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सात -आठ साल की बिटिया बोली अपनी माँ से-
मुझे चाँद पर लेकर चलो
प्रशन थोड़ा अजीब था
बेटी का चेहरा गंभीर था
बोली माँ-क्या करेंगी चाँद पर ?

चाँद पर अजीब तरह से घूरने वाले चाचा नहीं होंगे
आशीर्वाद के बहाने हाथ लगाने वाले बाबा नहीं होंगे
फिर तुम भी तो बाहर खेलने नहीं भेजती हो
रोज कुछ पढ़ती हो, रोज थोड़ा डरती हो
क्या लिखा होता हैं अखबार मैं
उदास हूँ गयी हूँ मैं दो कमरो के संसार में

सुनकर उत्तर उस बेबस माँ की आँखों में आ गया पानी
कि अब तो चाँद पर भी पहुंच गया हैं आदमी
कैसे कहे आज के बचपन पर क्यों इतने पहरे हैं?
आसमान तो बहुत बड़ा हैं पर गिद्ध के घात उतने ही गहरे हैं
ज़िद्द अब भी वही थी
माँ खाने-पीने का सामान लेकर चलो
माँ मुझे चाँद पर लेकर चलो!

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