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कलम एक ऐसी तलवार है, जिसके माध्यम से लेखक किसी के शोर्य का बख़ान भी कर सकता है और चाहे तो किसी के अहंकार को कुचल सकता है। पत्रकारिता इसी तलवार को चलाने का धरातल देती है । जब देश गुलाम था तो अपने लेखन के माध्यम से ही देशभक्ति की भावना जाग्रत की गई। गांधीजी के समाचार-पत्र 'यंग जर्नल’ और ‘हरिजन' ने मुख्यधारा से टूटे हुए लोगों को आज़ादी की लड़ाई से जोड़ा और सम्पूर्ण देश को यह बताया कि हम ग़ुलाम है और आज़ाद रहना हमारा अधिकार है। प्रेमचंद ने भी अपने समाचार पत्र 'हंस' से लोगों को इस तरह जागरूक किया कि वे देश की हर समस्या के लिए संवेदनशील बन गए। उन्होंने आम लोगों के मर्म पर चोट की। और उन्हें देश के वर्तमान गुलाम परिवेश से परिचित करवाया। तो क्या वीरता से परिपूर्ण पत्रकारिता बंद होनी चाहिए? अगर ऐसा हुआ तो हम केवल कल्पना में ही विचरित करते रहेंगे जो आज के बदलते परिवेश को किस तरह चित्रित करेंगे ? किसी सामजिक समस्या की धुरी को पकड़कर समाज में बदलाव लाने की बात करनी चाहिए या किसी राजनैतिक मुद्दों को पकड़कर सरकार की टांग खींचनी चाहिए? इन सभी सवालों का ज़वाब खोजते-खोजते कभी-कभी पत्रकारिता भी उलझकर हताश हो जाती और टी.आर.पी. के मायाजाल में उलझकर पत्रकारिता अपनी सच्चाई की गरिमा को खो देती है ।

आज देश के हालात बदलते जा रहे है । लोग बिना किसी डर के हर विषय पर बोल रहे हैं । आज धर्म, जात-पात, कानून, अपराध, फिल्म, अनैतिक सम्बन्ध और सेक्स सभी पर खुलकर चर्चा हो रही है। यहाँ तो ऐसे भी लोग है, जिन्होंने आज़ादी की नई धुरी चला दी हैं। इसलिए आज की पत्रकारिता का कर्तव्य और भी बढ़ता जा रहा है। देश के लोगों के भटकते विचारों को सही दिशा देने की भूमिका का निर्वाह करना ही पत्रकार की कलम की सार्थकता को सिद्ध करता है ।

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नागरिकता संशोधन बिल को बिना पढ़े बिना समझे ही पूरा देश जला दिया गया। यह बिल किसके हित में है ? क्या इसकी प्रक्रिया है ? बस हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा बनाकर पूरे देश में अराजकता फैलाना और हिंसा को एक हद तक पहुँचना कहा तक तर्कसंगत है ? अब लोगों के इस अज्ञानता के अँधेरे को चिराग़ दिखाकर रोशनी देने का काम पत्रकारिता का है । इस आपसी भाईचारे और प्रेम को सिर्फ दिवाली या ईद मनाकर ही नहीं दर्शाया जा सकता। कैसे यह बिल यह सबकी उन्नति करेगा? कैसे देश को और मजबूत बनाएगा? यह सकरात्मक सोच को लोगों के दिलों में जाग्रत कर एकता को तटस्थ बनाने का कार्य भी पत्रकारिता को ही करना है । पिछले दिनों एक न्यूज़ चैनल पर ख़बर आई थी कि पंजाब के मूंगा जिले के गॉंव में मुसलमान की मस्जिद को गिराना पड़ गया क्योंकि वहाँ एक हाईवे बनाना था । मुसलमानों को भी इस बात को लेकर आपत्ति नहीं थी, उन्होंने सिर्फ मस्जिद की बात की तो सिख समुदाय के लोगों ने अपनी ज़मीन मस्जिद बनाने के लिए दे दी । इस भारतीय संस्कृति की मिसाल को पूरी दुनिया के सामने लाना पत्रकारिता की ताकत को और मज़बूत करता है । आए दिन बेटियों के चीरहरण कर उनकी निर्मम हत्या कर देश को शर्मसार कर दिया जाता है। कई सामाजिक संस्थाएँ दुष्कर्म के लिए फाँसी की माँग कर रही है । और आज निर्भया को सात साल बाद न्याय मिला है। और जाने कितनी ही बेटियाँ इस अपराध के लिए सख्त से सख्त सज़ा की उम्मीद कानून से करती है। इस पूरे संघर्ष में पत्रकारिता चाहे वो प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने एक मुख्य और सशक्त भूमिका निभाई है । बेटियों की आवाज बनकर पत्रकारिता ने व्यवस्था और कानून को अचेतन अवस्था से बाहर निकाल चेतना की और अग्रसर किया है । तभी सरकार और कानून सख़्ती बरतकर देश के हर नागरिक को सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं ।

