Source: jansaata.com

क्या करोगे शाही स्नान करके
क्या ख़ुदा ख़ुश होता है,
शरीयत का मान करके
कौन सी नदी मेरे पाप धो देगी
क्या मेरे बदले आस्था रो देगी
कहीं दया नहीं तो कहीं आडम्बर का प्रभाव है
हर धर्म में करुणा और सत्य का अभाव है
हम रोज़ कितने दिल दुखाते है
नित्य अपने चाकू पर खून लगाते है
कोई पूछे कि पुण्य क्या है?
कोई पूछे इबादत क्या होती है?
तो जवाब में यह सुनने को मिलेगा
कि भगवान तो हर जगह होता है
बस मन में नहीं मिलेगा
तन चाहे कितनी बार भी पानी में डुबकी लगाता है
पर मन को निर्मल नहीं कर पाता है
शुभ-अशुभ कर्मो का खेल है
दिन-रात, सुबह -शाम, सब तो कुल मालिक के अधीन है
मनुष्य भावों से पूर्ण है पर भावना से विहीन है
अपनी ढफली अपना राग बजा रहें है
हम ख़ुद तो बँट चुके है और
भगवान को अपना-अपना बता रहें है
राम का अर्थ है जो रमा हुआ है
रहीम जो रहम खाने वाला है
और धर्म का ठेकेदार हमें
इन नामों में उलझाने वाला है
हम थक चुके हैं फिर भी
तीर्थों के रास्तों पर इतना चल रहें है
पर कोई हमसे पूछे सच्चाई और ईमानदारी
के रास्ते पर कितना चल रहें है
दूसरे की थाली में घी देखकर दुःखी हो जाते है
फिर उसी कुंठित मन से संगम में डुबकी लगाते है
नफरतों का ज़हर छोटे-छोटे बच्चों को पिलाते है
इंसान के बच्चे को सिर्फ इंसान छोड़कर
पता नहीं यह क्या-क्या बनाते है
कट्टर इंसान को खट्टर बनाता है
शहादत पाकर भी तू दोज़ख में जाता है
सारे ग्रन्थ, किताबें , पोथियाँ पढ़ ली पर प्रेम नहीं कर सकें,
हम कबीर, नानक, सूफी दरवेशों को नहीं समझ सकें
हमने दुनिया में रहने वालों से तो प्रेम कर लिया
पर दुनिया बनाने वाले से नहीं किया
यही हमारे दुःखों का मूल कारण है
सच्चा प्रेम और भक्ति यहीं इसका निवारण है
प्रेम करो तो धन्ना भगत जैसा,
साई बुल्लेशाह जैसा, संत रविदास के चरणों को तो
खुद छूकर गंगा जाती थी।
वे हम पापियों से मैली होकर अपने पाप धो आती थी
मनुष्य जन्म के लिए तो देवता भी तरसते है
और हम मूर्ख मानव कहाँ-कहाँ भटकते है
सबकुछ मिल जाएगा घर बैठे ही प्रभु का ध्यान करके
फिर क्या हो जायेगा
शाही स्नान करके
क्या खुदा खुश हो जाता है
शरीयत का मान करके!!!!!

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