आज से ठीक 350-400 साल पहले जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने परिवार के साथ आनंदपुर छोड़ा था, तब उस समय किसी भी सिख ने नहीं सोचा होगा कि उनके चारों बेटे छह दिन में शहीद हो जायेगेІ अपने परिवार को अपनी आँखों के सामने शहीद होते देखकर भी उनके मुँह से यहीं निकला था कि "तेरा किया मीठा लागे"
वर्तमान की मोदी सरकार ने 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस घोषित करके उनके बलिदान को अमर कर दिया हैІ अगर इतिहास को देखे तो हम सब जानते है कि मुगलों का कट्टरपंथी कानून, जो उस समय हर हिन्दू को इस्लाम धर्म कबूल करवाने के लिए मजबूर कर रहा थाІ उसी अनाचार और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाते हुए धर्म और देश की रक्षा की ख़ातिर पहले गुरु तेगबहादुर जी ने अपना बलिदान दिया, फ़िर गुरुगोबिंद सिंह जी का परिवार शहीद हुआІ मगर इस बात पर विचार करना भी ज़रूरी है कि 200 साल की मुगलों की ग़ुलामी हमने क्यों की? जब बाबर ने पहली बार हिंदुस्तान में कदम रखा था, तब भी हम हिन्दू एक नहीं थें, फ़िर पीढ़ी दर पीढ़ी यह मुगलिया सल्तनत आगे बढ़ती गई और हमने इन्हें अपना शासक स्वीकर कर लियाІ
जहाँगीर के समय में गुरु अर्जुन देव जी शहीद हुए, तब भी हिन्दू राजाओं ने कोई दम नहीं दिखायाІ महाराणा प्रताप का साथ देने में भी कई राजपूत नाकाम हो गएІ गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने उस समय जहाँगीर की कैद से जिन राजाओ को अपने साथ छुड़वाया था, उन्ही की पीढ़ी ने औरंगज़ेब का साथ दियाІ उन्होंने गाय की कसमें खाते हुए उन्हें यह कहकर आनंदपुर छोड़ने के लिए बाध्य किया कि अगर वे उसे छोड़ देंगे तो मुग़ल पीछे हटेंगे और हिन्दुओं का नरसंहार नहीं होगाІ मगर जैसे ही गुरु गोबिंद सिंह जी वहाँ से अपने परिवार संग निकले मुग़लों ने उन पर पीछे से हमला बोल दिया और सिरसा नदी में आए उफान के कारण पूरा परिवार बिछड़ गया І उनके दो बेटे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह चमकौर की लड़ाई में हज़ारों सिंघो के साथ शहीद हो गए तथा उनकी माता गुज़री और उनके दो बेटे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फ़तेह सिंह जिनकी उम्र सिर्फ नौ साल और छह साल मानी जाती है, वे भी उनके रोसिए गंगू के लालच के कारण वजीर खान की कहचरी में पेश हुए और उसके बाद दुनिया का सबसे क्रूरतम कृत्य हुआ, जब उन दो छोटे साहिबज़ादों को ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया गया और उनकी माता जी को भी किले की छत से फ़ेंक दिया गया І
हमेशा हिन्दू राजाओ को लगता था कि सिखों की शक्ति बढ़ गई तो हमारा क्या होगा, कुछ औरंगज़ेब से खौफजदा होकर उसके सूबेदारों से मिल गएІ वहीं मराठो ने भी सिखों का साथ नहीं दिया और सिख भी मराठों की तरफ नहीं गएІ हमारी कमज़ोरियाँ शुरू से ही दुश्मन देखता आया है, उसे पता है कि हम तन से ज़्यादा मन से कमज़ोर हैІ अगर उस समय हिन्दू राजाओ या उस गंगू ब्राह्मण को यह समझ आ जाता कि हम मुगलो के ग़ुलाम है और हमें यह ग़ुलामी किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करनी हैІ इसी सोच के साथ एकजुट होकर आवाज उठाते तो शायद इतिहास कुछ और ही तस्वीर कहताІ कितने सिखों को आरी से चीरा गया, कितने चक्की में पीसे गए और कितने