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सोने-चांदी से भी बेशकीमती  हैं, मेरी किताबें
कुछ पुरानी अजीज़ हैं
कुछ नयी दिल-ए-करीब हैं, मेरी किताबें
तन्हाई में साथ देती
शब्दों से मेरे मन को बांध लेती
ज्ञान का सागर बनकर, मस्तिषक  की प्यास बुझाती हैं
यह मुझे एहसास कराती हैं, मेरे छोटे होने का
और जो बड़े हैं, उनके और भी बड़े होने का
ऐसे कई दिग्गज हैं, जो अपने लेखन से चमत्कार करते हैं
उनकी कही कितनी बातें रोचक हैं
मेरी किताबें,  मेरी प्रिय आलोचक हैं
हँसी-ख़ुशी अपने अंदर समेट लेती हैं
अपना गम यूं  उड़ेल देती हैं
कभी-कभी मुझसे  भी ज्यादा ग़मगीन हैं, मेरी किताबें
 कोई तो हैं, जो मेरा  इंतज़ार करता हैं
जब बड़े चाव  से, मैं इन्हे उठा  लेती हूँ
अपनी उंगलियो से इनके कोमल तन को छूती हूँ
फिर भावुक होकर सीने से लगा लेती हूँ
ना यह मुझे रोकती हैं, न  टोकती हैं
क्योंकि बहुत ज़हीन और बेहद हसीन हैं मेरी किताबें
मैंने बड़े सलीके से इन्हे अलमारी में सजा  रखा हैं
मगर सच तो यह हैं, इन्हे मैंने नहीं
इन्होंने मुझे संभाल  रखा हैं…..