महाभारत में कहा गया है कि जिस कुल में नारियों को उपेक्षा भाव से देखा जाता है, उस कुल का सर्वनाश हो जाता है। मगर एक कटु सत्य यह भी है कि आज भी कई परिवारों में नारी की उपेक्षा हो रही है और शास्त्रों में तो लिखा है, '”जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं'”, मगर जब देवता ही अपनी मर्यादा भूलकर एक नारी के आत्मसमान को चोटिल करें, तो फ़िर लिखने और कहने के लिए क्या शेष रह जाता है। यह पीड़ित नारी और कोई नहीं, रामायण की अहिल्या है। यह रामायण की वो सशक्त पात्र है, जो समाज में नारी की दयनीय स्थिति पर सवाल खड़े करती हैं। एक ऐसी स्त्री, जो तन, मन से अपने पति को समर्पित थीं, मगर फ़िर भी उसे पतिव्रता होने की पीड़ा को भुगतना पड़ा, लेकिन इस सतयुग की अहिल्या की कहानी, वर्तमान समाज में नारी के प्रति होने वाले भेदभाव को परिभाषित करने में पूर्ण रूप से सक्षम है।

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, अहिल्या को ब्रह्मा द्वारा या तो पानी से या यज्ञ की जली हुई राख से बनाया गया था, इसलिए अहिल्या को ब्रह्माजी की मानस पुत्री भी कहा जाता है। अहिल्या सभी गुणों से परिपूर्ण, एक सुंदर और रूपवती स्त्री थी। स्वर्ग के राजा इंद्रदेव भी अहिल्या की खूबसूरती से प्रभावित होकर उसके साथ विवाह करना चाहते थें। पर ब्रह्मा जी ने अहिल्या के विवाह के लिए एक शर्त रखी थी कि जो भी तीनों लोकों की परिक्रमा सबसे पहले पूर्ण करेगा, अहिल्या का विवाह उसी के साथ किया जाएगा। गौतम ऋषि और इंद्रदेव के साथ अन्य देवताओं ने भी अहिल्या से विवाह करने के लिए तीनों लोकों की परिक्रमा शुरू कर दीं, पर गौतम ऋषि ने एक गर्भवती कामधेनु गाय की परिक्रमा की और ब्रह्मा जी का मानना था कि कामधेनु गाय तीनों लोकों से भी श्रेष्ठ है इसीलिए उन्होंने अपनी मानस पुत्री अहिल्या का विवाह गौतम ऋषि से करवा दिया।

अहिल्या का विवाह गौतम ऋषि से होने पर इंद्रदेव क्रोधित हो गए और एक दिन इंद्र ने चंद्रमा से मदद माँगी, जिसने आधी रात को मुर्गे के रूप में बाँग दी। यह सोचकर कि सुबह के स्नान का समय हो गया है, गौतम ऋषि अपनी कुटिया से बाहर चले गए। उस समय देवराज इंद्र गौतम ऋषि के भेष में अहिल्या के समीप गए और अपने पति के रूप में अहिल्या ने इंद्र से संपर्क किया। जब गौतम ऋषि ने इन्द्र को अपने ही वेश में अपने आश्रम से निकलते हुए देखा, तब वह सारी बात समझ गए। क्रोधावेग में उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दिया फिर जब ऋषि का गुस्‍सा शांत हुआ और उन्‍हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्‍होंने अहिल्‍या को आर्शीवाद दिया कि भगवान श्रीराम के चरणों को छू‍कर, वो इस श्राप से मुक्‍त हो जाएँगी। उन्होंने इंद्र के शरीर पर भी हजार योनियाँ उत्पन्न होने का श्राप दिया पर जब इंद्र ने भी गौतम ऋषि से श्राप मुक्ति की प्रार्थना की तो ऋषि ने इन्द्र पर दया करते हुए हजार योनियों को हजार आँखो में बदल दिया। जब त्रेतायुग में राम, गुरु विश्वामित्र के साथ विचरण करते हुए गौतम ऋषि के आश्रम पहुँचे तो उन्होंने वहाँ पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार किया।