ही ज़िंदा जलाए गएІ बंदा सिंह बहादुर जी की शहादत और उन्ही के सामने बड़ी बेरहमी से उनके चार साल के बेटे को भी शहीद किया गया पर तब भी हम मुगलों की चाकरी करने से बाज़ नहीं आयेІ जिन लोगों को उस वक्त यह समझ आ गया कि गुरु गोबिंद सिंह जी खुद परम पिता परमात्मा का रूप है, उनमे हिन्दू भी थे और मुसलमान भी थेंІ इतिहास उन मुसलमानों का भी कृतज्ञ है, जिन्होंने उस समय सच के लिए लड़ने वाले सिंघो का साथ दिया І कवि अल्लाह रक्खा जी को उनके इस्लाम धर्म से निष्कासित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने अपना जीवन गुरु गोबिंद सिंघ जी को समर्पित कर दिया थाІ सिर्फ़ मुगलों की निन्दा करने से हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं होगी, हमें अपनी गलतियों को भी देखना होगा, हम हिन्दुस्तान में रहने वाले थें, हमें मुगलों ने ग़ुलाम बनाया और जो लोग हमें उनसे आज़ादी दिलवा रहें थे, हमने उनका साथ नहीं दिया बल्कि सत्ता, सिक्के और ज़मीन के लिए अपना ईमान बेच दियाІ गुरु अर्जुन देव की शहादत शुरुआत थी, अगर तब भी हम जाग जाते तो औरंगज़ेब का शासन उठने से पहले ही खत्म हो जाताІ तलवार सब उठा सकते थे, अगर हम उस समय यह न सोचते कि हम हिन्दू है, सिख नहीं है तो किस मुग़ल की मज़ाल थी कि वह किसी के गले से जनेऊ उतारताІ जब औरंगज़ेब की तलवार ने सिर्फ़ अपने धर्म को तवज्जो दी तो हम क्यों तेरा-मेरा के चक्कर में फँस गएІ वो अंतरयामी पातशाह गुरु गोबिंद सिंह थें, जो हँसते-हँसते कह गए,
"इन पुत्तरन के सीस पर वार दिए सुत चार
चार हुए तो क्या हुआ जीवत कई हज़ार"
जिस तरह सीखी ने कई हज़ारों के बारे में सोचा तो हम क्यों नहीं कई करोड़ो के बारे में सोच सकते हैІ उन्होंने गीदड़ों को शेर बना दिया थाІ सवा लाख से एक लड़ाया थाІ चालीस सिख दस हज़ार मुग़लों से लड़ गए थेंІ ख़ुद अपने बेटो को युद्धके मैदान में शहीद करवा दियाІ उनके पिता हिन्द की चादर और वह खुद हिन्द के पीर कहलाएІ हिन्द का मतलब इस हिंदुस्तान से था, जो हम सबकी मातृभूमि हैІ जालिमों के ख़िलाफ़ आवाज उठाना हर समुदाय का धर्म हैІ धर्मात्मा वो जोमज़लूम की ख़ातिर अपना सर्वस्व कुर्बान करने से भी पीछे नहीं हटेІ आज हम क्या कर रहें है, उन्हें सिखों के गुरु कहकर सम्मान तो देते हैंІ मगर उस सोच को क्यों नहीं अपनाते जो सबका भला करना सिखाती हैІ गुरबाणी में लिखा है,
"तेरे भाणे सरबत्र का भला "
अब हमें वो भारतीय बनना है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर समूचे देश के लिए कुर्बान होने का भी होंसला रखें І वैसे ऐसी वीरता हमने अंग्रेज़ों के समय देखी है पर अंग्रेज़ तो जा चुके हैं, मगर हमें ग़ुलाम बनाने वाली सोच आज भी मौजूद हैІ जब तक यह धरती है, उस सरबंसदानी की कुर्बानियों को कहा जाएगा, पढ़ा जाएगा, सुना जाएगाІ मगर समझने के लिए हमें एकजुट होना पड़ेगा क्योंकि कटरपंथी तो अब भी दुनिया में मौजूद हैІ गुरु के सिख भी है पर हमें एक सच्चे हिंदुस्तानी का कर्तव्य निभाते हुए सिंघो से दिलेरी सीखनी है, मराठो से युद्ध कौशल और चाणक्य की अखंड भारत की नीव को खोखला नहीं होने देना हैІ जब हम सही मायने में इन शहादतों के मूल उपदेश को समझ पाएंगे और विरोधियो से अपने देश की रक्षा हेतु तत्पर होंगे, तभी वीर बाल दिवस की सार्थकता भी समझ में आएगीІ