रामानंद जी से नामदान लेने की अपेक्षा रखते हुए वहीं पर लेट जाते है और रामानन्द जी का जब उनसे पैर टकराता है तो उनके मुँह से निकलता है, “ राम राम राम !!!” और इसी राम नाम का जाप करते हुए वे संतशिरोमणि कबीर बन जाते हैं।

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उनके लिए राम था, परमात्मा का वो नाम जिससे इस संसार रूपी भवसागर से पार पाया जा सकता है। राम कौन है? किसी राजा के घर में जन्म लेने वाले या गुरु नानक देव जी की वाणी के अनुसार"अजूनी साहिब" अर्थात जो जन्म में नहीं आता। गुरु तेग बहादुर जी कहते है, राम वो है जिससे सम्पूर्ण जगत माँगता फिर रहा है। तभी तो गुरबाणी में आता है, "जगत भिखारी फिरत है, सबको दाता राम!" अब राम किधर रहता है, यह जानना भी तो ज़रूरी है तो फिर भक्त नामदेव के पास चलते है जिन्हें नीच जाति का कहकर मंदिर से निकाल दिया गया था पर प्रभु की महिमा देखो, जहाँ वो बैठे थें, उसी तरफ मंदिर के किवाड़ कर दिए थें ताकि उनका भक्त उनके दर्शन कर लें।

जब राम की बात आती है तो आस्था एक जगह सीमित नहीं होनी चाहिए। गरीब आदमी रोटी के लिए रात-दिन एक करता है। वह कैसे यात्रा पर पैसे लगाएगा। आज भी देश में ऐसे गॉंव है, जहाँ जातिवाद अपने चरम पर है। उन्हें मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है तो वो लोग खिड़की से या अपनी जगह पर अलग मूर्ति बनाकर उसकी पूजा कर लेते हैं। कुछ लोग ऐसी बीमारी से ग्रस्त है, जिसमे शरीर काम ही नहीं कर रहा तो क्या उन लोगों को राम के दर्शन नहीं होंगे। संत कबीर, संत रविदास, भक्त दादू दयाल, और नामदेव जी सभी ने राम को पाया हुआ था उन्हें भी नीच जाति में जन्म लेने के कारण किसी विशेष धार्मिक स्थल में प्रवेश की मनाही थीं। हाँ, वो उस राम के उपासक थें, जिसका कोई रूप नहीं है पर वो सृष्टि का रचियता, वही परमपिता परमात्मा है, जो हमारे मन में निवास करता है। संत कबीर कहते है,

"मोको कहाँ ढूँढे बंदे मैं तो तेरे पास में
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं पल-भर की तलास में
कहै 'कबीर' सुनो भाई साधो सब साँसन की साँस में"

किसी संस्था या परिषद् का आभार व्यक्त करना कि उन्होंने राम को ला दिया तो यह अतिश्योक्ति होगी क्योंकि राम तो तबसे है, जबसे यह धरती है। जब सनातन था, तब प्रह्लाद और ध्रुव थें। उसे हिरण्यकश्यप से राम के नाम ने बचाया। राम नाम का जाप करके ध्रुव अमर हो गया। हिन्दू धर्म सनातन का रूप है, जैसे-जैसे अवतार इस धरती पर आते गए, यह विकसित होता गया क्योंकि सनातन सच से जुड़ा हुआ है और सच में तो राम होता ही है। जो नास्तिक है, मगर सच्चे है। उन्हें पता भी नहीं चलता और वह अपने आप राम के उपासक हो जाते हैं। धर्म सिर्फ रास्ता है, जिस पर चलकर आप राम से जुड़ते है, मगर उस राम को पाने के लिए उसकी भक्ति करनी पड़ेगी और भक्ति के लिए एक राम नाम चाहिए । राम नाम में समस्त सृष्टि का सार है, सभी देवी-देवता इसमें सम्मलित है।

तुलसीदासजी राम के नाम से तर गए और कबीर जी भी। तुलसी के राम एक युग में आये थे और कबीर के राम हर युग में है। भवनों से हम लोगों के धर्म तो मजबूत हो जाते हैं, मगर मन की मजबूती के लिए राम का नाम चाहिए और यह भवन तब ज़रूरी हो जाते हैं, जब हमें कोई जगह चाहिए होती है, जो हमें यह एहसास कराती है कि यहाँ बैठकर हमें प्रभु मिल सकते हैं। राम तो हमारी भावना में है और यह भावना पत्थरों से भी राम को प्रकट कर देती है. जैसे धन्ना भक्त के साथ हुआ था। वह पत्थर को कपड़े से लपेटकर तीन दिन बैठे रहें यह कहकर कि जब तक प्रभु भोग नहीं लगायेंगे, तब तक मैं नहीं खाऊँगा। फिर क्या था, भगवान को आना पड़ गया। धन्य है वो भक्ति जो स्वछंद है, निश्छल है और जिस पर सबका अधिकार है।

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संसार के हर जीव का उद्देश्य राम को पाना होना चाहिए। अगर वो शबरी के राम है तो शबरी के जितना प्रेम भी करो ताकि नारायण खुद राम का अवतार लेकर आए। अगर कही भवन में जाना आडम्बर मानते हो तो कबीर की तरह प्रेम करो। राम सिर्फ उसको मिलता है जो उससे प्रेम करता है। किसी जीवात्मा को हानि पहुँचाकर हम राम के उपासक तो बन सकते हैं पर राम को पा नहीं सकते । यह नाम तो इंसानियत का पाठ पढ़ाता है। दुष्टों को तारता है। गरीब मजदूर की मेहनत को सँवारता है । इसलिए राम वो है जो घट-घट में रहते हुए मानव को कर्मबंधन से मुक्त करकर, उन्हें भवसागर से पार लगाते हैं इसलिए आस्था अंधी होती नहीं है और उसे अंधी बनाओ भी मत। भक्ति चाहे सगुण हो या निर्गुण दोनों धाराओं में सिर्फ राम बँसते है और बँसते रहेंगे।

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