शब्द के क्रमिक इतिहास के अनुसार, अहिल्या का अर्थ होता है, ‘बेदाग’ या जिसके पास महान सुंदरता और गुण हों। हिंदू लोकप्रिय कथाओं के अनुसार अहिल्या का चरित्र बहुत ही असामान्य और जटिल लगता है, वह एक ऐसी पतिव्रता सती के रूप में पहचानी जाती है, जो एक अनजाने में हुई ग़लती की वज़ह से पवित्रता के चरम पर होते हुए पाप की गहराई में गिर गई। यह कहना मुश्किल है कि क्या वह अपने स्वयं की कमजोरियों का शिकार है ? या एक वासना की चाह रखने वाले देवता या एक आत्मधर्मी पति, जो अपने अहंकार के कारण क्रोध में इतना अंधा हो गया था कि अपनी निर्दोष पत्नी पर अन्याय कर बैठा । गलती चाहे किसी की भी हो, उसकी कहानी हमें इस तथ्य की भी याद दिलाती है कि वैदिक समाज में महिलाओं को कई सामाजिक भेदभाव और पुरुष प्रधान सत्ता का सामना करना पड़ा था। स्थानीय साहित्य, नृत्य नाटकों, और अन्य प्रस्तुतियों के अलावा पारंपरिक संस्करणों में, अहिल्या की कहानी भगवान राम के दिव्य चरित्र और उनके द्वारा किए गए दयालु कार्यों के उदहारण के रूप में भी सुनाई जाती है। कहानी के कई आधुनिक संस्करणों में, पारंपरिक हिंदू समाज में महिलाओं के साथ असमान और अन्यायपूर्ण व्यवहार को दर्शाने के लिए भी इसे लैंगिक दृष्टिकोण से सुनाया गया है।

कुछ विद्वान अहिल्या की कहानी का प्रतीकवाद भी करते हैं। जब शरीर(अहिल्या) विवेकशील बुद्धि (गौतम) की क्षणिक अनुपस्थिति में मन और इंद्रियों (इंद्र) के यौन लालसा के प्रलोभनों के आगे झुककर अपनी पवित्रता और शुद्धता खो देता है और फ़िर अहिल्या की तरह प्रायश्चित और तपस्या के माध्यम से पत्थर की तरह शरीर को स्थिर और इच्छाओं से मुक्त करने के प्रयास में सफल होता है, तो वह सभी बंधन और पापों से मुक्त हो जाता है। यह मुक्ति देने वाले भगवान ‘राम’ है। इस प्रकार, अहिल्या की कहानी केवल पाप और प्रायश्चित की एक प्राचीन कहानी नहीं है, इसमें सभी के लिए एक गहरा संदेश हैं कि कैसे मनुष्य ईश्वर के चिंतन रूपी स्पर्श के माध्यम से जीवन की यात्रा में अज्ञानता और भोग की स्थिति से उभरकर, शांति और मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकता है।

अगर देखा जाए तो परंपरागत रूप से, ‘अहिल्या, द्रौपदी, सीता, तारा और मंदोदरी’ को पाँच पवित्रता, शुद्धता और स्त्रीत्व की महिला आदर्शों के रूप में याद किया जाता है। साथ ही इन महिलाओं को उनके जीवन में उनके पति और अन्य पुरुषों द्वारा किए गए अन्याय और अपमान के कारण हुई पीड़ा के लिए भी पहचाना जाता है, हालाँकि इनके पास उत्तम चरित्र, वफादारी और ईमानदारी थी इसलिए, यह भी माना जाता है कि इनकी आराधना करने से लोगों को उनके पापों से मुक्ति मिलती है। गौतम ऋषि की पत्‍नी अहिल्‍या, जिनका जीवन चरित्र हमें यह सिखाता है कि स्त्री भी एक मनुष्य है, उसकी भी इच्छाएँ है और उसका सम्पर्ण उसकी महानता है, कोई कमज़ोरी या विवशता नहीं है, उसके लिए गए निर्णय में अगर समाज समर्थन नहीं दे सकता तो उसका बहिष्कार करने का भी उसे कोई अधिकार नहीं है इसलिए जिस दिन समाज में नारी को संघर्ष किए बिना उसके अधिकार और न्याय मिलने लगेगा, तब सही मायने में नारी सशक्तिकरण की बात सटीक लगेंगी।

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