बिखरते परिवार और सम्बन्ध की वजह से पूरे घर के घर तबाह हो रहे हैं । आज फिल्म और इंटरनेट बच्चे को बच्चा नहीं रहने देते। उसका बचपन मोबाइल की दुनिया ने अपने अधीन कर लिया है। आज देश में मोबाइल मुक्ति केंद्र भी खुल गए हैं। और युवा भी बेरोज़गारी की मार को झेलता हुआ लूट और हत्या जैसे अपराध को भी अंजाम दे देता है । उसका अवसाद और निराशा इसी इंटरनेट और सिनेमा की दुनिया से नकारात्मक प्रेरणा लेकर लोगों को नुकसान तक पहुँचाता है । किसी की अश्लील वीडियो बनाना, साइबर क्राइम करना कोई बड़ी बात नहीं रह गई है। लाखों की चोरी हो रही है। इन्ही चार बटन के ज़रिये पूरा का पूरा अकाउंट ख़ाली कर दिया जाता है। यानि तकनीकी ज्ञान विनाश के द्वार ही खोल रहा है । इस परिस्थिति में अगर पत्रकारिता बचपन की मीठी मिश्री बच्चे को अपनी कलम से चटा दें । और युवा पीढ़ी की आर्थिक मनोदशा को समझकर कुछ ऐसे विकल्प बताये जाये जिसे उनका चित्त शांत हो जाये तो यह कहना गलत न होगा कि पत्रकारिता ने देश के भविष्य को संभाल लिया है ।

जहाँ सामाजिकता निभाना भी ज़रूरी है । वहीं देश में आई आर्थिक मंदी की हवा का विश्लेषण कर निवेश के लिए मौसम साफ़ करना और बेरोज़गारी की धुंध को हटाना भी पत्रकारिता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। प्रधानमंत्रीजी ने हमारे देश के मान-सम्मान को ऊँचा पहुँचाने में कोई कमी नहीं रखी । आज देश के सबसे अमीर उद्योगपति रतन टाटा का कहना है कि "आज विश्व गुरु अमेरिका हमारे सामने दोनों हाथ फैलाये नए कामों को अंजाम देने के लिए तैयार है।“ आज ब्रिटेन, चीन, पाकिस्तान, रूस और फ्रांस जैसे मुल्क आज भारत के आगे नतमस्तक हैं। जब ऐसे समर्थ और सुलझे हुए लोग देश हित की बात करते है तो उन लोगों के वक्तव्य को लोगों तक पहुँचाना ही पत्रकार का दायित्व होता है।

आज मौसम, खान-पान. पहनावा, फैशन, कास्मेटिक जो पाठक की बोरियत को दूर करते है और ये विषय पढ़ने में रूचि भी जाग्रत करते हैं । इसलिए बदलते विषय पर लिखकर पाठक के मन को आनंदित कर सके तो वे पाठक की पसंद बन जाते हैं और पत्रकारिता का कार्य ही है कि पाठक के पसंदीदा विषयों पर भी अपनी कलम चलाए । यौन सम्बन्धो पर भी लिखने में हिचक नहीं होनी चाहिए । इस विषय से अनभिज्ञ होना किसी जानलेवा बीमारी जैसे एड्स को निमंत्रण देना ही है। यह भी सच है कि आज बचपन से लेकर बुढ़ापा नई-नई बीमारियों से ग्रस्त है । कोरोना वायरस जैसी महामारी की रोकथाम और उसके निवारण हेतु पत्रकारिता का हर स्तम्भ इस बारे में जानकारी देने के दायित्व को पूरी ईमानदारी से निभा रहा है, ताकि बचाव कर रोग से लोग बच सके । जब सब घर में रह रहे है तो पत्रकारिता से जुड़ा हर व्यक्ति घर से बाहर निकल अपनी ज़िन्दगी की परवाह न करते हुए देश को सुरक्षित बनाने में लगा है।

हम चाहे कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाये। आज फिर हम आयुर्वेदिक और पहाड़ो की औषधि की तरफ लौट रहे हैं । 'योग भगाये रोग' या पतंजलि जैसे देसी उत्पाद का दैनिक जीवन में क्या प्रयोग है । दादी माँ के नुस्खे और नानीमाँ के ख़ज़ाने से विभिन्न खाने की विधियाँ को उजागर करना पत्रकारिता का संस्कार होना चाहिए ।

आज हर तरह की फिल्में बन रही है चाहे सामाजिक हो या राजनैतिक सभी पक्ष-विपक्ष को उजागर किया जा रहा है। जैसे टॉयलेट एक प्रेम कथा, आर्टिकल - १५ इतिहस पर आई पद्मावती, बाजीराव मस्तानी आदि अतीत में झाँकती है । और केसरी जैसी फिल्मे वीर रस का जीवंत उदहारण है। ऐसी फिल्मों के बारे में बताकर पत्रकारिता मनोरंजन और सामाजिक मूल्यों को उजागर करती है । आज किसी अछूते विषयों के अंधकार को मिटाकर प्रकाश की और ले जाने का कार्य ही प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों का है ।

अंत में यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि हम ऐसे समाज का हिस्सा है, जहाँ पर आज भी लोग स्वतंत्र भारत से आज़ादी की अपेक्षा रखते हैं । उनकी सोच और उनके विद्रोही मन को एक उचित आंदोलन की तरफ़ मोड़ना ही पत्रकारिता का कर्तव्य है । आज नयी कहानी के पत्रकार अपनी कहानी को कितना भी फैंटसी से प्रभावित होकर दिखाएं या लिखें । परन्तु जब तक पत्रकारिता जनता के हृदय को नहीं छूती तो समझ लेना चाहिए कि कुछ अधूरा रह गया है । अभी भी पत्रकारिता की कई जिम्मेदारियाँ है, जो पूरी करनी है। केवल धनी वर्ग की समस्या या मसाला खबरों को लिखना और दिखाना ही मीडिया का कार्य नहीं है । पत्रकारिता अपने उद्देश्य की पूर्ति पूरी सत्य और निष्ठा से करें, इसी में समाज का कल्याण होगा और आने वाली पीढ़ी भी जागरूक होकर कुछ अलग और नया करने की प्रेरणा ले सकेंगी ।

 

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